Kumbhalgarh Fort Hindi : कुम्भलगढ़ किला राजस्थान के राजसमंद जिले में अरावली की पहाड़ियों की पश्चिमी साइड में पहाड़ियों के बीच में बना हुआ है। कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के शासकों द्वारा बनवाया गया है। इस किले का नाम मेवाड़ के महान राणा , राणा कुम्भा के नाम पर है। कुम्भलगढ़ किला एशिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार के रूप में भी जाना जाता है।
कुम्भलगढ़ किला पहुंचने के लिए | How to reach – Kumbhalgarh Fort Hindi
उदयपुर से कुम्भलगढ़ किला ८४ किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में बना हुआ है। कुम्भलगढ़ के लिए उदयपुर से सड़क के रास्ते २ घंटे में पंहुचा जा सकता है। कुम्भलगढ़ के लिए उदयपुर से सड़क का रास्ता बेहद सुन्दर और प्रकृति से भरपूर है।
अगर आप मानसून में जाते है तो बारिश के बाद आसमान बिलकुल साफ़ होता है और दूर दूर तक हरियाली और पहाड़ियां दिखाई देते हैं।
अगर आप ट्रेन से सफर कर रहे हैं तो कुम्भलगढ़ किला पहुंचने के लिए सबसे पास स्टेशन / जंक्शन फालना है जो की देश के बड़े रेलवे स्टेशन्स से कनेक्टेड है। यहाँ से आप टैक्सी या बस से भी सफर कर सकते हैं।
अगर आप फ्लाइट से सफर कर रहे हैं तो भी उदयपुर एयरपोर्ट कुम्भलगढ़ किला पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का एयरपोर्ट हैं और वहां से टैक्सी ली जा सकती हैं।
कुम्भलगढ़ किला : कब और किसने बनवाया | History – Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ , जैसे की नाम से लगता हैं , इसका कनेक्शन राणा कुम्भा का साथ हैं। उन्ही के नाम पर इस किले का नाम कुम्भलगढ़ पड़ा हैं। उनका पूरा नाम राणा कुम्भकरण था। उनके समय में मेवाड़ सबसे ज्यादा सुरक्षित रहा। राणा कुम्भा को मेवाड़ के ऐसे शासक के रूप में जाना जाता हैं जिसने कभी कोई युद्ध नहीं हारा। १५वी शताब्दी में बना कुम्भलगढ़ किला एक अजय दुर्ग के रूप में जाना जाता है। इस दुर्ग में राणा कुम्भा के बाद राणा सांगा ने भी निर्माण कार्य कराया।
कुम्भलगढ़ किला : इतिहास | Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किला कब बना , इतिहासकारों के अनुसार ये कहना मुश्किल है। इस किले के अंदर मौर्या काल के मंदिर और भवन भी मौजूद हैं। ये मंदिर और भवन छठवीं सदी में मौर्य शासक राजा सम्प्रति द्वारा बनवाये गए हैं। इससे पहले तीसरी सदी के भी कुछ अवशेष इस किले के अंदर मिले हैं।
राजा सम्प्रति, मौर्या वंश के सम्राट अशोक के पौते और एक शांतिप्रिय राजा जो जैन धर्म के अनुयायी थे, उन्होंने ईरान से लौटते समय यहाँ अपना डेरा कुछ समय के लिए डाला था और उसी समय में कुछ मंदिर यहाँ बनवाये थे। उस समय इस जगह को मत्स्येन्द्र नगर कहा जाता था और इस किले को मत्स्येन्द्र दुर्ग कहा जाता था। १४वी सदी में राणा कुम्भा के दादा , राणा लाखा ने इस जगह को चौहानवंश से युद्ध में जीत लिया था और उसके बाद इस पर मेवाड़ का शासन ही रहा।
