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महानदी जानकारी | महानदी सहायक नदियां | महानदी डेल्टा | Mahanadi in Hindi
Mahanadi in Hindi | महानदी : महानदी प्रायद्वीपीय भारत की गोदावरी नदी और कृष्णा नदी के बाद तीसरा सबसे बड़ा नदी क्रम है। महानदी का बहाव क्षेत्र छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और ओडिशा राज्यों में फैला हुआ है। महानदी बेसिन उत्तर में मध्य भारतीय पहाड़ी भाग , दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाट और पश्चिम में मैकाल पर्वत श्रेणी से घिरा हुआ है। महानदी को छत्तीसगढ़ राज्य की जीवन रेखा कहा जाता है।
महानदी – उद्गम स्रोत और मार्ग | Origin & Route – Mahanadi in Hindi
महानदी छत्तीसगढ़ और ओडिशा अंचल की सबसे बड़ी नदी है। महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ राज्य में अमरकंटक के दक्षिण में रायपुर के समीप धमतरी जिले में सिहावा नमक पर्वत से हुआ है। सिहावा पर्वत के शिखर पर महर्षि आश्रम के पास स्थित कुंड को महानदी का उद्गम स्थल माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पर्वत शिखर को भेदती हुई महानदी गणेश घाट होती हुई 15 किलोमीटर की दूरी तय कर ग्राम फरसिया स्थित महामाई धाम तक प्रवाहित होती है।
महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। राजिम में यह पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण कर शिवरी नारायण में अपने नाम के अनुरूप महानदी बन जाती है और उत्तर के बजाय पूर्व दिशा में बहने लगती है। महानदी अपनी यात्रा के आधे से अधिक भाग में छत्तीसगढ़ में बहती है। सिहावा से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग 855 किलोमीटर के दूरी तय करती है। महानदी का डेल्टा कटक नगर लगभग 11 किलोमीटर पहले से शुरू होता है , यहाँ से महानदी कई धाराओं में बँट कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
महानदी नाम और पौराणिक महत्त्व | Significance – Mahanadi in Hindi
महानदी का नाम श्रंगी ऋषि के एक शिष्य महानंद के नाम पर पड़ा है। नदी का नाम संस्कृत शब्द महा यानी विशाल और नाड़ी यानि नदी को जोड़ कर बना है। महाभारत काल में महानदी को कनक नंदिनी , महानंदा, सतयुग में नीलोत्तपला , द्वापर युग में चित्रोत्तपला और वर्तमान में महानदी और महाश्वेता जैसे अलग अलग नामों से जाना जाता रहा है। वायुपुराण में भी महानदी को नीलोत्तपल कहा गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी का सर्वाधिक प्रभाव रहा है। छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी सिरपुर महानदी के तट पर स्थित है।
महानदी – सहायक नदियां | Sahayak Nadiyan – Mahanadi in Hindi
महानदी एक बारहमासी नदी है। महानदी प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में सबसे सक्रीय गाद जमा करने वाली जल धाराओं में से एक है। तलछट के कारण ही महानदी अपनी विनाशकारी बाढ़ों के लिए प्रसिद्द है। प्रारम्भ में तो महानदी एक छोटी जल धारा के रूप में बहती हुई शिवनाथ नदी से मिलकर पूर्व की ओर मुड़ जाती है। ओडिशा राज्य में उत्तर और दक्षिण की पहाड़ियों की जल निकासी से यह महान रूप ले लेती है। महानदी और इसकी सहायक नदियों का क्षेत्र भी पंजाब की सिंधु और इसकी सहायक नदियों के क्षेत्र की तरह ही गौरव गाथा से समृद्ध है।
महानदी की सहायक नदियों में सबसे बड़ी नदी शिवनाथ नदी है।
महानदी में उत्तर दिशा से मिलने वाली सहायक नदियों में शिवनाथ नदी , हसदेव नदी , बोराई नदी , मांड नदी , केलो और इब नदियां हैं। दक्षिण दिशा से महानदी में मिलने वाली नदियों में दूध नदी , सिलयारी नदी , पैरी नदी , सोंढुर नदी , सूखा नदी , जोंक और लात नदियां प्रमुख हैं।
महानदी बेसिन | Basin – Mahanadi in Hindi
महानदी मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों से होकर बहती है। यह भू भाग गोंडवाना शैल प्रणाली ( गोंडवाना रॉक प्रणाली ) का अवशिष्ट है जिसमें देश का लगभग 98 % कोयला संचित है। महानदी उद्गम से डेल्टा तक लगभग 900 किलोमीटर चलकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। महानदी का कुल जल निकासी क्षेत्र 132,100 वर्ग किलोमीटर होने का अनुमान है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का करीब 4.3 % है। महानदी बेसिन का लगभग 54.27 % भाग कृषि क्षेत्र है।
महानदी बेसिन छत्तीसगढ़ के बीचों बीच अवस्थित है। इसका निर्माण अवसादी और आग्नेय चट्टानों से हुआ है। इसे दो भागों में बाँटा जाता है – छत्तीसगढ़ का मैदान और सीमान्त उच्च भूमि। छत्तीसगढ़ के मैदान की आकृति पक्षी के पंख के समान है। यह मैदानी भाग पेंड्रा – लोरमी पठार , कोरबा बेसिन , रायगढ़ बेसिन , बिलासपुर – रायगढ़ का मैदान और दुर्ग – रायगढ़ का मैदान पांच भागों में बँटा हुआ है। सीमान्त उच्च भूमि क्षेत्र की औसत ऊँचाई 400 से 1000 मीटर है। इसको छुरी – उदयपुर के पहाड़ियां , मैकाल श्रेणी , दुर्ग सीमान्त उच्च भूमि और धमतरी महासमुंद उच्च भूमि नमक चार भागों में विभक्त किया जाता है।
महानदी – वाटरफॉल्स | Waterfalls – Mahanadi in Hindi
महानदी , गोदावरी और इंद्रावती जैस बारहमासी नदियों का क्षेत्र विशाल पर्वत श्रंखलाओं , हरे भरे जंगलों के साथ साथ शानदार झरनों का भी क्षेत्र है जो विश्व भर के पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करते हैं। महानदी पर कुछ मुख्य वाटरफॉल
चित्रकोट वाटरफॉल | Chitrakot Waterfall
यह भारत के नियाग्रा वॉटरफॉल के नाम से प्रसिद्द है। इसकी आकृति घोड़े के नाल के समान है। वॉटरफॉल की ऊँचाई 29 मीटर है। जल मुख्यतः इंद्रावती नदी से मिलता है। यह वाटफॉल छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है।
खंडाधार वॉटरफॉल | Khandadhar Waterfall
ओडिशा राज्य के सुंदरगढ़ जिले के नंदपानी , बोनाई गढ़ में ओडिशा का दूसरा सबसे ऊंचा वॉटरफॉल है। वॉटरफॉल की कुल ऊँचाई 244 मीटर है।
अमृतधारा वॉटरफॉल | Amritdhara Waterfall
महानदी की सहायक हसदेव नदी पर प्राकृतिक वॉटरफॉल है जिसकी ऊँचाई 90 फ़ीट है।
कोइली घुंगर वॉटरफॉल | Koeli Ghungar Waterfall
अहिराज नामक एक नाले में छुइखंच जंगल से निकलता है और वॉटरफॉल के बाद महानदी में विलीन हो जाता है।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के मुख्य वॉटरफॉल हैं –
छर्रे मर्रे वॉटरफॉल जोगी नदी पर स्थित है। कचेर झारन वॉटरफॉल , देव झारन वॉटरफॉल , भीम धरा वाटरफॉल, थेसरी और बड़ा थेसरी वॉटरफॉल , बटेमुरा वॉटरफॉल , घटारानी आदि।
महानदी – बांध और बहु उद्देशीय योजनाएं
महानदी पर यूँ तो कुल 254 बांध और बहु उद्देशीय परियोजनाएं स्थापित हैं। इनमें से अधिकांश कृषि संचित क्षेत्र में वृद्धि हेतु संचालित हैं। महानदी पर बना हुआ हीराकुंड बांध विश्व प्रसिद्द है जिसका निर्माण ओडिशा राज्य में सम्भलपुर के निकट सन 1887 में महानदी पर बाढ़ नियंत्रण , जलविद्द्युत उत्पादन और सिंचित क्षेत्र में वृद्धि के लिए किया गया था। यह बांध विश्व का सबसे बड़ा बांध है। हीराकुंड बांध की लम्बाई 4.8 किलोमीटर है और कुल क्षेत्रफल विस्तार 133090 वर्ग किलोमीटर में फैला है।
इसके अतिरिक्त केदरनाला बांध (1971 ), झुमका बांध (1981 ), घोंघा बांध (१९८१ ), हसदेव बेंगो बांध (1990 ) जल विद्द्युत उत्पादन और कृषि सिंचित क्षेत्र वृद्धि हेतु स्थापित किये गए हैं। अमरकोनी बांध, अमगांव बांध, ओरमि मुंडा बांध , आयाभाढ़ा बांध का निर्माण सिंचित क्षेत्र विस्तार हेतु किया गया है। इसके अतिरिक्त गंगरेल बांध , दुधवा जलाशय, सोंढुर जलाशय, अमचुवा , अड्याथर, अगरिमा और तेंडुला और अन्य परियोजना कार्यरत हैं।
महानदी बेसिन – कृषि और औद्योगिक विकास
महानदी में अपेक्षाकृत मोटे कणों वाली लाल पीली, मिश्रित लाल , छिछली काली मिटटी , लेटेराइट और महीन कणों वाली डेल्टाई मिटी पाई जाती है। काली मिटटी क्षेत्र में गन्ना, कपास और धान की खेती की जाती है। इसके अलावा गेंहूं , ज्वार , बाजरा , रागी, तिलहन और दलहन का उत्पादन भी होता है।
महानदी बेसिन खनिज पदार्थों में बहुत धनी है और पर्याप्त जलशक्ति और ताप शक्ति उत्पादन उद्योगों के लिए अनुकूल वातावरण बनाते हैं। महानदी बेसिन में लौह – स्पात उद्योग (भिलाई ), हीराकुंड और कोरबा एल्युमीनियम उद्योग , कटक में कागज उद्योग , सुंदरगढ़ में सीमेंट उद्योग, कृषि पर आधारित चीनी और वस्त्र उद्योग और कोयला , लौह और मगनीज सम्बंधित खनन उद्योग स्थापित हैं।
महानदी बेसिन – जनसँख्या
महानदी और इसकी सहायक नदियों का बहाव क्षेत्र 37 जनपदों में फैला हुआ है। इनमें छत्तीसगढ़ राज्य के 15 जिले और ओडिशा राज्य के 22 जिले शामिल हैं। महानदी बेसिन में लगभग 3.87 करोड़ ( 2011 ) जनसँख्या बसती है। कुल जनघनत्व 273 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। रायपुर जिला सबसे सघन जनसँख्या वाला है। महानदी बेसिन में लगभग 77.19 % जंसंख्या ग्रामीण है। जशपुर और कांकेर जिले (छत्तीसगढ़ ) और गंजाम और खुर्दा जिलों ( ओडिशा राज्य ) में नगरीकरण तीव्र गति से हुआ है।
महानदी – मंदिर और पर्यटन स्थल
गंगा नदी के समान पवित्र होने के कारण महानदी के तट पर अनेक धार्मिक सांस्कृतिक और ललित कला केंद्र स्थित है ।छत्तीसगढ़ राज्य लोक कला एवं संस्कृति में अति समृद्ध है । यहां के किले और मंदिरों का अपना ऐतिहासिक महत्व है। राज्य के जशपुर जिले में रानी दाह प्रपात / वॉटरफॉल , दमीरा प्रपात / वॉटरफॉल , इंदिरा घाट, गिरजाघर ( एशिया का दूसरा बड़ा चर्च ) स्थित हैं। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले को छत्तीसगढ़ का नागलोक कहा जाता है। यह देश का दूसरा बड़ा विश्व संग्रहण केंद्र है।
उड़ीसा राज्य में पुरी जगन्नाथ मंदिर कोणार्क और भुवनेश्वर उड़ीसा के स्वर्ण त्रिभुज को पूरा करते हैं यहां का जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा का भव्य मंदिर सिद्धेश्वर सिरपुर में गंधेश्वर रुद्री में रुद्रेश्वर राजीव में राजीव लोचन और कुलेश्वर मल्हार पातालेश्वर मंदिर और अन्य पर्यटन स्थल है ।
महानदी – वाइल्डलाइफ रिजर्व
महानदी के डेल्टा भाग में उड़ीसा राज्य का पहला सत्कोसिया टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। यह बंगाल टाइगर, हाथी, घड़ियाल और लुटेरा मगरमच्छ, वनस्पतियों और जीवो की कई दुर्लभ प्रजातियों का घर है । यह 988.30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है । छत्तीसगढ़ और उड़ीसा राज्यों के प्रमुख वाइल्डलाइफ रिज़र्व एवं अभयारण्य इस प्रकार हैं
क्रोकोडाइल रिप्रोडक्शन एंड रिसर्च सेण्टर , उड़ीसा
तिकरपाड़ा वाइल्डलाइफ सेंचुरी उड़ीसा
देबरीगढ़ वाइल्डलाइफ एंड सफारी पार्क, उड़ीसा
चण्डका एलिफेंट पार्क, उड़ीसा
कुमारकुंति जलाशय
पंपासारा वाइल्डलाइफ पार्क , उड़ीसासीता नदी वाइल्डलाइफ पार्क, देवगांव
बरनावपारा वन्य जीव संरक्षण
ऊषाकोठी वन्य जीव एवं सफारी पार्क
नलबाना पक्षी विहार क्षेत्र डियर पार्क
कोटगढ़ वन्यजीव और सफारी पार्कमहानदी डेल्टा | Mahandi Delta
महा नदी डेल्टा उड़ीसा राज्य में स्थित है। यह तीन प्रमुख नदियों महानदी, ब्राह्मणी और वैतरणी नदियों के प्रसार से पानी, तलछट और पोषक तत्वों द्वारा सिंचित एक मिश्रित डेल्टा है । डेल्टाई तट लगभग 200 किलोमीटर लंबा है जो दक्षिण में चिल्का झील से लेकर उत्तर में धमाल नदी तक फैला है । महानदी डेल्टा एक जलोढ़ डेल्टा है और तलछट का बेसिन है। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग 11 किलोमीटर पहले शुरू होता है और यहाँ से नदी कई धाराओं में बँट जाती है । महानदी ब्राह्मणी और वैतरणी नदियां मिलकर मिश्रित और प्रगतिशील डेल्टा का निर्माण करती है जो भारतीय उपमहाद्वीप के एक बड़े भूभाग को सिल्ट रूप में बंगाल की खाड़ी में बहा देती है । पूर्वी घाट और बंगाल की खाड़ी के मध्य तटीय मैदान में यह डेल्टा समृद्ध जैव विविधता के साथ उपजाऊ भूमि और पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।
