Ranthambore Fort Hindi : रणथम्भोर का किला भारत के राजपूती किलों में सबसे पुराने किलों में से एक है। रणथम्भोर के किले का एक विस्तृत इतिहास है। सदा अजेय रहा रणथम्भोर का क़िला आज भी अपने खंडहरों के द्वारा अपनी गाथा कह रहा है।
रणथम्भोर , जिस पर चौहान वंश का शासन था। ये वही चौहान वंश हैं जिसमे पृथ्वीराज चौहान जैसे महान राजा आज तक भी अपनी वीरता , साहस और बुद्धिमानी के लिए जाने जाते हैं। वही वीर पृथ्वीराज चौहान जिन्होंने अपने रहते मुहम्मद गौरी को भारत में घुसने नहीं दिया। रणथम्भोर का किला उसी चौहान वंश की कहानियाँ कहता हैं।
इस किले ने बहुत आक्रमण झेले हैं और बहुत से राजाओं को हारते जीतते भी देखा हैं। इसके चारों तरफ का घना जंगल इसे अतिरिक्त सुरक्षा तो प्रदान करता ही रहा साथ ही इंसान को प्रकृति से भी जोड़ कर रखे रहा।
रणथम्भोर का किला – सवाई माधोपुर | Sawai Madhopur – Ranthambore Fort Hindi

रणथम्भोर का किला या रणथम्भोर दुर्ग राजस्थान के सवाई माधोपुर में स्थित है । सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन से 13 किलोमीटर की दूरी पर खड़ा ये विशाल क़िला आज भी अपने वैभव और शक्ति का प्रतीक है। ये क़िला दो पहाड़ियों के बीच में बना हुआ है , एक पहाड़ी का नाम है रण और दूसरी का थम , इन दोनों पहाड़ियों के बीच में एक छोटी घाटी है जिसे भवर कहा जाता है, इस तरह से ये क़िला अपने नाम में इन तीनो शब्दों को लिए है रण + थम + भवर और इस तरह समय के साथ इस किले का नाम हुआ रणथम्भोर !
रणथम्भोर का किला कब बना | Age – Ranthambore Fort Hindi

रणथम्भोर का किला कब बना इस बारे में इतिहासकारों के अलग अलग मत हैं। कुछ का मानना है की ये किला 10 वी शताब्दी में बना है वही किले के अंदर कुछ मूर्तियां और संरचना ऐसी हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये पांचवी सदी से यहाँ पर हैं। निश्चित ही रणथम्भोर का किला बनाने में कुछ साड़ियां तो लगी हैं। अमूमन यह किला ५ वी सदी में बनना शुरू हुआ और फिर आगे आने वाली पीढ़ियां इसमें अलग अलग समय पर निर्माण कराती रहीं।
रणथम्भोर का किला जंगल के बीच इस तरह से बनाया गया है की यह किला पहाड़ियों के बीच में छपा हुआ लगता है। राजपूत राजाओं के किले इसी तरह से बने होते थे कि जब तक किले के बिलकुल पास तक न पहुंचे तब तक किला दिखाई नहीं देता। ये किला रणथम्भोर के जंगल में पूरी तरह से छिपा हुआ किला है। इसी तरह की लोकेशन कुम्भलगढ़ किले और चित्तौरगढ़ किले के भी है।
रणथम्भोर का किला उत्तर भारत और मध्य एशिया के बीच एक मजबूत दीवार के तरह था। इस किले से कई बार मध्य एशिया के आक्रांताओं को हार का मुँह देख कर वापिस जाना पड़ा।
रणथम्भोर का किला – इतिहास | History – Ranthambore Fort Hindi
रणथम्भोर किले का निर्माण चौहान शासन काल में हुआ। राजा पृथ्वी राज चौहान के पूर्वजों का यह किला पहले रणस्तम्भ नाम से जाना जाता था। रणथम्भोर किले का निर्माण चौहान राजा सपलदक्षा के शासन काल में शुरू हुआ और उसके अगले २ शताब्दी तक इस क़िले में निर्माण चलता रहा।