महाराणा कुम्भा ने जब कुम्भलगढ़ किला बनवाया तो उन मंदिरों को भी किले के चारदीवारी के अंदर रखा जिन्हें राजा सम्प्रति ने बनवाया था। महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ में कुल ३२ किले बनवाये थे और उनमें कुम्भलगढ़ का किला सबसे बड़ा है। इस किले को सुरक्षात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए राज परिवार के लिए बनवाया गया था। कुम्भलगढ़ किला बनने में कुल १५ वर्ष का समय लगा। सन १४४३ से ये किला बनना शुरू हुआ और सन १४५८ में इसका निर्माण पूरा हुआ। इस किले के चारों और की दीवार चीन के दीवार के बाद दूसरी सबसे बड़ी दीवार है।
कुम्भलगढ़ किला मालवा को मेवाड़ से अलग करता था। उस सदी में भारत पर खिलजी के बहुत आक्रमण हो रहे थे। चित्तौड़गढ़ के राजा रतन सिंह , उनकी रानी पद्मिनी और अलाउद्दीन खिलजी के उनके किले पर आक्रमण के बारे में तो हम सभी जानते हैं। उसके बाद भी खिलजी और उसके वंशज चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण करते रहे थे। इधर गुजरात के शाह शासक भी मेवाड़ के तरफ बढ़ रहे थे। इस सब को देखते हुए राणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ को सुरक्षित स्थान के रूप में चुना। उन आक्रमणों से मेवाड़ को सुरक्षित रखने के लिए ये किला बनवाया गया।
गुजरात के शासक अहमद शाह जब इस किले पर जीत हासिल नहीं कर सका तो उसने यहाँ स्थापित वन देवी के मंदिर को काफी नुक्सान पहुंचाया। उसने सुना था की इस किले की रक्षा खुद वनदेवी करती है , इसे से उसने वनदेवी के मंदिर को नुक्सान पहुंचाया।
कुम्भलगढ़ किला पहाड़ियों के बीच में एक छिपा हुआ किला है। ये किला हमेशा विदेशी आक्रमणों से सुरक्षित रहा और मुग़लों के आक्रमण के समय मेवाड़ का एक सुरक्षित गढ़ बना रहा।
ऐसे कई बार हुआ जब मेवाड़ के राजाओं ने बाहरी आक्रमण से बचने के लिए कुम्भलगढ़ किले में शरण ली। महाराणा प्रताप के पिता और मेवाड़ के राजा उदय सिंह को उनके जीवन की रक्षा के लिया चित्तौड़गढ़ से छुपा कर पन्ना धाय द्वारा कुम्भलगढ़ किला भेजा गया था। इस किले में उन्होंने सुरक्षित रह कर उन्होंने अपने राज्य को वापिस प्राप्त किया था।
सन १५७७ में एक बार ६ महीने के लिए कुम्भलगढ़ पर अकबर के सेनापति शाहबाज़ खान ने अधिकार कर लिया था लेकिन १५७८ में महाराणा प्रताप ने इस किले को वापिस जीत लिया।
कुंभलगढ़ किला महाराणा प्रताप के जन्मस्थान के लिए भी प्रसिद्द है।
कुम्भलगढ़ किला आर्किटेक्चर | Architecture – Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किला समुद्र तल से ११०० मीटर की ऊँचाई पर बना है। इस किले को पुराने राजपूती शैली में बनाया गया है। हिन्दू देवी देवताओं से प्रेरित नक्काशी किले की दीवारों पर देखने को मिलती है। राजस्थान के इन राजपूती शैली में बने किलों में गेट को पोल कहा जाता है। कुंभलगढ़ किले में कुल सात पोल हैं।