महानदी को ओडिशा का शोक भी कहा जाता है। इसका कारण महानदी की तली में और डेल्टा के पास गाद का अत्यधिक जमाव का होना है।
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महेश्वर किला | अहिल्याबाई होल्कर फोर्ट | Maheshwar Fort Hindi
Maheshwar Fort Hindi : महेश्वर किला मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित एक प्रसिद्ध टूरिस्ट प्लेस है जिसको अनेकों नामों से भी जाना जाता है जैसे कि अहिल्याबाई होलकर फोर्ट, होल्कर किला, अहिल्या बाई किला आदि है। महेश्वर किले का निर्माण रानी अहिल्या बाई होल्कर ने और उनके बाद उनकी पुत्रवधू कृष्णा होल्कर ने करवाया था। इस किले का निर्माण 18 वीं सदी में कराया गया था। महेश्वर किला महेश्वर में स्थित है। महेश्वर किला भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से और राजनीतिक दूदर्शिता के चलते यहाँ पर बनवाया गया था। यह किला एक तरफ सतपुड़ा की पहाड़ियों तो दूसरी और विंध्याचल के पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
महेश्वर नगर – महत्त्व | Maheshwar Nagar – Importance – Maheshwar Fort Hindi
महेश्वर का अर्थ होता है महा ईश्वर ! अर्थात सबसे महान ईश्वर। हिन्दू धर्म के अनुसार भगवन शिव को महा ईश्वर नाम जाता है और इसीलिए महेश्वर शहर को भगवन शिव की नगरी भी कहा जाता है। महेश्वर शहर का प्राचीन काल में अपना एक ऐतिहासिक महत्व रहा है। महेश्वर नगर को प्राचीन काल में महिष्मति नाम से जाना जाता था। रामायण काल में सहस्त्रबाहु और रावण का सामना यहाँ महिष्मति में ही माना जाता है। पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार राजा सहस्त्रबाहु अपनी पत्नियों के साथ नर्मदा नदी के किनारे समय बिताने के लिए आये और वहां अपनी पत्नियों के लिए उन्होंने नर्मदा नदी के बहाव को अपनी हजार भुजाओं से कुछ समय के लिए रोक दिया। उसी समय वहां से गुजरते हुए रावण ने शिवलिंग बनाया और वह प्रार्थना के लिए बैठ गया। सहस्त्रबाहु में जब नदी के बहाव को छोड़ा तो उससे आगे के तरफ बैठे हुए रावण के तपस्या भंग हो गयी और वह सहस्त्रबाहु से लड़ने के लिए आ गया। सहस्त्रबाहु ने रावण को कुछ समय के लिए अपना बंदी बना कर रखा।
महिष्मति नगर अपने स्वतंत्र सामाजिक नियमों के लिए भी प्राचीन काल से ही प्रसिद्द रहा है। पौराणिक कहानियों के अनुसार यहाँ की सामाजिक सरंचना में महिलाओं को बाकी राज्यों के मुकाबले ज्यादा अधिकार थे।
महारानी अहिल्याबाई | Maharani Ahilyabai Holkar Hindi
अहिल्या बाई का जन्म महाराष्ट्र के चौड़ी गांव में मालू जी शिंदे के यहां पर हुआ था। उनका जन्म 31 मई 1725 में हुआ था । महारानी अहिल्याबाई भगवान शिव की एक परम भक्त थी। कहा जाता है एक बार इंदौर के राजा मल्हार राव होल्कर ने अहिल्याबाई को मंदिर के बाहर गरीबों को बिठा कर खाना खिलाते हुए देखा और उनकी इस प्रकृति से खुश होकर उन्होंने अहिल्या को अपनी पुत्रवधू बनाने का निश्चय किया।
अहिल्या बाई का विवाह मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर की पत्नी बनकर इंदौर आ गई । उस समय अहिल्या बाई की उम्र केवल 13 वर्ष थी। अहिल्याबाई युद्ध कौशल और व्यवस्था में बहुत कुशल थी। अहिल्याबाई के पति खंडेराव होल्कर एक युद्ध में मारे गए थे। उसके कुछ समय बाद ही उनके ससुर मल्हार राव होल्कर भी नहीं रहे।
उस समय अहिल्याबाई की दो संताने थी एक पुत्र मालेराव और उनकी पुत्री मुक्ताबाई। उनके पुत्र मालेराव किसी शारीरिक बीमारी से ग्रस्त थे। ऐसे में रानी अहिल्याबाई ने राजकाज अपने हाथों में लिया और उन्होंने लगभग 29 वर्षों तक राज काज संभाला ।
रानी अहिल्याबाई एक शक्तिशाली शासक थी तथा अपने साम्राज्य की सुरक्षा करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहती थी। रानी अहिल्याबाई ने महेश्वर में अनेको धर्मशालाएं , मंदिर और घाटों का निर्माण कराया। उन्होंने महेश्वर का पुनर्निर्माण कराया। वहां पर वह स्वयं ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान , पूजा पाठ करती तथा ध्यान से निवृत्त होकर जन सेवा के कार्यों में लग जाया करती थी।
राजधानी इंदौर से महेश्वर | Capital from Indore to Maheshwar
रानी अहिल्याबाई ने सबसे पहले अपनी राजधानी इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित की। इसे उनकी दूरदर्शिता ही कहाजायेगा। इंदौर पर आये दिन होने वाले शत्रुओं के आक्रमण से अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए रानी अहिल्याबाई ने महेश्वर को एक सुरक्षित स्थान मानकर अपनी राजधानी बनाया।
महेश्वर किला | Maheshwar Fort Hindi
महेश्वर किला बलुआ पत्थर का बना हुआ है और इस किले में बहुत ही सुंदर नक्काशी भी की गई है। किले में बहुत सारे खिड़कियां, दरवाजे, झरोखे दिखाई देते हैं। महादेव की पुत्री नर्मदा नदी के पवित्र तट पर बसे हुए महेश्वर को उसकी विलक्षणता के कारण ही गुप्तकाशी के नाम से भी जाना जाता है। किले की दीवारों पर की कारीगरी राजपूत , मराठा और मुग़ल कलाओं का समागम है। किले की दीवारों पर की गई चित्रकारी में मढ़ा शैली दिखाई देती है।
महेश्वर किले का प्रवेश द्वार बहुत ही मजबूत तरीके से बनाया हुआ है। इस प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मूर्तियां है। इन मूर्तियों में एक तरफ मूर्ति पहरेदार की दिखाई देती है ,एक मूर्ति किसी नारी की दिखाई देती है तथा एक मूर्ति में एक व्यक्ति धनुष लिए हुए खड़ा दिखाई देता है। किले की पूरी दीवारों में मूर्तियां ही देखने को मिलती हैं इन मूर्तियों में बहुत सारी मूर्तियां ऐसी हैं जिनमे संगीत यंत्रो को बजाते हुए दिखाया गया है। इन मूर्तियों में गणेश जी की मूर्ति और अनेकों मानव आकृति की मूर्तियां भी दिखाई देती हैं।
अहिल्या वाड़ा – महेश्वर किला | Ahilya Vada – Maheshwar Fort Hindi
महेश्वर किला बहुत ही साधारण रूप में दिखाई देता है। बाहर से देखने पर यह एक बड़ा किला नजर आता है लेकिन अंदर जाने पर यह एक साधारण जन मानस का आवास सा लगता है। किला परिसर में ही महारानी अहिल्या बाई होल्कर का निवास स्थान है जो साधारण लकड़ी और खपरैल का बना हुआ एक घर है। इस घर को अहिल्या वाड़ा कहा जाता है। अहिल्या बाई सादगी पसंद महिला थीं और इसी सादगी के साथ उन्होंने अपना जीवन बिताया।
इसी घर के बहार के चबूतरे पर वह अपना दरबार लगाया करती और उनके दरबारी और फरियादी सभी इसी दरबार में होते थे। अहिल्या बाई को एक न्याय प्रिय शासक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है। वह जब भी दरबार में बैठ कर फरियादियों का न्याय करती थे तो उनके हाथ में हमेशा एक शिवलिंग हुआ करता था। महेश्वर किले के अधिकांश हिस्से अहिल्या बाई होल्कर ने बनवाये थे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पुत्रवधु कृष्णा होल्कर ने अहिल्याबाई को श्रद्धांजलि देने के लिए किला परिसर में एक मंदिर का निर्माण कराया। यहां पर एक पालकी भी है जिससे रानी अहिल्याबाई शहर के भ्रमण के लिए निकला करती थी।
अहिल्याबाई के समय में मराठा मालवा शासन ने बहुत अधिक तरक्की की थी। कहा जाता है कि अहिल्याबाई के पास उस समय 14 करोड़ रुपए थे जिसको उन्होंने मंदिर और घाटों को बनवाने और मुगलों द्वारा नष्ट किए गए पुरानी इमारतों और मंदिरों को पुनर्निर्माण कराने में लगाया।
Rishikesh Tourist Places in Hindi | ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस
स्कूल और मंदिर – महेश्वर किला | School and Mandir – Maheshwar Fort Hindi
किला परिसर में घुसते ही एक स्कूल है जहाँ आस पास के इलाकों से बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। महेश्वर किला नर्मदा नदी के किनारे पर स्थित होने के कारण अनेकों घाट यहाँ बने हुए हैं। इन घाटों पर छोटे बड़े कई मंदिर बने हुए हैं। अक्सर यहाँ फिल्मों की शूटिंग होती है। कुछ फिल्में जैसे यमला पगला दीवाना तथा मणिकर्णिका फिल्म की शूटिंग इन्हीं घाट पर की गई थी।
किला परिसर में भगवान शिव के अनेकों अवतारों को समर्पित मंदिरों को देखा जा सकता है। किले के अंदर जाने पर राजराजेश्वर मंदिर है। यह राज राजेश्वर मंदिर एक विशेष मंदिर हैं जहाँ पर 11 अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती हैं।
Mahakal Mandir Ujjain Hindi | महाकाल मंदिर उज्जैन
दशहरा उत्सव | Dashahra Festival – Maheshwar Kila Hindi
महेश्वर में दशहरे के उत्सव का आयोजन किया जाता है । यह उत्सव आज भी उसी सांस्कृतिक और पारम्परिक ढंग से आयोजित किया जाता है जैसे कि होल्कर शासन के दिनों में किया जाता था।
महेश्वर किले को देखने का समय | Best time to visit Maheshwar Mandir
किले के खुलने का समय सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक का है। यहाँ आने के लिए किसी भी प्रकार के किसी भी टिकट की कोई आवश्यकता नहीं होती है। शाम के समय महेश्वर किले में रंग बिरंगी लाइट जलाई जाती हैं उस समय घाट की सुंदरता और भी अधिक बढ़ जाती है। शाम के समय यहां पर नर्मदा नदी से आने वाली ठंडी ठंडी हवा के कारण किले के आसपास का माहौल बेहद मनभावन हो जाता है।
महेश्वर साड़ियां | Maheshwar Saree
मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर को कला संरक्षक के रूप में भी पहचान प्राप्त है। आज की महेश्वर साड़ियां उन्हीं की देन है जो कि सूरत के कारीगरों द्वारा बनवाई गई थी । रानी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी महेश्वर को औद्योगिक रूप से समृद्ध बनाने के उद्देश्य से यहां पर लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया और उनमें वस्त्र निर्माण कार्य को प्रारंभ कराया। उस समय उन्होंने गुजरात के सूरत से कारीगरों को यहां पर बुलवाया और उन्हें यहां पर बसाकर बुनकर का पुश्तैनी कार्य आरंभ कराने का आग्रह किया। अहिल्यादेवी के अथक प्रयास से ही उन बुनकरों ने यहां पर आकर कपड़ा बुनने का कार्य किया और उनके हाथों से बनाई गई महेश्वर साड़ी प्रसिद्ध हो गई। उन बुनकरों द्वारा निर्मित वस्त्रो को स्वयं अहिल्यादेवी ही खरीद लिया करती थी जिसके कारण रोजगार मिलता रहता था। बुनकरों द्वारा निर्मित वस्त्रो को अपने रिश्तेदारों को और मेल जोल वालो को भेंट के रूप में दिया करती थी जिसके कारण चारों तरफ इस प्रकार महेश्वर साड़ी प्रसिद्ध हो गई।
महेश्वर किला | अहिल्याबाई फोर्ट कैसे पहुंचे
| How to reach Maheshwar Fortसड़क मार्ग द्वारा खंडवा, इंदौर आदि से महेश्वर के लिए बस सेवाएं उपलब्ध है जिससे आसानी से बस द्वारा महेश्वर या अहिल्याबाई फोर्ट पहुंच सकते हैं। महेश्वर का निकटतम रेलवे स्टेशन बड़वाह है जो कि यहां से लगभग 39 किलोमीटर की दूरी पर है।
फ्लाइट से महेश्वर के सबसे नजदीक इंदौर अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट है जिसकी महेश्वर से दूरी लगभग 91 किलोमीटर है। अन्य एयरपोर्ट मुंबई, भोपाल, दिल्ली और ग्वालियर से स्टेट ट्रांसपोर्ट और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट की सीधी सेवाओं द्वारा जुड़ा हुआ है।
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रायसेन किला | RaiSen Kila Hindi