सन 1192 में , जब पृथ्वीराज चौहान और मुहम्मद गौरी के बीच आखरी युद्ध हुआ , उसके बाद इस किले को उनके पुत्र गोविंदराज ने अपने अधिकार में ले लिया लेकिन वो स्वतंत्र शासक नहीं थे। सन 1210 में कुतुबुद्दीन ऐबक के मृत्यु के बाद रणथम्भोर का किला दिल्ली की सल्तनत के अधिपत्य से स्वतंत्र हुआ। इसके बाद सन 1226 में इल्तुतमिश ने फिर से इस किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया और उसकी मृत्यु के बाद फिर से सन 1236 में चौहान वंश ने इस पर अपना अधिकार कर किया। इस तरह से ये किला कई बार चौहान वंश से छीना गया पर बाद में सन 1283 से राजा हमीरदेव ने रणथम्बोर पर राज्य किया। राज हमीरदेव चौहान वंश के आखिरी राजा थे।
राजा हमीरदेव चौहान और अलाउद्दीन खिलजी
राजा हमीर देव ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही मुहम्मद शाह को अपने किले में शरण दी थी । इस बात से नाराज अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भोर के किले पर आक्रमण कर दिया। लगातार ६ साल तक अलाउद्दीन खिलजी की सेना यहाँ आक्रमण करती रही और हर बार उसे हार का सामना करना पड़ता।
आखिरी आक्रमण में अलाउद्दीन खिलजी खुद अपनी सेना ले कर रणथम्भोर किले पर पंहुचा। राजा हमीर देव के सेनापति भोजराज और रतिपाल अलाउद्दीन खिलजी से जा मिले और उन्होंने राजा हमीरदेव के साथ विश्वासघात किया। राजा और उनकी सेना साका कर युद्ध के लिए निकली। साका का अर्थ होता है मरने के लिए तैयार हो जाना। राजपूत राजाओं में यह एक प्रथा थी कि अगर राजा अपने सेना के साथ साका कर युद्ध पर जाये तो हारने के बाद जीवन का कोई मोह ही नहीं होता था।
एक लम्बे युद्ध के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने धोखे से विश्वासघाती सेनापतियों के साथ मिल कर रणथम्भोर के किले पर अपना कब्ज़ा कर लिया । इस हमले के बाद हमीर देव की रानी ने बड़ी संख्या में महिलाओं के साथ जौहर कुंड में समाधि ली और उनकी बेटी पद्मा ने जल जौहर कर लिया । उधर राजा हमीरदेव को युद्ध में विजय मिली और जब वह यहाँ आये तो उन्होंने अपने किले पर अलाउद्दीन खिलजी के विजय पताका को लहराते देखा।

यह सब कुछ अलाउद्दीन खिलजी और विश्वासघाती सेनापतियों के चाल थी। राजा हमीरदेव को महल के गेट पर ही इन्होने रोक लिए और महल के दरवाजों को बंद कर दिया। यह सब देख कर और सबकुछ समाप्त जान कर राजा हम्मीर देव यहाँ से रणथम्भोर के जंगल की तरफ चले गैर और अपने आराध्य भगवान शिव के सामने अपना शीश काटकर समर्पित कर दिया।
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने अपने प्रतिनिधि को रणथम्भोर का किला सौप दिया लेकिन बाद में 1327 में मेवाड़ के राजा हमीर सिंह शिशोदिया ने इस पर अपना कब्जा कर लिया। इसके बाद सन 1468 तक रणथम्भोर का किला शिशोदिया राजाओं के अधीन रहा और बाद में इसे बूंदी के हाडा राजा को दे दिया गया ।
साल 1568 में किले पर अकबर ने आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया और उसके बाद 2 शताब्दी तक रणथम्भोर का किला मुग़ल शासन के अधीन रहा। 18वी सदी में रणथम्भोर का किला जयपुर के कछवाहा वंश को दे दिया गया और उसके बाद भारत के स्वतंत्र होने तक उन्ही के पास रहा।
साल 1964 के बाद यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में है रणथम्भोर का किला UNESCO की World Heritage Sights की लिस्ट में भी शामिल है।
रणथम्भोर किले की संरचना | Architecture – Ranthambore Fort Hindi