किले की बाहर की दीवार 15 फ़ीट मोटी है। इस किले को सुदृढ़ किलेबंदी के लिए भी जाना जाता है। किले की बाहर की दीवार इतनी चौड़ी है कि इस चौड़ाई में जिस पर 4 घुड़सवार एक साथ किले की पहरेदारी के लिए चारों और घूमते रहते थे। गाइड के अनुसार किले की दीवार 36 किलोमीटर लम्बी नहीं है बल्कि इस दीवार का क्षेत्र / एरिया 36 वर्ग किलोमीटर है।
कुम्भलगढ़ किले के अंदर कुल 360 हिन्दू और जैन मंदिर हैं। इसमें 300 जैन मंदिर हैं और 60 हिन्दू मंदिर हैं। कुम्भलगढ़ के किले में राणा कुम्भा ने जैन व्यापारियों को बसाया था और इसीलिए यहाँ हिन्दू और जैन धर्म के मंदिर हैं। किले के अंदर भगवान् शिव, गणेश, लक्ष्मी , भैरों और अन्य देवी देवताओं के मंदिर हैं।
कुम्भलगढ़ किले में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए भी प्लानिंग कि गयी थीं। इसके लिए ख़ास इंतजाम किया गए थे। बारिश के पानी को इकठ्ठा कर उसे फ़िल्टर कर किले में लोगों के पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। पानी को लाने ले जाने के लिए किले की दीवार के साथ ही सीढ़ियां बनी हुई थीं । इन सीढ़ियों को इस्तेमाल कर के पानी बहुत कम समय में किले के किसी भी भाग में पहुंचाया जा सकता था।
किले कि दीवारों में दुश्मन को रोकने के लिए कुछ बड़े छेद बनाये गए थे और दीवारों के नीचे तेल और घी इकठ्ठा करने के लिए जगह बनायीं गयी थीं। दुश्मन के आक्रमण कि स्थिति में इन छेदों से गर्म तेल और घी नीचे फेंका जाता था जिस से दुश्मन के सिपाही मारे जाते थे और दीवारों पर फिसलन होने से आसानी से चढ़ नहीं सकते थे।
कुम्भलगढ़ किला | Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किले में कुल सात गेट है। इसमें कुम्भा महल , झाली रानी का महल , तारा की बुर्ज , तोपखाना और बादल महल के अलावा महाराणा प्रताप का जन्मस्थान और मेहर बाबा मंदिर भी हैं। किले के अंदर ही कुछ गांव भी बसाये गए है। इन गांव में रहने वाले लोग पारम्परिक बुनाई और पेंटिंग के क्षेत्र में काम करते हैं।
हनुमान पोल | Hanuman Pol, Kumbhalgarh Fort Hindi
हनुमान पोल , कुम्भलगढ़ किले का पहला गेट हनुमान पोल के नाम से जाना जाता हैं । इस गेट पर टूरिस्ट टिकट ले कर अंदर जा सकते हैं। इस गेट के अंदर कार पार्किंग हैं।
इस गेट के बाहर हनुमान की एक बड़ी मूर्ती हैं जिसे राणा कुम्भा ने मारवाड़ से जीतने के बाद वहां से यहाँ ला कर स्थापित किया था। हनुमान पोल के गेट पर हाथी के आक्रमण को रोकने लिए धातु के विशेष नुकीले भाग लगाए हुए हैं। ऐसा किले के अंदर के दरवाजों पर भी देखने को मिलता है।
राम पोल | Ram Pol – Kumbhalgarh Fort hindi
राम पोल कुम्भलगढ़ किले का मुख्य गेट हैं। यहाँ टिकट चेक कराने के बाद टूरिस्ट किले के अंदर जा सकते हैं। इस गेट के पास ही टूर गाइड भी खड़े होते हैं और यहाँ से अगर आप चाहें तो गाइड अपने साथ ले सकते हैं। गाइड की फीस ७०० रुपये हैं।
राम पोल किले की बाहरी दीवार में बना हुआ हैं जो की “वाल ऑफ़ इंडिया ” के नाम से भी प्रसिद्द है। इस गेट के अंदर जाने के बाद सबसे पहले गणेश मंदिर दिखाई देता है जो की गेट के लेफ्ट साइड में है।