RaiSen Kila Hindi : रायसेन का किला भारत के मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 48 किलोमीटर दूर स्थित राय सेन किला विंध्याचल पर्वत श्रंखला में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। राय सेन किला समुद्र तल से लगभग 1500 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। रायसेन किला राष्ट्रीय महत्त्व का का ऐतिहासिक स्मारक है जो अब पुरातत्व विभाग की देखरेख में है।
रायसेन किला – इतिहास | History – RaiSen Kila Hindi
माना जाता है कि रायसेन किले का निर्माण 1200 ई0 में कराया गया था। ऐसा कहा जाता है कि रायसेन का किला राजा रायसेन द्वारा बनवाया गया था। 10 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ राय सेन का किला इतिहास में एक महत्वपूर्ण किला माना जाता है।
राय सेन किले पर कुल १४ बार अलग अलग शासकों ने अधिकार करने के लिए आक्रमण किये। 15 वीं सदी में रायसेन पर मांडू के राजा बाज बहादुर शाह का शासन काल रहा और उसके बाद यह किला राजपूतों के अधिकार में आ गया। सन 1543 में शेरशाह सूरी ने गौड़ राजा पूरणमल शाह से यह किला धोखे से हथिया लिया था । कहा जाता है कि शेरशाह सूरी लगातार चार महीने के प्रयास के बाद भी किले पर अधिकार नही कर पाया और तब उसने धोखे से गौड़ राजा पूरणमल शाह से यह किला हथिया लिया।
किले पर अधिकार करने के लिए शेरशाह सूरी ने किले के सामने ही तांबे के सिक्कों को गला कर तोप बनवायीं और उन्हें युद्ध में इस्तेमाल किया। इस युद्ध के समय राजा पूरणमल ने अपनी हार को आते देखकर स्वयं ही अपनी रानी रत्नावली को बचाने के लिए उसका सर तलवार से काट दिया। किले के खंडहरों में आज भी उस युद्ध के अवशेषात्मक चिन्ह देखे जा सकते हैं।
रायसेन किला परिसर | Inside – RaiSen Kila Hindi
रायसेन किले का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है। 1500 फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित रायसेन किले में अनेको तालाब ,महल और मंदिर है। यह किला लगभग 1000 साल पुराना माना जाता है। यह किला नौ प्रवेश द्वार वाली एक बड़ी चट्टान है, जिससे यह घिरा हुआ है । 9 प्रवेश द्वार और 13 बुर्ज के साथ चार बड़े तालाब तथा 84 तलैया या छोटे तालाब हैं जो रायसेन किले का आकर्षण हैं।
कोस मीनार – रायसेन किला | Kose Minar – RaiSen Kila
रायसेन किले में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार से सीढ़ियां चढ़कर प्रवेश किया जाता है। अंदर जाते ही एक कोस मीनार है जिसे विजय स्तंभ भी कहा जाता है। पुराने समय में दूरियां नापने के लिए कोई पैमाने नहीं हुआ करते थे तब जनता को सूचना देने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता था। जो भी संदेश जनता को देना होता था वह इस कोस मीनार पर लगा दिया जाता था तथा फिर सभी लोग यहां आकर उस संदेश को पढ़ सकते थे।
तालाब – रायसेन किला | Ponds – Raisen Kila
किले के मुख्य चार तालाब इस प्रकार है मोतिया ताल, मदागन ताल ,मलेंगा ताल और रानीताल।
मोतिया ताल का उपयोग राज परिवार के लोगों के पीने के पानी के लिए किया जाता था। यह तालाब बेहद खूबसूरत तरीके से निर्माण किया गया था।
दूसरा ताल मदागन ताल है। यह ताल मंदिर के निकट है जो एक विशाल तालाब है। इसकी खासियत यह है कि यह सदियों पुराना होने पर भी इस तालाब में पानी सूखता नहीं है।
मलेंगा ताल उत्तरी भाग में स्थित है। यह तालाब आज बिल्कुल सूखा तालाब है।
चौथा तालाब रानी तालाब के नाम से जाना जाता है। जिसका उपयोग उस समय रानियां अपने नहाने के लिए किया करते थी।
पेमिया मंदिर – रायसेन किला | Pemiya Mandir – Raisen Kila
किले का प्रमुख मंदिर पेमिया मंदिर है। पेमिया मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है, पूरे साल बंद रहता है परंतु महाशिवरात्रि के दिन साल में केवल 1 दिन मंदिर खुलता है। उस समय यहां पर मेले का आयोजन भी किया जाता है। पहले यह मंदिर बंद पड़ा हुआ था लेकिन यहाँ के निवासियों द्वारा मांग किये जाने पर यह मंदिर प्रशासन द्वारा खोला गया और तभी से यह मंदिर पूरे वर्ष में केवल एक दिन , शिवरात्रि के उत्सव के दिन पूजा प्रार्थना आदि के लिए खोला जाता है।
इत्र दान स्मारक – रायसेन किला | Itradan Smarak – RaiSen Kila
किले के ऊपरी हिस्से में एक इत्र दान स्मारक है जिसे श्रंगार कक्ष भी कहा जा सकता है। यहां पर रानियां अपना श्रृंगार किया करती थी। इत्र दान का इको साउंड सिस्टम एक हाई टेक्नोलॉजी को प्रदर्शित करता है। यहां उपस्थित आले में कुछ भी बोलने पर उसे बहुत दूर वाले स्थान पर सुना जा सकता है लेकिन वहां उपस्थित अन्य किसी स्थान पर इस आवाज को नहीं सुना जा सकता, जिसे यहां का विशेष इको साउंड सिस्टम कहा जाता है।
मस्जिद ( हजरत पीर फतेह उल्लाह शाह बाबा की दरगाह) | Masjid – RaiSen Kila
किले में एक मस्जिद भी स्थित है कहा जाता है कि मस्जिद में मुस्लिम संत हजरत पीर फतेह उल्लाह शाह बाबा की दरगाह हैजिस पर आकर लोग अपनी मन्नतें मांगते हैं ।
महल – रायसेन किला | Mahal / Palace – RaiSen Kila Hindi
किले के मुख्य आकर्षण इसके चार महल हैं जिनमें बादल महल, रोहिणी महल, इत्र दान महल और हवा महल है। किले में प्रवेश करने पर दाएं तरफ 200 मीटर की दूरी से भगवान शिव के मंदिर के सामने ही बादल महल है। बादल महल लगभग 200 वर्ग फुट में स्थित है। इसके सामने की मुख्य दीवार में पुराने खंभे देखे जा सकते हैं। किले में रानी महल के सामने तांबे के सिक्कों को गलवा कर बनाई गई तोपे भी देखी सकती हैं।
वाटर हार्वेस्टिंग – रायसेन किला | Water Harvesting – RaiSen Kila Hindi
ऊंची पहाड़ी पर किले स्थित होने पर सबसे अधिक समस्या वहां पानी की होती थी। रायसेन किले में पानी की समस्या के समाधान के लिए उस समय के राजाओं की दूरदर्शिता को प्रकट करती हुई वाटर हार्वेस्टिंग का उदाहरण दिखाई देते है। किले में अनेको ताल तलैया है जिनमे बारिश के पानी को एकत्र करके पानी की आवश्य्कता पूरी की जाती थी।
इत्र दान का इको साउंड सिस्टम बड़ा ही हाई टेक्नोलॉजी को प्रदर्शित करता है। यहां उपस्थित आले में कुछ भी बोलने पर उसे बहुत दूर वाले स्थान पर सुना जा सकता है। लेकिन वहां उपस्थित अन्य स्थान पर इस आवाज को नहीं सुना जा सकता, जिसे यहां का विशेष इको साउंड सिस्टम कहा जाता है।
किले के अंदर एक म्यूजियम भी है।
Mahakal Mandir Ujjain Hindi | महाकाल मंदिर उज्जैन
पारस पत्थर की कहानी | Paras Patthar Stories
माना जाता है कि राजा रायसेन के पास एक पारस पत्थर था। पारस पत्थर को जिस भी वस्तु से छू देते वही वस्तु सोने की बन जाती। इसी पत्थर को पाने के लिए अनेकों बार किले पर आक्रमण हुए लेकिन उस पारस पत्थर को कोई भी पा ना सका।
राजा रायसेन ने एक युद्ध में खुद को हारते हुए देखकर उस पारस पत्थर को मदागन ताल में फेंक दिया । तब से कहा जाता है कि अनेको राजाओं ने और अन्य बहुत से लोगों ने उस पारस पत्थर को मदागन ताल में ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी इसमें सफल ना हो सका। लोगों का कहना है कि कुछ व्यक्ति तो यहां पर रात के समय तांत्रिकों को लेकर भी आए जो कि पारस पत्थर को प्राप्त कर सके लेकिन किसी को भी सफलता ना मिल सकी। बल्कि यहां तक कहा जाता है कि पारस पत्थर ढूंढने के कोशिशों में कुछ लोग अपना मानसिक संतुलन खो बैठे। वहां के लोगों का मानना है कि ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि उस पारस पत्थर के रक्षा कोई जिन्न करता है।
रायसेन किला देखने के लिए कब जाएं तथा कैसे जाएं | Best time to visit RiaSen Kila
वैसे तो रायसेन किला देखने के लिए कभी भी जाया जा सकता है ,लेकिन शिवरात्रि पर यहां मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तथा उस समय पर एक भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है ,तो रायसेन का किला देखने के लिए शिवरात्रि का समय अति उत्तम है।
रायसेन के लिए तक कैसे पहुंचे ?How to reach RaiSen Kila
रायसेन का निकटतम हवाई अड्डा भोपाल हवाई अड्डा है जो लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है । भोपाल से टैक्सी या गाड़ियों द्वारा आसानी से रायसेन के लिए तक पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग द्वारा रायसेन किले तक पहुंचने के लिए विदिशा रेलवे स्टेशन से जाया जा सकता है,यहां से रायसेन किले की दूरी लगभग 35 किलोमीटर तक है।
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रायसेन किले को देखने का समय | RaiSen Kila Timings
किले को देखने के लिए सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम 5:00 बजे तक का समय निर्धारित किया गया है। यहां किले में अंदर प्रवेश करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है लेकिन कार पार्किंग और बाइक पार्क करने के लिए फीस देनी होती है।
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Asirgarh Kila in Hindi | असीरगढ़ किला
Asirgarh Kila in Hindi – असीरगढ़ किला मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में स्थित एक ऐतिहासिक किला है जो अपने वैभवशाली अतीत का गुणगान करता हुआ आज भी खड़ा हुआ है। असीरगढ़ किला सतपुड़ा के पहाड़ियों में समुद्र तल से लगभग २५० फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित है।
असीरगढ़ किला – भौगोलिक महत्त्व
असीरगढ़ का किला नर्मदा और ताप्ती नदी के संगम पर स्थित है। इस किले को कलोद ए दक्खन अर्थात दक्षिण की कुंजी के नाम से भी जाना जाता है। इस किले की भौगालिक महत्ता इसी बात से पता चल जाता है कि असीरगढ़ किले के बारे में कहा जाता था कि इस किले पर अधिकार होने के बाद दक्षिण भारत के विजय के सभी मार्ग खुल जाते और संपूर्ण खानदेश पर अधिकार हो जाता था।
असीरगढ़ किला – इतिहास | History – Asirgarh Kila in Hindi
असीरगढ़ किले का इतिहास काफी अस्पष्ट है लेकिन यह माना जाता है कि यह किला अश्वथामा के पूजा स्थली है। यहाँ रहने वाले लोगों का ऐसा मानना है कि यहाँ अजर अमर अश्वथामा आज भी पूजा करने के लिए आते हैं।
इतिहासकारों के अनुसार यह पहले चौहान वंश राज्य का हिस्सा था। माना जाता है कि 4 वी सदी में असा अहीर नाम के एक शासक ने इस किले का निर्माण कराया था। असीरगढ़ किले के बनाये जाने के पीछे के कहानी भी बड़ी रोचक है। इस कहानी के अनुसार असा अहीर के पास हजारों की संख्या में पशु थे जिनको जंगल में कभी जंगली जानवर मर दिया करते थे तो कभी जानवर शिकारियों के शिकार बन जाया करते थे। इस कारण से असा अहीर ने अपने पशुओं की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षित स्थान की खोज प्रारंभ की थी। यहाँ आकर जब असा अहीर ने एक सूफी संत से अपने जानवरों को सुरक्षित रखने के लिए इस स्थान पर रहने की अनुमति मांगी तो उस सूफी संत ने असा अहीर को यह अनुमति प्रदान की। उसके बाद असा अहीर ने वहां पर ईट , मिट्टी ,चूना पत्थरों की सहायता से इस किले का निर्माण कराया और तभी से यह किला असीरगढ़ किले के नाम से प्रसिद्ध हो गया। असा अहीर को मिलने वाले फ़क़ीर को हजरत शाह नोमान नाम से जाना जाता है ।