किले के चारों और एक मजबूत ऊंची दीवार है जो क़िले को बहरी आक्रमण से सुरक्षी रखती है। किले का आर्किटेक्चर पुराने राजपूती स्टाइल का है। राजपूत आर्किटेक्चर में गेट को पोल कहा जाता हैं। किले के गेट पर हिन्दू मंदिरों से प्रभावित आर्किटेक्चर देखने को मिलता हैं। रणथम्भोर के किले में कुल ७ पोल हैं :
नव लखा पोल, हाथी पोल, गणेश पोल, बड़ा दरवाजा, सूरजपोल, दिल्ली पोल और सत पोल।
नव लखा पोल -रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
नव लखा पोल रणथम्भोर किले का मुख्य गेट है। यह पोल एक दीवार के पीछे के तरफ छिपा हुआ है। ऐसा एक रणनीति के तहत किया जाता था जिस से कि सीधे दौड़ कर दरवाजे पर बल ना लगाया जा सके। साथ ही नवलखा पोल पर नुकीले लोहे की संरचना है जिस से कि हाथी इस पर आक्रमण के दौरान बल लगा कर तोड़ न सकें।
रणथम्भोर किले के दरवाजे इस तरह से बनाये गए हैं की उन्हें तोड़ कर क़िले में घुसना एक असंभव सा काम हैं।इन गेट या पोल के सामने खुली जगह न हो कर एक दीवार हैं जिस कारण इस पर जोर लगा कर इसे न तो खोला जा सकता हैं और न ही तोडा जा सकता हैं।
नवलखा पोल से हाथी पोल की तरफ जाते समय रास्ते में पांच देव की मूर्तियां स्थापित हैं। माना जाता है कि ये मूर्तियां पांचवी सदी में यहाँ स्थापित की गयी थे जब इस किले का निर्माण शुरू हुआ था। ये पांच देव हैं भगवान शिव, हनुमान , गणेश , भैरों और देवी शक्ति।
हाथी पोल – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
हाथी पोल गेट दूसरा सुरक्षा गेट है। अगर कोई शत्रु नवलखा गेट से अंदर रणथम्भोर के किले में घुस भी जाये तो आगे हाथी पोल को बिना तोड़े घुसना असंभव है। हाथी पोल गेट के सामने कोई सुरक्षा दीवार न हो कर एक बड़ी चट्टान राखी हुई है जो किले के इस गेट को सुरक्षित रखती है।
इस चट्टान का आकार भी कुछ ऐसा है कि यह भगवान गणेश की मूर्ति के स्वरुप में दिखाई देती है और शायद इसीलिए इस गेट का नाम हाथी पोल रखा गया।
हाथी पोल के एक तरफ जहाँ यह चट्टान रही हुई है वही गेट के दूसरी तरफ रणमल के विश्वासघात के कहानी को सजीव रखते एक पत्थर के सर और भुजा भी रखे हैं। यह रणथम्भोर के किले पर हुए अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण और रणमल और उसके दो साथी भोजराज और रतिपाल के विश्वासघात के कहानी को बताता है। रणमल , भोजराज और रतिपाल ने राजा हमीरदेव चौहान के विरुद्ध अलाउद्दीन खिलजी से मिल् कर राजा हमीरदेव चौहान को हराने की योजना बनायीं थी।
राजा हमीरदेव चौहान ने यहाँ हाथी पोल पर रणमल का सर और भुजा काट कर उसे मौत के घात उतार दिया था।
गणेश पोल – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
गणेश पोल रणथम्भोर के किले का तीसरा गेट है। युद्ध से जीत कर लौटे राजा हमीरदेव चौहान को इसी गेट पर उनके विश्वासघाती भोजराज और रतिपाल ने रोक लिया था। उन दोनों ने यह गेट बंद कर दिया था और राजा को किले के अंदर जाने से रोक लिया था। उस समय तक किले के अंदर सभी रानियों ने और उनके साथ बाकि महिलाओं ने जौहर कर लिया था।
राजा अंदर नहीं जा सके और फिर दुःख के कारण वह यहाँ से चट्टानों पर चढ़ कर सतपुरा गेट से हो कर रणथम्बोर के जंगल के तरफ चले गए थे।