गणेश मंदिर | Ganesh Mandir – Kumbhalgarh Fort Hindi
राम पोल के लेफ्ट में गणेश मंदिर राणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया है। ये मंदिर एक ऊंचे प्लेटफार्म पर है जिस पर चढ़ने के लिए सीढ़ीयां हैं। मंदिर के अंदर गणेश प्रतिमा स्थापित है और इसमें कोई पुजारी नहीं होता है। गणेश मंदिर के साथ में ही एक लक्ष्मी नारायण मंदिर है।
इसी तरह से सिटी पैलेस उदयपुर में भी पैलेस के अंदर जाने पर सबसे पहले गणेश और लक्ष्मी की मूर्तिया दिखाई देती है। उदयपुर पैलेस में इसे गणेश ड्योढ़ी के नाम से जाना जाता है।
गणेश मंदिर के पास ही एक छोटा सा रेस्टोरेंट है जिसमे स्नैक और चाय वगैरह मिल जाता है। किले के टूर में काफी चढ़ाई है और इसमें टाइम भी अच्छा लग जाता है। पूरा किला अच्छी तरह से देखने और समझने के लिए कम से कम २ घंटे का टाइम तो लगता है और अगर आप बच्चों के साथ टूर पर हैं तो इससे ज्यादा टाइम भी लग जाता है। आप चाहें तो अपने साथ पानी और कुछ स्नैक्स भी रख सकते हैं।
भैरों पोल | Bharon Pol – Kumbhalgarh Fort Hindi
भैरों पोल किले के अंदर का गेट है। इस गेट के बाहर भैरों का एक मंदिर है। किले के अंदर एक गेट से दुसरे गेट तक जाने के लिए एकदम सीधे रास्ते न होकर घूम कर जाने वाले रास्ते हैं। ऐसा किले की सुरक्षा के लिए किया जाता था। सीधे रास्ते होने पर किले के गेट को तोडना दुश्मन के लिए आसान हो जाता था इसीलिए किले के गेट के सामने ज्यादा खुली जगह नहीं छोड़ी जाती थी।
उस समय दरवाजों को तोड़ने के लिए अक्सर हाथियों का इस्तेमाल होता था और दरवाजा तोड़ने के लिए हाथी को कुछ दूर सीधे तोड़ कर बल लगाना जरूरी था। इस को रोकने के लिए किले के गेट के सामने एक दीवार बनायीं जाती थी या फिर टेढ़े मेढ़े रास्ते बनाये जाते थे।
निम्बू पोल | Nimbu Pol – Kumbhalgarh Fort Hindi
भैरों पोल के आगे निम्बू पोल आता है। निम्बू पोल और भैरों पोल के बीच तारा की बुर्ज है।
चौगुन पोल | Chaugun Pol
निम्बू पोल के बाद में किले के अंदर एक गेट है जिसका नाम चौगुन पोल है। इस गेट से और निम्बू पोल से राणा कुम्भा महल तक जाया जा सकता है।
तारा की बुर्ज | Tarak ki Burj in Hindi
तारा की बुर्ज को कुंवर पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी ताराबाई सोलंकी के लिए बनवाया था। भैरों पोल से तारा की बुर्ज देखा जा सकता है। अभी तारा की बुर्ज भवन को टूरिस्ट के लिए बंद किया गया है।
तोपखाना | Topkhana at Kumbhalgarh
कुम्भलगढ़ किले के अंदर की तरफ , किले की बाहरी १५ फ़ीट मोटी दीवार का अंदर एक तोपखाना है जिसमे तोप रखी जाती थी। यहाँ तोपखाने में कुछ पेंटिंग्स के माध्यम से उस समय में तोप के इस्तेमाल के तरीके को दिखाया गया है।
महाराणा प्रताप का जन्मस्थान | Birthplace of Maharana Pratap – Kumbhalgarh Fort Hindi