धीरे-धीरे किले की प्रसिद्धि इतनी हो गई कि फिरोजशाह तुगलक के सिपाही मलिक खां फारूकी के बेटे नसीर खां फारूकी ने असा अहीर से इस किले को देने का निवेदन किया। नासिर खां ने असा अहीर को यकीन दिलाया कि उसके भाई उसकी जान के दुश्मन बने हुए हैं और वह एक सुरक्षित स्थान पर रहना चाहता है। असा अहीर ने इस बात पर विश्वास कर नासिर खां को किले में रहने की अनुमति दे दी। तब नसीर खां ने अपने परिवार की महिलाओं और बच्चों को कुछ सैनिकों के साथ हथियार सहित असीरगढ़ किले के अंदर प्रवेश कराया। कहा जाता है कि ननसीर खां ने अपने सैनिकों के साथ मिल कर असा अहीर और उनके परिवार के हत्या कर किले पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और इस तरह से नसीर खां ने धोखे से असीरगढ़ के किले पर अपना अधिकार बना लिया।
कुछ समय बाद असीरगढ़ किले की प्रसिद्धि बहुत बढ़ जाने पर अकबर ने उस पर अपना अधिकार बनाने की योजना बनाई। उस समय नसीर खां का वंशज बहादुर खां यहां पर राज करता था। उसने अकबर की शर्तों को मानने से इनकार किया और खुद को स्वतंत्रत घोषित कर दिया। इस बात से नाराज़ अकबर ने बुरहानपुर पर आक्रमण करने की योजना बनाई लेकिन किले की सुरक्षा व्यवस्था इतनी दुरुस्त थी कि वह असीरगढ़ के किले पर आक्रमण नहीं कर सका । बहादुर खां ने किले के अंदर बहुत से राशन पानी के साथ सारी सुविधाएं वहां पर उपलब्ध करा दी और किले के दोनों दरवाजो को भी बंद करा दिया।
अकबर को 6 महीने तक इंतजार करना पड़ा और वह असीरगढ़ के किले पर अधिकार नहीं कर सका। तब बहादुर खान से संधि करने के लिए संदेश भिजवाया जिसको बहादुर खां ने मान लिया और अकबर से मिलने के लिए आया। अकबर ने बहादुर खां फारुकी को घायल कर उसे बंदी बना लिया और असीरगढ़ किले पर अपना अधिकार घोषित कर दिया।
इसके बाद बुरहानपुर पर मुगलों का शासन हो गया। अकबर के बाद सन 1760 से 1819 ईसवी तक मराठों का शासन असीरगढ़ किले पर रहा और उसके बाद ब्रिटिश राज में यहां पर अंग्रेजों ने शासन किया।
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असीरगढ़ किले – आर्किटेक्चर | Architecture – Asirgarh Kila in Hindi
असीरगढ़ का किला कई भागों में बंटा हुआ है। किले का पहला भाग असीरगढ़, दूसरा भाग कमर गढ़ और तीसरे भाग को मलयगढ़ कहा जाता है। इस किले में पहुंचने के दो रास्ते हैं, एक रास्ता जो कि पूर्व दिशा में है वह एक सीढ़ीदार रास्ता है और दूसरा रास्ता जो उत्तर दिशा में है वह एक मुश्किल रास्ता है। युद्ध के समय या शत्रुओं के आक्रमण के समय इसके गेट को बंद कर दिया जाता था और किले की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत होने के कारण इस किले को जीत पाना असंभव था। इसी कारण से इस किले को दुर्भेद्य किला या अजेय किला कहा जाता था, एक ऐसा किला जिसे कोई भी बिना छल के जीत नहीं पाया।
किले की वास्तुशैली | Architecture
60 एकड़ में फैला हुआ असीरगढ़ किला भारतीय, तुर्की, इस्लामी और फारसी स्थापत्य शैली का एक आदर्श मिश्रण प्रस्तुत करता है। देखने पर यह किला बड़े किले की तरह दिखाई देता है जो कि वास्तव में तीन विशाल किलों का एक संग्रह है जिन्हें असीरगढ़, कमरगढ़ तथा मलय गढ़ कहा जाता है। यह किला ईट पत्थर चूना पत्थर से बड़ी खूबसूरती के साथ निर्मित किया गया है।
गुप्तेश्वर महादेव मंदिर | Gupteshwar Mahadev Mandir
असीरगढ़ किले में स्थित गुप्तेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यहाँ प्रचलित कुछ कहानियों के अनुसार माना जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था।
मंदिर में गंगा तथा जमुना नाम के दो कुंड भी हैं। कहा जाता है कि यह हमेशा पानी से लबालब भरे रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि अश्वत्थामा महादेव मंदिर में पूजा करने से पहले कुंड में स्नान करते हैं। द्रोण पुत्र अश्वत्थामा आज भी महादेव मंदिर में यहां पूजा करने आते है।
आज भी एक रहस्य है किले में दो मीनारों वाली एक मस्जिद भी है। किले के अंदर कुछ खंडहर भी उपस्थित है। किले में कई गुप्त मार्ग भी है जिनसे होकर घुड़सवार किले की सुरंग से बुरहानपुर तक निकल सकते थे।
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असीरगढ़ किला देखने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Asirgarh Kila
असीरगढ़ किला देखने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच तक का है । इस समय यहां का मौसम अच्छा रहता है और बाहरी गतिविधियों के लिए यह उपयुक्त माना जाता है।
असीरगढ़ किला कैसे पहुचें | How to reach Asirgarh Kila
असीरगढ़ किला पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का एयरपोर्ट अहिल्याबाई होलकर एयरपोर्टहै जो इंदौर में स्थित है। इंदौर से यहाँ के दूरी लगभग 159 किलोमीटर है। इंदौर से असीरगढ़ तक के दूरी प्राइवेट ट्रांसपोर्ट या स्टेट ट्रांसपोर्ट से तय की जा सकती है।
सड़क मार्ग द्वारा बुरहानपुर शहर राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से पक्की सड़कों द्वारा जुड़ा हुआ है जिससे बस कार और टैक्सी के द्वारा आसानी से वहां पर पहुंचा जा सकता है।
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चंदेरी किला | Chanderi Kila in Hindi
Chanderi Kila in Hindi – चंदेरी किला मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के चंदेरी शहर में स्थित है। चंदेरी एक ऐतिहासिक शहर है और माना जाता है कि यह शहर महाभारत के समय से अस्तित्व में है। वर्तमान में चंदेरी शहर यहाँ स्थित ऐतिहासिक चंदेरी किले के लिए जाना जाता है। चंदेरी किला प्रतिहार वंश के राजा कीर्तिपाल ने बनवाया था और इसीलिए इस किले को कीर्ति दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है।
चंदेरी शहर – इतिहास | History – Chaderi Kila in Hindi
चंदेरी शहर महाभारत कालीन रहा है। महाभारत के समय चंदेरी चेदि साम्राज्य का हिस्सा था जो शिशुपाल का राज्य था। चंदेरी शहर इतिहास में नन्द वंश , मौर्या वंश , शुंग और मगध साम्राज्य का हिस्सा रहा है। चेदी नामक उस स्थान को आज बूढ़ी चेदी के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर बिखरे हुए मंदिरों, शिलालेखों ,मूर्तियों के अवशेषों बताते हैं कि यह स्थान कभी एक ऐतिहासिक नगर रहा होगा, जो कि बाद में धीरे-धीरे घने जंगलों में विलीन हो गया होगा। अशोक नगर जिले का नाम भी सम्राट अशोक के नाम पर रखा गया है। माना जाता है कि एक बार सम्राट अशोक अपनी यात्रा के दौरान यहाँ एक रात के लिए रुके थे।
8वीं सदी में चंदेरी पर प्रतिहार वंश का शासन था। प्रतिहार वंश के 7 वें राजा कीर्तिपाल ने 11 वें सदी में चंदेरी के इस किले का निर्माण कराया था और चंदेरी शहर को अपनी राजधानी बनाया था। 11 वें सदी में बाहरी आक्रांताओं के लगातार आक्रमण हो रहे थे और इससे चंदेरी शहर भी अछूता नहीं रहा। 13 वें सदी में चंदेरी पर बलबन का अधिकार हो गया था और उसके बाद चंदेरी कई बार अलग अलग शासकों के अधिकार में रहा। 15 वें शताब्दी में चंदेरी पर खिलजी का अधिकार हो गया। कुछ समय तक खिलजी के अधिकार में रहने के बाद 16 वें शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा सांगा ने चंदेरी को जीत लिया। महाराणा सांगा ने चंदेरी को मेदनी राय को सौंप दिया था।
चंदेरी लगातार युद्ध झेलता रहा और उसके बाद बाबर , राजा पूरन मल , शेरशाह सूरी से होते हुए अंत में बुंदेला राजाओं के अधिकार में आया। सन 1844 में चंदेरी अंग्रेज़ो के अधिकार में आया और स्वतंत्रता के समय यह ग्वालियर राज्य का हिस्सा था। स्वतंत्रता के बाद ग्वालियर मध्यप्रदेश का हिस्सा बना और चंदेरी भी।
चंदेरी किला- भौगोलिक स्थिति इतिहास | Geography – Chaderi Kila in Hindi
चंदेरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है और एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। चंदेरी किला 5 किलोमीटर में फैला हुआ है और यहाँ से पूरा चंदेरी शहर देखा जा सकता है। यह स्थान मालवा तथा बुंदेलखंड की सीमा पर स्थित होने के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। चंदेरी किले के आसपास पहाड़ियों से घिरा होने के कारण यह सुरक्षा की दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण था इसीलिए इस किले पर समय-समय पर अनेकों राजाओ के आक्रमण हुए। चंदेरी के किले पर आक्रमण और इस किले का पुनर्निर्माण कार्य भी लगातार जारी रहा। सभी राजाओं ने अपने अपने अनुसार किले का निर्माण कार्य कराया जिनमें मुख्य थे खिलजी, तुगलक, मालवा, लोधी शासक, उदयपुर के राणा सांगा ,मुगल, बुंदेला और सिंधिया। चंदेरी किला एक मिलीजुली संस्कृति तथा स्मारकों का प्रतीक चिन्ह है ।
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चंदेरी का किला | Chanderi Kila in Hindi
चंदेरी महल कहीं से तीन मंजिला और कहीं पर 4 मंजिला दिखाई देता है। महल के बीच में एक बड़ा आंगन है जिसके चारों तरफ के बरामदे में महल ,किले तथा अन्य स्मारक दिखाई देते हैं। चंदेरी किले का जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग द्वारा कराया जाता रहा है।
चंदेरी किले के मुख्य प्रवेश द्वार
हवा पौड़ी | Hawa Paudi – Chanderi Kila in Hindi
यह चंदेरी किले का सबसे ऊंचा दरवाजा है। मुख्य दरवाजा भी है।
खूनी दरवाजा | Khooni Darwaja – Chanderi Kila in Hindi
यह चंदेरी किले का दूसरा मुख्य दरवाजा है। इस दरवाजे का नाम खूनी दरवाजा होने का कारण यहाँ हुए रक्तपात को बताया जाता है। १६वें सदी में सं १५२८ में जब बाबर ने किले पर आक्रमण किया तो मेदनी राय ने अपनी सेना के साथ उसका सामना किया। इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ की यहाँ लाशों के ढेर लग गए और खून के धार बहने लगी। इसी कारण से महल के इस दरवाजे को खूनी दरवाजा कहा जाने लगा।
कटी घाटी | kati Ghati – Chanderi Kila in Hindi
चंदेरी महल का यह दरवाजा महल के पीछे की तरफ है। बाबर के युद्ध के दौरान उसकी सेना एक पहाड़ी के पीछे थी और ऐसा कहा जाता है कि उसकी सेना ने पहाड़ को काट कर संकरे गलियारे को बया जिस से कि उसकी सेना पीछे के तरफ से महल पर आक्रमण कर सके। मेदनी राय को इस बात का अंदाजा नहीं था और बाबर की सेना को अचानक अपने दरवाजे के सामने उन्होंने बाबर की सेना को देखा।
चंदेरी किले के अन्य स्मारक जिनमें नवखंडा महल तथा नवखंडा महल के पीछे स्थित संगीत सम्राट बैजू बावरा का स्मारक बना हुआ है। जोहर स्मारक भी इसी स्मारक के पास बनाया गया है जिस पर बाबर द्वारा किए हुए आक्रमण तथा राजपूतानियो द्वारा किए गए जोहर के बारे में सूचनाएं अंकित है। यहीं पर एक बावड़ी है जो कि चारों तरफ से जंगल से गिरी हुई है इसी बावड़ी में नवखंडा महल का प्रतिबिंब बड़ा ही सुंदर दिखाई देता है।
जौहर स्मारक | Johar Smarak – Chanderi Kila in Hindi
बाबर से हार की खबर जब किले के अंदर पहुंची तब चंदेरी किले में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया तथा सभी राजपूत महिलाएं स्वयं ही चिता के हवाले हो गयी। मध्ययुगीन इतिहास के अंदर चंदेरी का जौहर अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा जौहर माना जाता है। युद्ध को जीतकर बाबर अंदर किले में गया तब उसने देखा कि वहां किले के अंदर सभी रानियों सहित सभी राजपूती क्षत्राणीयों ने जौहर कर लिया था। जौहर के स्थान पर स्थित शिला पर आज भी इस भयावह जौहर घटना का जिक्र लिखा दिखाई देता है।
चंदेरी के महल में बुंदेल खंडी राजाओं ने अनेकों महल बनवाए तथा मुगल और खिलजी शासकों ने महल की दीवारों को मजबूत कराने का कार्य किया। अबुल फजल के अनुसार इस चंदेरी के किले में 14000 मकान, 612 महल, 1200 मस्जिद तथा 384 बाजार बनाए गए थे।
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चंदेरी का युद्ध | War of Chanderi