इसके आगे आता है स्वागत गेट जिसे तोरणद्वार गेट भी कहा जाता है। इस गेट पर पहुंचने के बाद युद्ध से लौटे राजा के स्वागत के लिए फूल अदि बरसाए जाते थे। इसीलिए इस गेट को स्वागत गेट कहा जाता है।

त्रिनेत्र गणेश मंदिर – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
रणथम्बोर किले के अंदर त्रिनेत्र गणेश मंदिर हैं। इस मंदिर में स्थापित गणेश भगवान को रोज हजारों श्रद्धालु चिठियाँ भेजते हैं। त्रिनेत्र गणेश मंदिर में स्थापित गणेश मूर्ती के बारे में कहा जाता है कि यह ६ हज़ार साल पुरानी मूर्ती है। इसे भगवान कृष्ण के समय का माना जाता है और कहा जाता है कि भगवान कृष्ण और रुक्मणि के विवाह का निमंत्रण सबसे पहले इसी मंदिर में आय था। इसी परंपरा को आज तक भी माना जाता है और आस पास के एरिया में शादी विवाह में सबसे पहला निमंत्रण कार्ड भी त्रिनेत्र गणेश मंदिर में भेजा जाता हैं।
बादल महल – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
यह महल के उत्तरी भाग में है। राजा हमीर सिंह के घोड़े का नाम बादल था। कहा जाता है की उसी के नाम पर इस महल का नाम बादल महल रखा गया। इस महल में एक बड़ा 84 खंभों का हाल है जहां राजा हमीर सिंह अपनी मीटिंग किया करते थे।
बत्तीस खम्बा छतरी – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi

रणथम्भोर किले के अंदर एक तीन मंजिल इमारत हैं जो कि बत्तीस खम्बों से बनी हैं। इन बत्तीस खम्बों के ऊपर एक छत हैं और इसीलिए इसका नाम बत्तीस खम्बा छतरी हैं। यह छतरी राजा हमीरदेव ने अपने पिता राजा जयंत सिंह चैहान के 32 वर्षों के सकुशल राज को श्रद्धांजलि देने के लिए बनवायी थी।
हमीर कोर्ट – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
ये एक खुला हुआ कोर्ट या आंगन हैं। राजा हमीरदेव के नाम पर ही इसका नाम हमीर कोर्ट या हमीर आंगन है। इसे कुछ इस तरह से बनाया गया था कि इसमें होने वाली थोड़ी से खुसफुसाहट की आवाज भी साफ़ सुनी जा सकती हैं।
हमीर कचहरी – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
किले के अंदर हमीर बड़ी कचहरी और छोटी कचहरी है। इसे राजा हमीर सिंह ने बनवाया था। हमीर कचहरी दिल्ली गेट के सामने है। इस जगह पर राजा अपने राज काज का काम देखा करते थे।
गुप्त गंगा – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
रणथम्भोर किला परिसर में गुप्त गंगा का प्रवाह है। यह जल धरा जमीन की नीचे से बहती है। गुप्त गंगा के प्रवाह को देखने के लिए जमीन के नीचे के तरफ बने मंदिर में सीधेइयां उतर कर जाना होता है। यह एक प्राकृतिक गुफा जैसा मंदिर है। यहाँ पर नीचे जाने पर यह गुप्त गंगा देखी जा सकती है। गुप्त गंगा के आस पास जंगल फैला हुआ है जिसके आस पास जंगली जानवर भी दीखते हैं। कभी कभी यहाँ तेंदुए भी आ जाते है।
सूरवाल झील – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi
सूरवाल झील एक मौसमी झील है और अक्सर गर्मी के मौसम में सूख जाती है। यहाँ बारिश के मौसम में आना चाहिए। बारिश और सर्दी के मौसम में सूरवाल झील सुदूर से आने वाले पक्षियों को देखने का एक केंद्र है। नेचर फोटोग्राफी के लिए भी रणथम्भोर जंगल के बीच ये झील एकदम सही जगह है।
पद्मा झील – रणथम्भोर का किला | Ranthambore Fort Hindi