महाराणा प्रताप का जन्म कुंभलगढ़ किले में हुआ था। यही पर उनके बचपन के कुछ साल भी बिताये थे। कुम्भलगढ़ किला मेवाड़ के राणाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण किला रहा है। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद जब महाराणा प्रताप जंगलों में छिप कर युद्ध इ लिए अपनी सेना तैयार कर रहे थे तब उन्होंने कुम्भलगढ़ किले को ही अपना ठिकाना बनाया था। यहाँ रहते हुए महाराणा प्रताप ने मुग़लों से अपना राज्य छीना और यही से राज काज भी किया। महाराणा प्रताप ने अपनी अंतिम सांस भी कुम्भलगढ़ किले में ही ली थी।
पागड़ा पोल | Pagda Pol Kumbhalgarh Fort
सबसे ऊँचाई पर पागड़ा पोल है। इस गेट का ये नाम पगड़ी से आया है। पगड़ी जो सर पर पहनी जाती है उसी तरह पागड़ा पोल कुम्भलगढ़ किले का सबसे ऊंचा गेट है।
झाली का मालिया | Jhali ka Maliya
पागड़ा पोल के साथ ही झाली रानी का महल हैं जिसे “झाली की मालिया ” कहा जाता हैं। झाली रानी संत रविदास की भक्त थी और उन्होंने संत रविदास को अपना गुरु मान लिया था।
अस्तबल
किले के इस हिस्से में शाही घोड़ों को रखा जाता था।
कुम्भा महल | Kumbha Mahal – Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किले के एक भाग में राणा कुम्भा महल है। कुम्भा महल बहुत ही साधारण तरीके से बना हुआ महल है। ये किले का एक छोटा सा हिस्सा है जहाँ राणा कुम्भा रहा करते थे। महल के इस हिस्से में कुछ कमरे और एक बड़ा आंगन है। साथ ही एक रसोईघर है। महल के इस हिस्से में जीर्णोद्धार किया गया है।
महल के एक हिस्से में देवी दुर्गा का एक मंदिर है ।
बादल महल | Badal Mahal – Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किले का सबसे ऊंचा भाग बदल महल है। यहाँ ऊपर जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई हैं। ऊपर आप पूरा कुम्भलगढ़ किला एक साथ देख सकते हैं। किले के चारों तरफ फैला हुआ जंगल हैं। ये किला इतना ऊंचा बना हुआ हैं कि इस किले के बारे में अबुल फजल ने लिखा था कि सर उठा कर इस किले को देखने में पगड़ी गिर जाती हैं।
बादल महल में रानियों के कमरे भी बने हुए हैं। इन कमरों के झरोखे बाहर जंगल की तरफ खुलते है। इस झरोखों की ख़ास बात ये थीं कि झरोखो के छेद तिरछे कर बनाये गए थे। कुम्भलगढ़ एक पहाड़ी जगह है और यहाँ अक्सर बारिश होती है। बारिश का पानी अंदर न आये इसलिए इसलिए ये झरोखे नीचे कि तरफ झुके बनाये गए थे। इन झरोखों पर बाहर कि तरफ कांच के परदे लगे होते थे जिन्हे सर्दी और बारिश कि स्थिति में नीचे कि तरफ खींच कर झरोखों को बंद कर दिया जाता था।
मेहर बाबा मंदिर / भैरों मंदिर | Mehar Baba Mandir – Kumbhalgarh Fort Hindi
किले के निर्माण के बारे में एक कहानी बताई जाती हैं। कहा जाता हैं कि जब राणा कुम्भा ने यहाँ किला बनवाना शुरू किया तो हर बार किले कि दीवार गिर जाती थी। ऐसा कई बार हुआ। तब गांव वालों के कहने पर राणा ने वह तपस्या कर रहे मेहर बाबा से इस का कारण पूछा। मेहर बाबा के अनुसार ये जमीन शापित थी और यहाँ निर्माण करने से पहले मानव बलि दी जानी चाहिए थी लेकिन ये बलि उस इंसान को स्वेछा से स्वीकार करनी थी।