Chanderi Kila in Hindi – चंदेरी का युद्ध 1528 में हुआ युद्ध बाबर तथा मेदनी राय खंगार के बीच हुआ था। कहा जाता है कि बाबर ने इस किले पर बहुत लंबे समय से अपनी नजर बना गढ़ा रखी थी, उसकी नजर लगातार इस किले पर बनी रहती थी । इस कारण बाबर ने राजा मेदनी राय खंगार से इस महल को मांगा तथा बदले में अपने जीते हुए कई किलो को उन्हें देने की पेशकश भी की थी ,परंतु राजपूत राजा मेदनी राय खंगार ने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
चंदेरी किले के पहाड़ी पर होने के कारण कोई अगर इस पर आक्रमण करने की तैयारी करता तो उसकी भनक पहले ही राजा मेदनी राय खंगार को हो जाती थी और इसीलिए इस किले पर आसानी से हमला नहीं कर पाता था। बाबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिए जाने पर और इस किले के महत्त्व को जानकर बाबर ने किले पर आक्रमण करने का निश्चय किया। बाबर ने किले का घेरा कई दिनों तक बनाकर रखा लेकिन उसकी सेना में हाथी, तोपे और भारी हथियार थे जिनको लेकर उन पहाड़ियों से पार जाना बहुत ही मुश्किल था और इन पहाड़ियों से नीचे उतरने पर ही चंदेरी फौज की नजर शत्रु पर पड़ जाती थी।
ऐसा माना जाता है कि बाबर ने एक ही रात में रास्ता बनाने के लिए अपने सैनिकों को किले के पीछे की पहाड़ी को काटने का आदेश दे दिया। बाबर की सेना ने इस पहाड़ी को ऊपर से नीचे तक इस तरह से काटा कि वहां पर एक दरार बना डाली जिससे होकर वह पूरी सेना के साथ किले के ठीक सामने पहुंच गया। 80 फीट ऊंची 39 फीट चौड़ी तथा 192 फीट लंबी घाटी को पहाड़ी को काटकर निर्माण किया था। घाटी के बीच में ही पहाड़ को काटकर प्रवेश द्वार को बनाया गया जिसके दोनों ओर दो बुर्ज भी बनाए गए।
राजा मेदनी रॉय खंगार इस बात से अनभिज्ञ थे और वह बाबर पूरी सेना को देखकर दंग रह गए, लेकिन उन्होंने अपनी सेना के साथ बाबर की विशाल सेना का डटकर सामना किया तथा अंत में वह वीरगति को प्राप्त हुए।
बाबर कभी भी इस किले में नहीं रहा। बाबर के बाद मालवा सुल्तान मल्लू खान ने चंदेरी किले पर कब्जा किया उसके बाद फिर से मुगलों का अधिकार हुआ था।
चंदेरी कारीगरी | Chanderi Art
चंदेरी शहर में चंदेरी कारीगरी का काम सदियों पुराना है । इस शहर की गलियों में अनेकों कारीगर इस काम को करते हुए देखे जा सकते हैं । चंदेरी के इस कपड़े में रेशम तथा जरी का काम किया जाता है ।
चंदेरी जाने का सबसे अच्छा समय | Best time to Visit Chanderi
चंदेरी जाने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का मौसम सबसे अच्छा है। चंदेरी का मौसम इस दौरान सुहाना रहता है। गर्मियों में मौसम काफी ज्यादा गर्म हो जाता है लेकिन मानसून के दौरान यह काफी खूबसूरत हो जाता है।
चंदेरी कैसे पहुचें | How to reach Chanderi
अगर आप फ्लाइट से यात्रा कर रहे हैं तो चंदेरी पहुंचने के लिए सबसे नजदीक भोपाल शहर का एयरपोर्ट है। भोपाल ले यहाँ से दूरी लगभग २०० किलोमीटर हैं। दूसरा नजदीक का एयरपोर्ट ग्वालियर में स्थित है। ग्वालियर से चंदेरी के दूरी लगभग 250 किलोमीटर है। ग्वालियर और भोपाल दोनों ही जगह से चंदेरी तक के लिए प्राइवेट और स्टेट ट्रांसपोर्ट के सुविधा उपलब्ध हैं।
अगर आप ट्रेन से ट्रेवल कर रहे हैं तो चंदेरी के सबसे नजदीक लगभग 40 किलोमीटर के दूरी पर ललितपुर स्टेशन है।
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दतिया महल | दतिया किला | Datia Mahal in Hindi
Datia Mahal in Hindi : दतिया महल मध्य प्रदेश के दतिया जिले में ग्वालियर से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक महल है । दतिया महल अपने विशेष आर्किटेक्चर के लिए जाना जाता है। कभी बुंदेलखंड साम्राज्य का हिस्सा रहे दतिया को महाभारत कालीन माना जाता है। महाभारत काल में दतिया को राजा दन्तवक्र की राजधानी के रूप में जाना जाता था। ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से लोकप्रिय दतिया का यह विशेष दतिया महल बुंदेलखंड राजा वीर सिंह जू देव ने बनवाया था। दतिया महल को सतखंडा महल के नाम से भी जाना जाता है। दतिया महल के सात भाग हैं। दतिया महल को मुग़ल और राजपूती आर्किटेक्चर के समागम का नमूना माना जाता है।
दतिया महल का इतिहास | History – Datia Mahal in Hindi
दतिया महल को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे सतखंडा महल ,पुराना महल, गोविंद महल, वीर सिंह देव महल, नरसिंघ महल आदि। बुंदेलखंड के राजा वीर सिंह द्वारा 52 इमारतों का निर्माण कराया गया था जिनमें से दतिया महल मुख्य है। यह महल राजा वीर सिंह और जहांगीर के दोस्ती के कारण अस्तित्व में आया।
मुग़ल सल्तनत के जहांगीर और बुंदेला राजा वीर सिंह की अच्छी दोस्ती हो गयी थी। उन दिनों जहांगीर का गद्दी के लिए संघर्ष जारी था और राजा वीर सिंह इसमें जहांगीर के मददगार के रूप में साथ थे। जहांगीर को दिल्ली की गद्दी दिलवाने के उद्देश्य से राजा वीर सिंह ने जहांगीर के कहने पर अकबर के खास दरबारी अबुल फजल के हत्या कर दी थी। इस महल का निर्माण भी राजा वीर सिंह ने जहांगीर को सुरक्षित रखने के लिए कराया था। इस महल में हालाँकि कभी न तो जहांगीर ने समय बिताया और न ही यहाँ कभी बुंदेला राज परिवार रहा लेकिन दतिया महल वीर सिंह और जहांगीर की दोस्ती के प्रतीक के रूप में प्रसिद्द हो गया।
Pushkar City Hindi | पुष्कर शहर
दतिया महल आर्किटेक्चर | Architecture – Datia Mahal
सर एडमिन लुटियन जो कि एक ब्रिटिश वास्तुकार रहे हैंउनके द्वारा निर्मित ज्यादातर इमारतें दतिया महल के आर्किटेक्चर से प्रभावित हैं।
दतिया महल – निर्माण सामग्री | Datia Mahal – Construction Materials
महल के बारे में माना जाता है कि यह महल बिना किसी सहारे के खड़ा हुआ है। दतिया महल को बिना किसी धातु या लकड़ी के सहारे के खड़ा किया गया है। इस महल को पूरा का पूरा पत्थर तथा ईटो द्वारा बनाया गया है। महल की दीवारों में दाल ,गुड़ और तेल को मिश्रण बनाकर उसे सीमेंट की तरह से इस्तेमाल किया गया है।इस किले में 7 मजिले हैं जिनमें से दो मंजिले जमीन के नीचे स्थित है ,जो कि एक तहखाना कहा जा सकता है ,तथा उनकी पांच मंजिले जमीन से ऊपर की तरफ है। सात खण्डों में बने होने ही दतिया महल को सतखंडा महल कहा जाता है।
कमरे और स्तम्भ | Datia Mahal Rooms and Pillars
महल की पांचवी मंजिल पर केवल एक ही कमरा बना हुआ है। महल की छत से पूरा दतिया शहर दिखाई देता है। इस महल को बनाने में लगभग 9 साल का समय लगाऔर लगभग 35 लाख रुपये बनाने में खर्च हुए थे। दतिया महल के अंदर 440 कमरे बनाए गए हैं और कमरों के साथ-साथ यहां पर अनेको आंगन भी हैं । महल की दीवारें बेहद खूबसूरत चित्रों से अलंकृत की गई है जिन्हें फूल , पत्तियों और सब्जियों के जैविक रंगो द्वारा इनको बनाया गया है।
दतिया महल मुस्लिम और राजपूतानी शैली को प्रदर्शित करता है। महल राजपूतानी शैली के बेजोड़ नमूने को पेश करता है। महल में पिलर के ऊपर बारी कलाकृतियों के डिजाइन बने हुए हैं जो कि डायमंड शेप की आकृतियां बनी हुई हैं और महल की इमारत में चार चांद लगाती हैं।
दतिया महल – दीवारों पर चित्रकारी | Datia Mahal – Paintings on Wall
महल के प्रवेश द्वार पर जो चित्र और नक्काशी का काम किया गया है वह बेहद खूबसूरती के साथ किया गया है। महल की दवारों पर गणेश और घोड़ों के चित्रों को सजाया गया जो कि प्रवेश द्वार की शोभा को बढ़ाते हैं। दतिया महल में जाते समय कागता है जैसे कि हम किसी भूलभुलैया में हैं।
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महल की दीवारों पर मानव आकृतियां उकेरी गयी हैं जो की बुंदेली नृत्यों के दृश्यों को प्रदर्शित करती हैं। इस नृत्य को राई नृत्य के नाम से जाना जाता है जो बुंदेलखंडी लोक नृत्य है। राइ नृत्य में नर्तकियाँ एक चक्र में सफेद फूल के पास नृत्य करती हुई दिखाई देती है।
दतिया महल की बनावट तो खास है ही , साथ ही साथ महल के विशाल आंगन, जालीदार खिड़कियां और बेहद खूबसूरत कलाकृतियों यहाँ आये टूरिस्ट्स का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। दतिया महल परिसर के अंदर एक दरगाह भी बनाई गई है। महल का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की तरफ है और महल के दक्षिण में करण सागर झील है जो कि इसकी सुंदरता को बढ़ाते हैं। दतिया महल में गणेश मंदिर , दुर्गा मंदिर और दरगाह टूरिस्ट्स के लिए मुख्य आकर्षण हैं।
दतिया – अन्य आकर्षण | Datia – Other Attractions
दतिया जिले में दतिया महल के अलावा कुछ अन्य प्रसिद्द आकर्षण भी हैं। इनमें बगलामुखी देवी मंदिर, धूमावती माई मंदिर, महाभारत कालीन भगवान शिव का मंदिर वनखंडेश्वर हैं। दतिया शहर से लगभग 20 किमी दूर स्थित गांव कुरथरा में देवी पीताम्बरा बगलामुखी का मंदिर, श्री सिद्धेश्वर महादेव मंदिर और सोनागिरी में सफेद संगमरमर जैन मंदिर स्थित हैं।
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दतिया महल – टिकट | Datia Mahal – Ticket price
टिकट खिड़की दतिया का महल देखने के लिए टिकट खिड़की की व्यवस्था है जिसमें मात्र 25रुपए का टिकट लेकर किले को देखा जा सकता है। दतिया महल को देखने के लिए लगभग 3 से 4 घंटे का समय काफी होता है। किले में जाते समय अपने साथ एक टॉर्च अवश्य ले जानी चाहिए क्योंकि यहां किले के रास्तों को देखकर हम भ्रमित हो सकते हैं।
दतिया कैसे पहुचें ? How to reach Datia Mahal ?
हवाई मार्ग से दतिया आने के लिए सबसे नजदीक मध्य प्रदेश का ग्वालियर हवाई अड्डा है जिसकी दतिया से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी है । ग्वालियर से बस और टैक्सी से दतिया तक का सफर बड़ी आसानी से तय किया जा सकता है।
दतिया में एक रेलवे स्टेशन भी है जो कि एक छोटा स्टेशन है इसीलिए अधिकतर ट्रेन इस स्टेशन पर नहीं रुकती हैं लेकिन झांसी तथा ग्वालियर रेलवे स्टेशन तक ट्रेन द्वारा आसानी से पंहुचा जा सकता है। ये दोनों ही स्टेशन देश के सभी बड़े स्टेशन से सीधे या कनेक्टेड ट्रेन से जुड़े हैं। झाँसी या ग्वालियर से दतिया तक का सफर प्राइवेट कर या बस से तय कर सकते हैं। झांसी से हर घंटे दतिया के लिए सीधी बसें मिलती है जो कि मात्र डेढ़ घंटे के अंदर दतिया पहुंचा देगा देती है।
अगर सड़क मार्ग की बात करें तो वह सफर बहुत आसान है। टूरिस्ट्स यहाँ अपनी गाड़ी से और बस से सफर तय कर पहुंच सकते हैं। दतिया एक छोटा और काम प्रसिद्द शहर है और इसीलिए यहाँ ठहरने के सुविधा बहुत ज्यादा उपलब्ध नहीं है।
दतिया आने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Datia
दतिया महल देखने आने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का मौसम सबसे अच्छा रहता है। इस दौरान यहाँ मौसम सुहाना होता है। मानसून में भी दतिया एक आकर्षक डेस्टिनेशन है लेकिन गर्मी के मौसम में यहाँ तापमान बहुत ज्यादा होता है ।
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ओरछा का किला | Orchha ka Kila in Hindi
Orchha ka Kila in Hindi : ओरछा का किला मध्य प्रदेश राज्य के निवाड़ी जिले में स्थित है। कभी बुंदेलखंड राज्य के राजधानी रह चुका ओरछा यह एक छोटा सा द्वीप है जो की बेतवा नदी और जामनी नदी के संगम पर बना हुआ है। ओरछा की निवाड़ी शहर से दूरी लगभग 27 किलोमीटर है और झांसी से ओरछा की दूरी केवल 15 किलोमीटर ही है। ओरछा का किला न सिर्फ बुंदेलखंडी राजाओं की राजधानी के लिए प्रसिद्ध था बल्कि यह बुंदेलखंडी राजाओं की शान और शौकत का अनुपम उदाहरण रहा है। ओरछा के किले को इसमें स्थापित मंदिरों के लिए भी जाना जाता है।
ओरछा का मतलब होता है छिपी हुई एक जगह !