राजा हमीरदेव के बेटी पद्मावती के नाम पर इस झील को पद्मा झील कहा जाता था। उस समय की राजपूत प्रथा के अनुसार युद्ध में हार होने के बाद विवाहित महिलाएं जहाँ अग्नि जौहर करती थे वही अविवाहित युवतियां जल जौहर कर अपने प्राण त्याग देती थीं।
अलाउद्दीन खिलजी और राजा हमीरदेव के युद्ध के दौरान जब रणथम्बोर के किले में यह खबर पहुचायी गयी कि राजा की हार हुई है , तब उस समय किले के अंदर उपस्थित सभी महिलाओं ने जौहर कर लिया था। रानी और अन्य विवाहित महिलाओं ने जहाँ अग्नि जौहर किया वही राजकुमारी पद्मा ने अविवाहित होने से जल जौहर किया और इस झील के पानी में डूब कर अपनी जान दे दी।
इन सभी मुख्य संरचनाओं के अलावा भी रणथम्भोर के किले में अन्य कई ऐतिहासिक इमारतें हैं जैसे रानी महल , रानी तालाब , अधूरा सपना , अँधेरी पोल आदि। रणथम्भोर के किले को वर्ल्ड हेरिटेज साइट / विश्व इतिहास की धरोहर के रूप में विश्व में पहचाना जाता है। इसी के चलते यहाँ पुराने अवशेषों को फिर से खड़ा करने और इतिहास को सजीव करने का काम अभी चल रहा है।
आने वाले कुछ वर्षों में रणथम्भोर का किला शायद अभी से बेहतर रूप में टूरिस्ट्स देख सकेंगे।

रणथम्भोर नेशनल पार्क | Ranthambore National Park
रणथम्भोर नेशनल पार्क भारत के सबसे बड़े और फेमस नेशनल पार्क्स में से हैं। नेशनल पार्क में बाघ, जंगली सूअर, हिरन, सांभर आदि जानवर देखे जा सकते हैं । रणथम्भोर नेशनल पार्क में 250 से अधिक प्रजातियों के पक्षी भी पाए जाते हैं तो अगर आप एनिमल लवर है तो एक बार यहां जरूर आना चाहिए । यहां पर लगभग 70 टाइगर है ।
रणथम्भोर किला कब जाएं | Best time to visit – Ranthambore Fort Hindi
रणथम्भोर जाने के लिए वैसे तो किसी भी मौसम में जाया जा सकता है लेकिन क्योंकि यहां पर गर्मी ज्यादा होती है तो नवंबर से फरवरी तक का समय अधिक अच्छा है । इस समय में वाइल्डलाइफ सफारी का पूरा आनंद उठा सकते हैं । रणथम्भोर के किले में जंगल सफारी का अलग ही मजा है । ओपन जीप द्वारा इस जंगल सफारी का मजा लिया जा सकता है ।
रणथम्भोर कैसे जाएं | How to reach – Ranthambore Fort Hindi
रणथम्भोर सवाई माधोपुर से सिर्फ १३ किलोमीटर की दूरी पर हैं। सवाई माधोपुर एक रेलवे स्टेशन हैं जो की देश के बाकि रेलवे मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ हैं। रणथम्भोर जाने के लिए अगर हम बात करें हवाई मार्ग की, तो जयपुर हवाई अड्डा सबसे पास है । यहां से बस कार या टैक्सी से रणथम्भोर जाया जा सकता है । ट्रेन से आप सवाई माधोपुर स्टेशन पहुंच सकते हैं और वहां से टैक्सी या कैब से आसानी से रणथम्भोर आ सकते हैं ।
रणथम्भोर में खान – पान | Food and Restaurants – Ranthambore Fort Hindi
राजस्थान की फेमस दाल बाटी चूरमा, लहसुन की चटनी, राजस्थानी कढ़ी, गट्टे की सब्जी, बाजरे की रोटी और खिचड़ी , सब कुछ खाने के लिए यहां पर मिलता है । राजस्थानी खाना अपने तीखे मसालों और स्वाद के लिए सारी दुनिया में जाना जाता हैं। राजस्थान की मेहमान नवाजी भी दुनिया में खासी मशहूर हैं।
- रणथंभौर का किला किसने बनवाया ?
रणथंभौर किले का निर्माण चौहान राजा सपलदक्षा के शासन काल में 9 वें शताब्दी में शुरू हुआ और उसके अगले २ शताब्दी तक क़िले में निर्माण चलता रहा।
“पधारो म्हारे देस “