ओरछा का किला एक विशाल किला है और इस किले के मुख्य आकर्षण हैं राज महल, शीश महल, फूलबाग, राय प्रवीण महल और जहांगीर महल। ओरछा के किले का एक भाग भगवान राम को समर्पित है। ओरछा किले के इस भाग में भगवान राम का मंदिर स्थापित है। यहाँ इस मंदिर में भगवन राम को राजा राम के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम को अयोध्या के अलावा ओरछा में इस रूप में पूजा जाता है।
ओरछा का किला – इतिहास | History – Orchha ka Kila in Hindi
बुंदेलखंडी राजाओं का इतिहास 1000 साल पुराना है। इसमें सबसे पहले राजा थे राजा हेम सिंह बुंदेला जिनको पंचम सिंह बुंदेला के नाम से भी जाना जाता है। १६ वें शताब्दी में ओरछा एक घना जंगल हुआ करता था। तब उस समय के राजा मलखान सिंह के बेटे रुद्र प्रताप सिंह ने यहां पर एक किले का निर्माण कराने का मन बनाया।
राजा रुद्र प्रताप सिंह से पहले बुंदेलखंडी राजाओं की राजधानी गढ़कुण्डार हुआ करती थी जो कि ओरछा से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर था। राजा रुद्र प्रताप सिंह को शिकार का बहुत शौक हुआ करता था। एक दिन राजा रूद्र प्रताप सिंह शिकार के लिए जंगल में घूम रहे थे तब उन्हें यह स्थान बहुत पसंद आया।
यहाँ बहती बेतवा नदी , शिकार की प्रचुरता और पहाड़ों से घिरे होने के कारण राजा रूद्र प्रताप सिंह को यह जगह बहुत पसदं आयी। राजा को यह स्थान बहुत सुरक्षित लगा और उन्होंने यहाँ पर किला बनाने का निश्चय किया। राजा रूद्र प्रताप सिंह ने यहाँ किले का निर्माण कार्य शुरू करा दिया था। पहाड़ों और जंगलों से घिरे होने के कारण इस स्थान पर दिशा और समय के बारे में पता नहीं चल पाता था इसीलिए जंगल में जगह-जगह पर शिवलिंग और हनुमान की मूर्ति स्थापित की गयी थीं जिसको देखकर सुबह-शाम तथा दिशाओं का अंदाजा लगाया जा सकता था।
दुर्भाग्य से राजा रूद्र प्रताप सिंह की शिकार के समय एक गाय को बचाते हुए मृत्यु हो गई और किले का निर्माण कार्य पूरा न हो सका।
राजा रूद्र प्रताप सिंह ने ओरछा को अपनी राजधानी बनाया। 16 वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक ओरछा को राजधानी बनाया गया था। राजा रुद्र प्रताप सिंह ने 1501 से 1531 में ओरछा शहर में इस किले का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया था। उनके बाद राजा रूद्र प्रताप सिंह के पुत्र राजा भारती चंद ने 1531 से 1554 में किले का निर्माण कार्य कराया, लेकिन 1554 में राजा भारती चंद्र की मृत्यु हो गई और उनकी कोई संतान भी नहीं थी। राजा भारती चंद्र के बाद उनके छोटे भाई मधुकर शाह ने 1554 से लेकर 1592 तक के समय में ओरछा किले के निर्माण कार्य को पूरा कराया । मधुकर शाह के बेटे राजा वीर सिंह (1605 -1627 ) के समय पर यहां पर जहांगीर महल तथा सावन भादो महल का निर्माण भी कराया गया। कहा जाता है कि यहां पर 1783 तक इस किले में राजा रानी रहा करते थे तथा उसके बाद उन्होंने इस स्थान को छोड़ दिया था। इस किले में अलग-अलग राजाओं ने अपने अपने समय में विभिन्न प्रकार के मंदिरों तथा महलों का निर्माण कराया था।
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ओरछा का किला – मुख्य द्वार | Orchha ka Kila in Hindi – Main Gate
ओरछा किला का मुख्य दरवाजा यह एक ऐसा गेट होता था जिसे युद्ध के समय में हाथियों द्वारा भी नहीं तोडा जा सकता था। । इस दरवाजे में लोहे के कांटे लगे होते थे जो कि हाथियों के आक्रमण से बचने के लिए थे। उस समय दुश्मन अपने हाथियों को नशा करा कर उनको आक्रमण के लिए तैयार कर देते तथा यह गेट उन्हें अंदर नहीं जाने देने में मददगार साबित होते थे, क्योंकि यह लोहे की कीलें उनको चुभ जाया करती थी तथा वह आक्रमण नहीं कर पाते थे। ओरछा किले के मुख्य द्वार से कभी भी सीधे अंदर का दृश्य दिखाई नहीं देता था। मुख्य द्वार के सामने दीवार होती और उसके साथ दरवाजे होते थे।
ओरछा का किला – राजा महल | Orchha ka Kila in Hindi – Raja Mahal
ओरछा के किले का मुख्य आकर्षण राजा का महल है। शाही महल के अंदर जालीदार खिड़कियां ,बालकनी और देवी देवताओं की पेंटिंग लगी हुई है। राजमहल की वास्तुकला प्राचीन वास्तु कला शैली पर आधारित है जिसमें देवी-देवताओं के साथ-साथ पशुओं के चित्रों को भी चित्रित किया गया है। महल तथा उसकी दीवारों पर और छतों पर शीशे का काम भी उसके सौंदर्य को बढ़ाने के लिए किया गया है।
राजा महल या शाही महल के चार अन्य आकर्षण हैं – दीवान ए आम, दीवान ए खास , पब्लिक आँगन और फॅमिली आँगन।
दीवान ए खास को मंत्रालय भी कहा जाता है। इस में एक बेसमेंट भी बनाया गया था जिसमें चारों तरफ से ठंडी हवा आने की वजह से यह गर्मी में भी शीतलता का एहसास कराता था। पब्लिक आंगन जिसमें लोहे के रिंग लगे हुए हैं जिन की सहायता से धूप से बचाने के लिए वहां पर तंबू या टेंट की व्यवस्था की जाती होगी। इनकी छतों पर राजपूती सेना के चित्र दिखाई देते हैं. जिसके अनुसार राजपूती सेना में पैदल सेना , हाथी सेना , घोड़ा सेना और अंत में ऊंट सेना हैं। फैमिली आंगन जहां पर महाराजा का महल बना हुआ है और उसके चारों तरफ आसपास में ही रानी के कमरे भी बने हुए हैं । हाथी की आकृति राजा महल का मुख्य आकर्षण कहा जा सकता है। यहां पर बहुत से गुप्त द्वार भी पाए गए हैं।
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ओरछा का किला – कुंवर गणेशी कक्ष | Orchha ka Kila in Hindi – Kunwar Ganeshi Kaksh
राजा की मुख्य रानी कुंवर गणेशी के कक्ष के अंदर भगवान राम के 10 अवतारों के चित्र प्रदर्शित किए गए हैं । भगवान विष्णु के 10 अवतार मत्स्य अवतार, कश्यप अवतार , नरसिंह अवतार, वान अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार, भगवान बुद्ध तथा घोड़ा / कल्कि अवतार । राज महल के अंदर एक हाथी की आकृति आकृति भी बनी हुई है जो कि महिलाओं की आकृति को मिलाकर बनाई गई है। रानी महल की दीवारें भी 2 मीटर तक चौड़ी हैं और वह आपस में एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं जिससे कि महल के अंदर तापमान को नियंत्रित किया जा सके।
ओरछा का किला – जहांगीर महल | Orchha ka Kila in Hindi – Jahangir Mahal
जहांगीर महल की वास्तुकला में मुगल और राजपूतानी संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है।जहांगीर महल का निर्माण 1605 से 1627 के बीच कराया गया । यह हिंदू इस्लामिक आर्किटेक्चर का एक अनोखा उदाहरण है। बुंदेलखंड के राजा वीर सिंह ने मुगल सम्राट जहांगीर के सम्मान में यह महल बनवाया था । कहा जाता है कि मुगल सम्राट जहांगीर यहां पर केवल एक रात्रि के लिए ही रुके थे ,उन्हीं के सम्मान में वीर सिंह ने इस महल का निर्माण कराया था। इस महल को रात्रि महल के नाम से भी जाना जाता है।
जहांगीर महल चार स्तंभ से बनाया गया है। यहां पर गेट पर तोरण बनी हुई है और पत्थरों पर नक्काशी की गयी है। इन पत्थरों पर हाथी की आकृतियों को उकेरा गया है।इसमें अंकित कलाकृतियों में पर्दा प्रथा के दृश्य प्रस्तुत किए गए हैं । जहांगीर महल दो मंजिली इमारत है जिसमें ऊपर जाने के लिए सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। जहांगीर महल से बेतवा नदी और महल के मंदिरों को देखा जा सकता था। जहांगीर महल में आर्केयोलॉजिकल म्यूजियम भी उपस्थित है। जहांगीर महल के साथ साथ ही वीर सिंह ने सावन भादो महल का निर्माण भी कराया था।
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ओरछा का किला – शीश महल | Orchha ka Kila in Hindi – Sheesh Mahal
ओरछा के किले में स्थित शीश महल एक विशाल कक्ष है जिसकी छत नक्काशीदार है। बुन्देलझंड राजा उद्दत सिंह ने इस शीश महल का निर्माण कराया था। शीश महल में बेसमेंट बना हुआ है जिस के झरो जिसमें झरोखे बने हुए हैं ताकि इस जगह को ठंडा रखा जा सके। अब इस महल को एक होटल में परिवर्तित कर दिया गया है।
ओरछा का किला -फूल बाग | Orchha ka Kila in Hindi – Phool Bag
फूल बाग ओरछा किले का एक मुख्य आकर्षण है। फूल बाग में पानी के फव्वारे की एक पंक्ति है जो कि सीधा महल मंडप तक जाती है। जिसमें 8 खंभे भी स्थित है।
ओरछा का किला – राजा राम का मंदिर | Orchha ka Kila in Hindi – Raja Ram Mandir
ऐसा कहा जाता है कि राजा मधुकर शाह खुद एक कृष्ण भक्त थे और उनकी पत्नी गणेश कुमारी एक राम भक्त थी। राजा मधुकर शाह ने गणेश कुमारी को भगवान कृष्ण के मंदिर वृन्दावन जाने के लिए कहा तो उन्होंने बड़े ही शालीनता के साथ इंकार करते हुए भगवान राम के मंदिर जाने की इच्छा जताई। तब मधुकर शाह ने कहा कि अगर ऐसा है तो क्या भगवान राम को तुम यहां ला सकती हो। इस पर गणेश कुमारी खुद अयोध्या भगवान राम के मंदिर गई और 21 दिन तक वहां तप करती रही, लेकिन जब भगवान प्रकट नहीं हुए तब उन्होंने वहीँ सरयू नदी में जान देने की कोशिश की । जैसे ही गणेश कुमारी नदी के अंदर गई तभी वहां उनकी गोद में भगवान राम की एक मूर्ति आ गई। तब भगवान ने उनसे कहा मैं तुम्हारे साथ चल सकता हूं लेकिन मेरी तीन शर्ते हैं।
उनकी पहली शर्त थी कि मैं यहां से जाकर जिस भी जगह पर बैठ जाऊंगा तो फिर वहां से नहीं उठूंगा। भगवान राम की दूसरी शर्त थी कि उनके बाद ओरछा में किसी दूसरे का राज नहीं हो सकेगा और तीसरी और अंतिम शर्त थी कि रानी भगवान राम को नंगे पैर एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों के साथ ओरछा ले जाएं।
रानी गणेश कुमारी ने खुशी-खुशी यह शर्त स्वीकार करी तथा इसके बाद उन्होंने मधुकर शाह को ओरछा में भगवान राम को विराजमान करने की बात कही। तब मधुकर शाह ने ओरछा महल के साथ एक चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया जहां पर भगवान राम की प्रतिमा को स्थापित करना था । रानी गणेश कुमारी जब मूर्ति को लेकर महल पहुंची तो उन्होंने भगवान राम की मूर्ति को रानी महल में रख दिया तथा जब चतुर्भुज महल में भगवान राम को स्थापित करने की तैयारी की गई तब वह मूर्ति किसी से भी वहां से उठाई नहीं गई। इसीलिए भगवान राम रानी महल में ही स्थापित हो गए।
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ओरछा का किला – राजा मधुकर प्रताप सिंह | Orchha ka Kila in Hindi – Raja Madhukar Pratap Singh
मधुकर शाह के बारे में भी एक कहानी प्रचलित है । कहा जाता है कि जिस समय मधुकर शाह का ओरछा में राज्य था उस समय अकबर उनका समकालीन था और अकबर ने राजाओं के अपने दरबार में आने के लिए शर्त रखी थी कि कोई भी राजा पगड़ी पहनकर और माथे पर तिलक लगाकर नहीं आएगा। लेकिन मधुकर सिंह अकबर के दरबार में पगड़ी पहनकर तथा माथे पर तिलक सजाकर गए। उनकी हिम्मत को देखकर अकबर उनसे प्रभावित हुआ और तब उन्हें शाह की उपाधि प्रदान की। तभी से मधुकर प्रताप सिंह को मधुकर शाह कहा जाने लगा। इसी के चलते उनके तेवर को देखते हुए अकबर को अपना यह फरमान वापस लेना पड़ा था।
ओरछा का किला – लाइट और साउंड शो | Orchha ka Kila in Hindi – Light and Sound Show
आज ओरछा किला मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के अंतर्गत आता है और इसके आकर्षण को बरकरार रखने के लिए किले के अंदर लाइट और साउंड शो ऑर्गेनाइज किए जाते हैं। साउंड और लाइट शो को हिंदी तथा इंग्लिश दोनों भाषाओं में ऑर्गेनाइज किया जाता है, जिसका समय शाम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक इंग्लिश भाषा में तथा 8:45 से 9:45 तक हिंदी भाषा में प्रदर्शित किया जाता है।
ओरछा का किला – आसपास के पर्यटक स्थल | Orchha ka Kila in Hindi – nearby Places
ओरछा का किला एक सुन्दर लोकेशन पर स्थित है और इसके आसपास अन्य पर्यटक स्थल उपस्थित है जो कि सहज ही टूरिस्ट्स का ध्यान अपनी और आकर्षित करते हैं जिनमें से प्रमुख हैं चतुर्भुज मंदिर ,लक्ष्मी नारायण मंदिर, सुंदर महल ,विभिन्न प्रकार की छतरियां और बेतवा नदी आदि।
ओरछा का किला घूमने का सही समय
ओरछा का किला घूमने के लिए अक्टूबर से लेकर मार्च तक बहुत ही सुहावना मौसम रहता है । मानसून का समय भी किले का भ्रमण करने के लिए उपयुक्त माना जाता है लेकिन गर्मी के समय यहाँ मौसम बहुत ज्यादा गर्म होता है। उन दिनों यहाँ का तापमान लगभग 45 डिग्री तक हो जाता है।
ओरछा कैसे पहुंचा जाए ? How to reach Orchha
ओरछा जाने के लिए हवाई जहाज द्वारा ,रेलगाड़ी द्वारा तथा सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। ओरछा के सबसे नजदीक एयरपोर्ट खजुराहो एयरपोर्ट है जो ग्वालियर में स्थित है। ग्वालियर से ओरछा की दूरी लगभग 140 किलोमीटर है। खजुराहो एयरपोर्ट से गाड़ियां ,टैक्सिया ओरछा के लिए हर समय उपलब्ध रहती है। ट्रेन द्वारा ओरछा पहुंचना बड़ा ही सरल है यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन झांसी रेलवे स्टेशन है जिसकी ओरछा से दूरी मात्र 15 से 18 किलोमीटर पड़ती है। बस द्वारा, गाड़ी, टैक्सी द्वारा सड़क मार्ग से आसानी से ओरछा के किले तक पहुंचा जा सकता है और इस पर्यटक स्थल के दर्शन किए जा सकते हैं।
किले को देखने का समय तथा टिकट | Time and Ticket for Orchha ka Kila
ओरछा का किला देखने के लिए समय निर्धारित किया गया है जो कि सुबह 9:00 बजे से लेकर शाम को 6:00 बजे तक है । इस समय आप किले का भ्रमण कर सकते हैं। प्रवेश करने के लिए मात्र 10 रुपए का टिकट लिया जा सकता है परंतु विदेशी सैलानियों के लिए यह टिकट 250रुपए में उपलब्ध है।
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मांडू का किला, जहाज महल हिंडोला महल | Mandu ka Kila Hindi , Jahaz Mahal Hindola Mahal
Mandu ka Kila Hindi | मांडू का किला : मांडू का किला मध्य प्रदेश के धार जिले में मांडवा क्षेत्र में स्थित है। मांडू का किला मध्य प्रदेश का एक प्रमुख ऐतिहासिक आकर्षण है। पंवार राजाओं द्वारा स्थापित मांडू का किला अपने गौरवशाली इतिहास और रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेम कहानी का प्रतीक है। समय समय पर मांडू पर अलग अलग राजाओं और रियासतों का अधिकार रहा है। इस आर्टिकल में आप मांडू किले के इतिहास और उससे जुडी प्रमुख ग़बतें जान सकते हैं।
मांडू शहर का इतिहास | Mandu ka Kila Hindi : History Mandu City
मांडू एक ऐतिहासिक नगर रहा है। विन्धयाचल पहाड़ियों में बसा मांडू समुद्र तल से लगभग २००० फ़ीट के ऊँचाई पर है। परमार या पंवार वंश के राजाओं ने इस नगर को स्थापित किया। परमार वंश के राजाओं में राजा हर्ष , राजा मुंज और राजा भोज का नाम प्रसिद्द है। पंवार वंश के समय में मांडू को मंडपा दुर्ग के नाम से जाना जाता है। मांडू नाम महर्षि माण्डलजय के नाम पर पड़ा है। इतिहास में मांडू को माण्डव नाम से भी जाना जाता था।
पंवार वंश के शासन के दौरान मांडू से लगभग ३५ किलोमीटर दूर स्थित धार नगर को राजधानी बनाया गया था। उस समय बाहरी आक्रांताओं के आक्रमणों के चलते कई बार उन्होंने अपनी राजधानी को धार से मांडू परिवर्तित किया। मांडू शहर ऊँचाई पर होने का कारण यहाँ पानी के समस्या रहती थी और इसीलिए वह अपनी राजधानी मांडू से धार बदलते थे। राजा जयवर्मन ने मांडू को सबसे पहले अपनी राजधानी बनाया क्योंकि धार पर मालवा के आक्रमण होने लगे थे। उन्होंने अपनी राजधानी धार से मांडू में परिवर्तित कर दी थी तथा वह अपने समय ,सुरक्षा और स्थिति के अनुसार राजधानी को बदल दिया करते थे।
13 वीं शताब्दी में यह क्षेत्र मुस्लिम शासकों के अधीन आ गया था। उस समय के शासक दिलावर खां ने मांडू का नाम बदल कर सादियाबाद कर दिया था। सादियाबाद का अर्थ होता है “खुशियों का शहर ”
इसके बाद अनेकों सत्ताएँ यहां पर बदलती रही। बाद में मुगलों ने भी यहां पर शासन किया। यह सफर गुजरात के बहादुर शाह से लेकर बाज बहादुर शाह तक जारी रहा। मांडू शहर तुगलकओ से स्वतंत्र होकर मालवा के अधीन आ गया उसके बाद मोहम्मद शाह तथा बाद में मुगल और मुगलों के बाद मराठा शासकों ने वहां पर लंबे समय तक राज किया।
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मांडू के किला का इतिहास | Mandu ka Kila Hindi : History
मांडू का किला अपनी सामरिक स्थिति तथा प्राकृतिक सुरक्षा के कारण एक महत्वपूर्ण सैन्य चौकी हुआ करती थी। एक तरफ विन्धयाचल की पहाड़ियां और दूसरी तरफ से नर्मदा नदी इसे प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते थे। पहले राजा भोज ने अपनी राजधानी उज्जैन शहर और बाद में धार को बनाया था। राजा भोज ने मांडू को एक सुरक्षित स्थान मानकर एक किले के रूप में स्थापित किया। मांडू क्षेत्र अपने इस अद्भुत किले के लिए बहुत ही अधिक प्रसिद्ध है। इस किले की सुंदरता तथा इसकी कलाकृतियां देखने लायक हैं और बड़ी संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
मांडू का किला की परिधि लगभग 82 किलोमीटर है और इसके अंदर 40 स्मारक बनाए गए हैं। मांडू का किला भारत का सबसे बड़ा किला भी माना जाता है। मांडू किले के अधिकतर स्मारक 1401 से लेकर 1526 ईसवी में बनवाए गए थे। उस समय यहां पर नई नई इमारतों का निर्माण कराया गया था। 125 सालों को उस समय का स्वर्णिम काल कहा जाता है ,बाद में मुस्लिम सुल्तान दिलावर खान गौरी तथा उनके बेटे होशंग शाह ने यहां पर राज किया और अनेकों इमारतों का निर्माण भी कराया ।
इसके बाद अनेकों सत्ताएँ यहां पर बदलती रही। बाद में मुगलों ने भी यहां पर शासन किया। यह सफर गुजरात के बहादुर शाह से लेकर बाज बहादुर शाह तक जारी रहा। मांडू शहर तुगलकओ से स्वतंत्र होकर मालवा के अधीन आ गया उसके बाद मोहम्मद शाह और बाद में मुगल और मुगलों के बाद मराठा शासकों ने वहां पर लंबे समय तक राज किया।
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मांडू का किला : मुख्य आकर्षण | Mandu ka Kila Hindi : Main Attractions
मांडू के किले को तीन मुख्य समूह में समझा जा सकता है जिनमें से पहला है शाही समूह, दूसरा केंद्रीय समूह और तीसरा रेवा कुंड। शाही समूह के अंतर्गत जहाज महल तथा हिंडोला महल आते हैं। यह दोनों महल ही अपनी अनूठी शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध है।
मांडू का किला : गेट | Gates : Mandu ka Kila Hindi
मांडू में प्रवेश करने के लिए कुल 12 दरवाजे हैं जिनमें से मुख्य दरवाजे आलमगीर दरवाजा, तारापुर दरवाजा ,कमानी दरवाजा और दिल्ली दरवाजा है। इनके अलावा दूसरे दरवाजे भी जैसे रामगोपाल दरवाजा, भी प्रमुख है परन्तु इन सब में दिल्ली दरवाजा प्रमुख है।
मांडू का किला : जहाज महल | Jahaz Mahal : Mandu ka Kila Hindi
जहाज महल यहाँ का एक प्रसिद्ध आकर्षण है। इस महल का निर्माण खिलजी वंश के शासकों द्वारा किया गया था। यह महल दो तालाबों , कपूर तालाब और मुंज तालाब के बीच बना हुआ है जो पानी के जहाज के जैसा लगता है और इसीलिए इस महल को जहाज़ महल कहा जाता है।
मांडू का किला : हिंडोला महल | Hindola Mahal : Mandu ka Kila Hindi
मांडू का प्रसिद्द हिंडोला महल तिरछी दीवारों जो 77 डिग्री पर झुकी हैं , से बना हुआ है। हिंडोला का अर्थ होता है झूला। तिरछी झुकी दीवारों के कारन यह महल एक झूले जैसा लगता है और इसीलिए इसे हिंडोला महल कहा जाता है। इस महल की छत भी नहीं है और रानियां यहां झूला झूला करती थी तब इस महल को अस्थायी रूप से ढक दिया जाता था। यह महल होशंगशाह द्वारा बनवाया गया था और यह उस समय मुख्य दरबार के रूप में जाना जाता था।
हिंडोला महल 4 किलोमीटर के परिसर में फैला हुआ हैजिसको घूमने में करीब 2 घंटे का समय चाहिए। हिंडोला महल मालवा शैली की वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण है।
केंद्रीय समूह के अंदर होशंगशाह का मकबरा, जामी मस्जिद, तथा अशर्फी महल आते हैं।
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मांडू का किला : होशंगशाह का मकबरा | Hoshangshah Maqbara : Mandu ka Kila Hindi
होशंगशाह मालवा के गोरी शासक दिलावर खां का बेटा था। यह मार्वल का बना मकबरा शाहजहां के लिए ताजमहल की प्रेरणा बना। ऐसा कहा जाता है कि ताज महल के निर्माण से पहले शाहजहां ने अपनी शिल्पकारों की अलग अलग जगह जा कर अलग अलग इमारतों के निर्माण की बारीकियों को जानने के लिए भेजा था। उस दौरान वे शिल्पकार मांडू भी आये थे और यहाँ होशंगशाह के मकबरे का अध्ययन भी किया था।
मांडू का किला : जामी मस्जिद | Jami Masjid : Mandu ka Kila Hindi
मांडू के किले में स्थित जामी मस्जिद की विशालता को देखकर अचंभा होता है। यह एक ऐसी मस्जिद है जिसमें हिंदू वास्तुकला के प्रमाण मिलते हैं। मस्जिद के अंदर एक बड़ा सा आंगन है, अनेकों खंभे हैं और विशाल प्रवेश द्वार बने हुए हैं। इस स्मारक की सुंदरता यहां रुक जाने के लिए पर्यटकों को प्रेरित करती है। जामी मस्जिद के आसपास के परिसर में हिंदू कलाकृति को चित्रित किया गया है। यहां पर खंभों की कलाकृति में हाथियों के चित्र दिखाए गए हैं । जामी मस्जिद के पास ही लोगों के लिए रुकने की व्यवस्था भी है जिसके लिए वहां पर एक धर्मशाला भी बनाई गई है।
मांडू का किला : अशर्फी महल | Asharfi Mahal : Mandu ka Kila Hindi
अशर्फी महल मांडू स्थित एक मदरसा रहा है जहाँ बच्चे पढ़ने के लिए आया करते थे। इस महल के नाम के पीछे एक दिलचस्प कहानी बताई जाती है। कहा जाता है कि खिलजी वंश के ग़यासुद्दीन खिलजी ने अपनी रानियों को अपनी सेहत ठीक रखने के लिए इस महल के सीधे चढ़ने की सलाह दी और वादा किया कि हर एक सीढ़ी चढ़ने के लिए वह उन्हें एक अशर्फी देगा। शायद इसीलिए इस महल को अशर्फी महल कहा गया।
रेवा कुंड मुख्य समूह से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बाज बहादुर शाह तथा रानी रूपमती के प्रेम की गवाही देता है।
मांडू का किला : रानी रूपमती का महल | Rani Roopmati Mahal : Mandu ka Kila Hindi
मालवा के शासक बाज बहादुर ने अपनी रानी रूपमती के लिए इस खूबसूरत महल का निर्माण कराया था। रानी रूपमती एक हिन्दू लड़की थी जो रोज सुबह नर्मदा नदी के दर्शन करने के बाद ही अपना भोजन लेती थी। बाज बहादुर ने रानी रूपमती की इसी आदत के चलते ऊँचाई पर इस महल का निर्माण कराया जिससे कि वह यहाँ से रोज नर्मदा नदी के दर्शन कर सके।
बाज बहादुर और रानी रूपमती की कहानी यहाँ खासी प्रसिद्द है। रानी रूपमती ,अपने नाम के अनुसार ही उसके अंदर गुण भी अत्यधिक थे। वह बेहद रूपवती स्त्री थी। खूबसूरत होने के साथ-साथ रूपमती गायन कला में भी निपुण थी। रानी रूपमती अपनी सहेलियों के साथ गांव झूमते गाते जा रही थी तभी वहां से बाज बहादुर शाह शिकार के लिए निकले तथा उसने रूपमती का मधुर गाना सुना। बाज बहादुर शाह को संगीत का शोक था। उसने रूपमती को देखा और उससे प्रभावित हो कर शादी का प्रस्ताव रखा और मांडू चलने के लिए आग्रह किया। उस समय रूपमती ने यह शर्त रखी कि वह अपना धर्म कभी नहीं बदलेगी। इस बात पर बाज बहादुर शाह सहमत हुआ और दोनों का विवाह हिंदू और मुस्लिम दोनों रीतियों से संपन्न हुआ।
रूपमती को प्रतिदिन नर्मदा नदी के दर्शन करने थे और उनकी पूजा-अर्चना करनी होती थी। इसीलिए एक ऊंची पहाड़ी पर रानी रूपमती के महल का निर्माण कराया गया था ताकि सुबह रानी रूपमती वहां से नर्मदा नदी की प्रार्थना और उनके दर्शन कर सकती थी। धीरे-धीरे रानी रूपमती के सौंदर्य और उनकी कला के चर्चे चारों तरफ फैलने लगे थे। उधर अकबर धीरे-धीरे अपना साम्राज्य बढ़ा रहा था। तभी उसने 1761 में मांडू पर हमला कर दिया। इस युद्ध में बाज बहादुर की सेना हार गयी और हमले में बाज बहादुर शाह की मृत्यु हो गई। अब रानी रूपमती ने अकबर की दास्तान स्वीकार करने के बजाय अपनी जीवन लीला को समाप्त करने का निश्चय किया तथा उन्होंने जहर खाकर अपनी जान दे दी। इस तरह से रानी रूपमती और बाज बाज बहादुर शाह की प्रेम कहानी का दुखद अंत हो गया था लेकिन आज भी माडू में खड़े इस ऐतिहासिक महल में इनकी प्रेम कहानी की गवाही दी जा रही है।
मांडू किले के मुख्य अन्य आकर्षण जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं उनमें किले के दरवाजे जो 45 किलोमीटर के दायरे में आते हैं, यहां मांडू किले के अंदर अनेक महलों ,सजावटी नहरों तथा स्नान मंडलों के खंडहर आज भी मिलते हैं।
श्री मांडवगढ़ तीर्थ | Shri Mandavgarh Teerth
श्री मांडवगढ़ तीर्थ एक जैन मंदिर है जो अनुयायियों के लिए धार्मिक महत्त्व का स्थान है। श्री मांडवगढ़ तीर्थ भगवान सुपार्श्वनाथ को समर्पित मंदिर है जो जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर हुए। अपने जीवन काल में जैन धर्म की शिक्षा का प्रसार करने के बाद सम्मेद शिखर जी पर उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था।
मांडू को एक ही दिन में पूरा देख पाना संभव नहीं है वहां पर चलते-चलते पैर दुख जाते हैं लेकिन व्यक्ति के अंदर महल को देखने की इच्छा खत्म ही नहीं होती है। इस किले के अंदर एक पूरी की पूरी दुनिया रची बसी हुई है।
Mahakal Mandir Ujjain Hindi | महाकाल मंदिर उज्जैन
मांडू घूमने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Mandu
मांडू का किला देखने जाने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का समय सबसे अच्छा है। गर्मियों के मौसम में यहाँ काफी तेज़ धूप होने के कारण किले को पूरी तरह से देख पाना संभव नहीं है।
मांडू का किला कैसे पहुँचे | How to reach Mandu ka Kila
मांडू पहुंचने के लिए अगर आप फ्लाइट से ट्रेवल कर रहे हैं तो इंदौर स्थित अहिल्या बाई होल्कर एयरपोर्ट सबसे नजदीक है। इंदौर से मांडू तक के दूरी लगभग ९० किलोमीटर है जो सड़क के रास्ते बस या टैक्सी द्वारा तय की जा सकती है।
मांडू का किला पहुंचने के लिए अगर आप ट्रेन से ट्रेवल कर रहे हैं तो धार रेलवे स्टेशन से मांडू तक का सफर बस या टैक्सी से या फिर कार रेंट पर ले कर तय कर सकते हैं।
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मखाना खाने के फायदे | Makhana khane ke fayde | Makhana in Hindi
Makhana in Hindi | मखाना खाने के फायदे : मखाना , लोटस सीड , फॉक्स नट या फूल मखाना , ये सभी नाम एक खास सुपरफूड के हैं जो एक एक्वेटिक प्लांट से मिलते हैं। कमल के बीज दरअसल कमल के पौधे का हिस्सा होता है। कमल का फूल या वाटर लिली , दोनों से ही मखाना प्राप्त किया जाता है।
मखाने मुख्य रूप से दलदली जमीन में भारत के साथ साथ अन्य दक्षिण एशिया के देशों में उगाये जाते हैं। थाईलैंड , इंडोनेशिया जैसे साउथ ईस्ट एशियाई देश में मखाना बड़ी मात्रा में होता है। दुनिया में मखाना उत्पादक देशों में चीन पहले नंबर पर आता है।
भारत में मखाने का उत्पादन बिहार , बंगाल और उत्तर प्रदेश राज्यों में होता हैं। बिहार से लगभग 80 % मखाना प्राप्त होता है। बिहार में मिथिलांचल के मधुबनी क्षेत्र में सबसे ज्यादा मखाने का उत्पादन होता है। भारत से मखाने का एक्सपोर्ट पश्चिमी देशों में किया जाता है।
भारत में मखाना आयुर्वेद के अनुसार बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। मखाना सेहत का खजाना होता है और एक पूर्ण आहार के रूप में भी जाना जाता है। मखाने को काला हीरा भी कहा जाता है। आयुर्वेद में मखाने को अनेकों बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल करने के सलाह दी जाती है।
मखाना कैसे बनता है | Makhana in Hindi
मखाना को कमल के पौधे से निकलना बहुत मेहनत और एक खास तरह के स्किल वाला काम है। इस लोटस सीड को तालाब से निकलने के लिए खास तरह के बांस के पाइप और टोकरी का इस्तेमाल किया जाता है।मखाना एक शैल के अंदर होता है। जब मखाने के बीज तालाब से इकट्ठे किये जाते हैं तो इसके बाद इन्हें तुरंत साफ़ करना बेहद जरूरी होता है।
बीजों को सूखने के बाद इन्हे भूना जाता है और फिर इसके बाहरी शैल को तोड़कर उसके अंदर से सफ़ेद मखाने को निकाला जाता है। इस तरह से यह साफ़ सुथरा मखाना हमारे घरों तक पहुंच पता है।
मखाने का नुट्रिशन प्रोफाइल | Nutrition Profile : Makhana in Hindi
मखाने का नुट्रिशन प्रोफाइल इस प्रकार है :
100 ग्राम मखाने में
कैलोरी : 347
कैल्सियम : 60 मिली ग्राम
प्रोटीन : 9.7 ग्राम
फैट : 0.1 ग्राम
कार्बोहायड्रेट : 75 ग्राम
फाइबर : 14.5 ग्राम
आयरन : 1.4 मिलीग्राम
मैग्नीशियम : 67.2 मिलीग्राम
फॉस्फोरस : 200 मिली ग्राम
सोडियम : 210 मिलीग्रामइसके अलावा मखाना विटामिन बी1 और ओमेगा 3 फैटी एसिड्स भी शरीर को प्रदान करता है।
मखाने से मिलने वाले लाभ | Benefits f eating : Makhana in Hindi
मखाने के अंदर एंटीऑक्सीडेंट गुणों की भरपूर मात्रा होती है । मखाने के अंदर कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत फायदेमंद होते हैं। एक शोध के अनुसार मखाने में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीट्यूमर प्रभाव पाए जाते हैं।
हार्मोनल बैलेंस | Makhana for Hormonal Balance
मखाना हार्मोन्स को बैलेंस करता है और इसीलिए खासकर प्री मेंस्ट्रुअल के समय मखाना खाना सेहत के लिए अच्छा होता है।
पाचन के लिए | Makhana for Digestion
100 ग्राम मखाने में लगभग 14 ग्राम फाइबर होता है। फाइबर दरअसल पाचन के लिए बहुत सहायक होता है। मखाने को रोज अपनी डाइट में शामिल करने से पेट से जुडी समस्याओं को ठीक करने में मदद मिलती है। मखाना भूख को कण्ट्रोल करता है और इससे वजन को मैनेज करने और कण्ट्रोल करने मेंमदद मिलती है। वजन घटाने के लिए मखाना का सेवन बहुत मदद करता है।
मखाना हार्ट के लिए | Makhana for healthy heart
मखाने में मैग्नीशियम की मात्रा इसे हार्ट के लिए बहुत अच्छा बनाती है। मैग्नीशियम शरीर के लिए एक आवश्यक तत्व है। मैग्नीशियम की कमी हार्ट के लिए नुकसानदायक है और हार्ट अटैक के खतरे को बढ़ा देती है। मखाना हेल्दी हार्ट के लिए मैग्नीशियम का अच्छा सोर्स है।
मखाना एंटी एजिंग के लिए | Makhana for Anti Aging
मखाना एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है जिससे त्वचा पर आने वाले झुर्रियों को दूर किया जा सकता है। इसमें पाए जाने वाले एनजाइम्स कोलेजन के मात्रा को बढ़ाने के लिए मददगार होते हैं। मखाने को पाउडर बना कर फेस पैक बनाने में भी इस्तेमाल करते हैं।
मखाना दांतों के लिए | Makhana for Teeth and Gums
मखाने के अंदर एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोब इफेक्ट पाए जाते हैं। मखाने के ये गुण दांतों और मसूड़ों से संबंधित समस्याओं को दूर करने में सहायता करते हैं जैसे कि मसूड़ों में सूजन और बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं।
किडनी के लिए मखाने | Makhana for healthy kidney
मखाने में फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो शरीर को डीटॉक्स करने में मदद करते हैं। मखाने एसिडिटी को काम करने में मदद करते हैं। मखाने के ये गुण इसे किडनी स्टोन से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी बनाते हैं।
भारत में महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद स्पेशल डाइट दी जाती है जिसमें सूखे मेवे और फलों की काफी मात्रा होती है। मखाना इस स्पेशल डाइट का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। मखाने को अक्सर लड्डू बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मखाना हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज कंट्रोल, अनिद्रा और जोड़ों के दर्द में में भी मददगार होता है।
मखाने का इस्तेमाल कैसे करें | How to consume Makhana
मखाना एक सूखे मेवे के श्रेणी में आता है। अक्सर इसे एक खास मेवे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। व्रत और पूजा में मखाना खास तौर पर इस्तेमाल होता है। इसका इस्तेमाल भून कर किया जाता है तो कभी इसकी सब्ज़ी भी बनायीं जाती है। मखाने के खीर भी काफी प्रसिद्द है और आम तौर पर व्रत या त्यौहार के मौके पर घर में तैयार की जाती है।
मखाना एक सम्पूर्ण आहार है और इसीलिए इसे अपनी डाइट में इस्तेमाल करना चाहिए। कितना मखाना रोज खा सकते हैं यह काफी कुछ आपकी सेहत पर निर्भर करता है। आम तौर पर मखाना सेहत के लिए नुकसान नहीं करता है लेकिन फिर भी अच्छा रहता है कि इसे डाइट में इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह ली जाये।
मखाना कितने खाने चाहिए | How much Makhana
दिन भर में 25 से 30 ग्राम मखाने खाये जा सकते हैं। अच्छा रहे कि अगर मखाने को बिना घी में फ्राई किये इस्तेमाल किया जाये।
मखाने को स्टोर कैसे करें | How to store – Makhana in Hindi
मखाने को सही तरीके से रखने के लिए किसी एयरटाइट कंटेनर का इस्तेमाल करना चाहिए। मखाने को फ्राई करके उसमें उसे नमक के साथ मिलाकर डब्बे में स्टोर करके रखा जाता है। मखाने को कभी भी फ्रिज में नहीं रखना चाहिए वरना इसके अंदर नमी आ जाती है और यह जल्दी खराब हो जाते हैं। मखाना खरीदते समय ध्यान रखना चाहिए कि कोई कीड़े वगैरह अंदर ना हो और दूसरा उसमें नमी नहीं होनी चाहिए और मखाना बहुत पुराना भी नहीं होना चाहिए।
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Nileshwar Mahadev Mandir Haridwar Hindi | नीलेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार
Nileshwar Mahadev Mandir Haridwar Hindi : नीलेश्वर मंदिर नील पर्वत की एक पहाड़ी पर स्थित भगवान नीलेश्वर यानी भगवान महादेव को समर्पित हरिद्वार और ऋषिकेश का एक विशेष मान्य मंदिर है। नीलेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव अधिष्ठाता देवता को नील पर्वत के स्वामी और एक रक्षक के रूप में पूजा जाता है। नीलेश्वर महादेव मंदिर के चारों तरफ प्राकृतिक सुंदरता बिखरी हुई है। यहाँ न केवल शिव भक्त मंदिर दर्शन के लिए आते हैं बल्कि मंदिर के शांत वातावरण और इसके चारों तरफ के प्राकृतिक दृश्यों को निहारने के लिए प्रकृति प्रेमी भी पहुंचते हैं।
नीलेश्वर महादेव मंदिर से जुडी पौराणिक कहानी | Nileshwar Mahadev Mandir Hairdwar Hindi Stories
हरिद्वार स्थित नीलेश्वर मंदिर के बारे में अनेकों कहानियां प्रचलित हैं। मंदिर से सम्बंधित पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव जब राजा दक्ष की पुत्री सती से विवाह करने के लिए जब बारात ले कर जा रहे थे तब उन्होंने नील पर्वत पर रुकने का निश्चय किया था। विवाह के बाद वह यहाँ देवी सती के साथ कुछ समय के लिए यहाँ पर रहे थे।
नीलेश्वर महादेव मंदिर से सम्बंधित एक और प्रचलित कहानी के अनुसार जब अपने पिता के आयोजित यज्ञ में देवी सती बिना बुलाये ही पहुँच गयी तो वहां उन्हें काफी अपमानित किया गया। इससे दुखी हो कर देवी सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर अपनी जान दे दी थे। जब भगवन शिव को यह पता चला तो दुःख में क्रोधित हुए भगवान ने तांडव किया था जिस से उनका सारा शरीर नीला पड़ गया था। माना जाता है कि इसी पर्वत पर उन्होंने तांडव किया था इसीलिए इसे नील पर्वत कहा गया। नीलपर्वत पर स्वयंभू शिवलिंग को नीलेश्वर महादेव कहा गया और इसीलिए इस मंदिर को नीलेश्वर महादेव मंदिर कहा जाता है।
प्रचलित मान्यता के अनुसार नीलेश्वर महादेव मंदिर के आस पास पेड़ों पर लगने वाले फलों को तोडा नहीं जाता बल्कि जब फल अपने आप पक कर गिर जाते हैं तो उन्हें प्रशाद के रूप में चढ़ाया जाता है। नीलेश्वर महादेव मंदिर की दीवारें नीले रंग में रंगी हुई हैं।
Pushkar City Hindi | पुष्कर शहर
नीलेश्वर महादेव मंदिर का महत्त्व | Nileshwar Mahadev Mandir Hindi Religious Importance
नीलेश्वर मंदिर एक प्राचीन और विशेष महत्त्व का मंदिर है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती को अनेकों रूपों में पूजा जाता है। नीलेश्वर महादेव मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग को एक हजार शिवलिंग का रूप माना जाता है। हिन्दू कैलेंडर के सावन महीने में आने वाली शिवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ गंगा नदी से पानी ला कर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
सावन के महीने में यहाँ हर सोमवार को विशेष प्रार्थना का आयोजन होता है। नीलेश्वर महादेव मंदिर को दक्ष महादेव कनखल स्थापित मंदिर के समय का ही माना जाता है।
Pavagadh Mandir Hindi | पावागढ़ मंदिर शक्तिपीठ | पावागढ़ कालिका माता मंदिर
नीलेश्वर महादेव मंदिर में पूजा का समय | Nileshwar Mahadev Mandir Haridwar Hindi – Worship Timings
नीलेश्वर महादेव मंदिर सुबह 6 बजे से शाम को 8 बजे तक श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। पूरे वर्ष ही मंदिर में शिव भक्त दूर दूर के इलाकों से दर्शन के लिए आते रहते हैं।
नीलेश्वर महादेव मंदिर में त्यौहार और उत्सव | Nileshwar Mahadev Mandir Hindi Festivals
भगवान शिव को समर्पित नीलेश्वर महादेव मंदिर सावन महीने में शिवरात्रि के मौके पर श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र होता है।इस मौके पर यहाँ विशेष प्रार्थनाओं का आयोजन होता है। इसके अलावा कुम्भ और अर्ध कुम्भ के दौरान भी यहाँ शिव भक्त बड़ी संख्या में आते हैं .महाशिवरात्रि को भी उत्सव के तरह मनाया जाता है।
Mahakal Mandir Ujjain Hindi | महाकाल मंदिर उज्जैन
नीलेश्वर महादेव मंदिर के आस पास | Nileshwar Mahadev Mandir Hindi – nearby places
नीलेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार के सबसे प्रसिद्द आकर्षण हर की पौड़ी से लगभग 8 किलोमीटर के दूरी पर है। चंडी देवी मंदिर , मनसा देवी मंदिर , बिल्केश्वर महादेव मंदिर , हरिद्वार से कुछ ही दूरी पर स्थित कनखल का दक्ष महादेव मंदिर , राजा जी नेशनल पार्क जैसे प्रसिद्द धार्मिक और टूरिस्ट आकर्षण यहाँ से कवर किये जा सकते हैं।
हरिद्वार से कुछ ही दूरी पर ऋषिकेश स्थित है जो उत्तराखंड के सबसे ज्यादा प्रसिद्द शहरों में से एक है। ऋषिकेश में अक्सर टूरिस्ट्स रिवर राफ्टिंग , माउंटेन साइकिलिंग, बुंजी जंपिंग और ऐसे ही कई एडवेंचर एक्टिविटी के लिए आना पसदं करते हैं।
नीलेश्वर महादेव मंदिर हरिद्वार कैसे पहुचें | How to reach Nileshwar Mahadev Mandir Haridwar
नीलेश्वर महादेव मंदिर फ्लाइट से पहुंचने के लिए देश के किसी भी इंटरनेशनल या डोमेस्टिक एयरपोर्ट से उत्तराखंड के देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट के लिए सीधे या कनेक्टेड फ्लाइट से पहुंच सकते हैं। देहरादून से हरिद्वार तक के लिए सड़क के रास्ते या फिर ट्रेन से पहुंच सकते हैं।
हरिद्वार देश के रेल नेटवर्क से अच्छी तरह से कनेक्टेड है। हरिद्वार स्टेशन से नीलेश्वर महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए ऑटो से आ सकते हैं। इसके अलावा हरिद्वार एक प्रसिद्द धार्मिक और टूरिस्ट डेस्टिनेशन होने के कारण यहाँ प्राइवेट टूर ऑपरेटर द्वारा संचालित बसों या फिर स्टेट ट्रांसपोर्ट के बसों द्वारा पहुंच सकते हैं।
Rishikesh Tourist Places in Hindi | ऋषिकेश टूरिस्ट प्लेस
हरिद्वार आने का सबसे अच्छा समय | Best time to visit Haridwar
हरिद्वार आने के लिए अक्टूबर से मई तक का मौसम अच्छा रहता है। इस समय पर हरिद्वार का मौसम सुहाना रहता है। अगर आप धार्मिक उद्देश्य से हरिद्वार आना चाहते हैं और यहाँ के मंदिरों में आयोजित होने वाले उत्सवों में भाग लेना चाहते हैं तो जुलाई अगस्त के महीने में आने वाली शिवरात्रि और फरवरी महीने में यहाँ आ कर महाशिवरात्रि के उत्सव में शामिल हो सकते हैं।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने में महा गंगा स्नान करने के लिए देश के कोने कोने से यहाँ श्रद्धालु आते हैं।