इसके लिए राणा कुम्भा ने ऐसे किसी को ढूंढ़ना शुरू किया जो अपनी मर्जी से अपनी बलि देना चाहता हो लेकिन ऐसा कोई भी इंसान राणा को नहीं मिला। अब उन्होंने फिर से मेहर बाबा से पूछा तो बाबा ने अपनी खुद कि बलि देना स्वीकार किया। एक शुभ दिन और मुहूर्त में मेहर बाबा घोड़े पर बैठे और उनका सर काट दिया गया। जिस जगह उनका सर गिरा , वहां भैरव पोल बनाया गया इसके बाद भी घोड़े पर बाबा का धड़ था और घोडा आगे की तरफ चलता रहा। जहाँ घोड़े से मेहर बाबा का शरीर गिरा , वह उनके नाम का एक मंदिर किले के अंदर बनवाया गया। उसी मंदिर के एक तरफ कुम्भा महल है और दूसरी तरफ बादल महल है।
इस मंदिर को भैरों मंदिर भी कहा जाता हैं। वैसे भी राजपूती महलों और किलों में भैरों का एक मंदिर होता ही है। उन दिनों पशु बलि एक बहुत आम बात थीं और अक्सर पूजा और उत्सव पर पशु बलि दी जाती थीं।
नील कंठ महादेव मंदिर | Neelkanth Mahadev Mandir – Kumbhalgarh Fort Hindi
किले के अंदर ही नीलकंठ महादेव / शिव मंदिर है। ये मंदिर अपने विशाल शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है। इस शिवलिंग कि ऊँचाई साढ़े चार फ़ीट है। कहा जाता है कि इस मंदिर के शिवलिंग को राणा कुम्भा के विशाल शरीर के अनुपात में बनाया गया था। राणा कुम्भा का कद लगभग साढ़े सात फ़ीट लम्बा था और उनके लम्बी और मजबूत भुजाएं थी।
कहा जाता है कि राणा कुम्भा इतने ऊंचे शिवलिंग पर बैठे बैठे ही अभिषेक किया करते थे। इस मंदिर कि छत पर सात गुम्बद हैं जो २४ स्तम्भों पर टिकी हुई है। इस मन्दिर में राणा कुम्भा के बाद राणा सांगा ने जीर्णोद्धार कराया था। ये मंदिर पर्यटकों और भक्तों के लिए खुला होता है और यहाँ पर एक पुजारी भी बैठा होता है।
पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर | Parsvnath Digambar Jain Mandir – Kumbhalgarh Fort Hindi
कुम्भलगढ़ किले में ये जैन धर्म का एक प्रमुख मंदिर है। मेवाड़ के राजाओं ने हिन्दू धर्म के साथ ही जैन धर्म के मंदिर भी बड़ी संख्या में बनवाये थे। इसके आलावा किले में गोलेरा जैन मंदिर, माम्देव मंदिरऔर अन्य जैन मंदिर भी है।
वेदी मंदिर और त्रिमंदिर | Vedi Mandir and Tri Mandir Kumbhalgarh Fort Hindi
ये एक खास मंदिर है जिस का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा यज्ञ / हवन करने कि लिए करवाया गया था। इस मंदिर के पीछे ही त्रिमंदिर है जिसे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश मंदिर भी कहते हैं । अभी ये मंदिर बंद कर दिया गया हैं लेकिन पर्यटक बाहर से ही मंदिर को अच्छी तरह से देख सकते हैं।
लखोला टैंक | Lakhola Tank Kumbhalgarh
कुम्भलगढ़ किले में बड़ा टैंक है जिसे युद्ध कि स्थिति में किले के अंदर पानी कि आपूर्ति के लिए बनवाया गया था। राणा कुम्भा , राणा लाखा के पौते थे। राणा लाखा के नाम पर ही इसे लखोला टैंक कहा जाता था।
कुम्भलगढ़ लाइट एंड साउंड शो | Kumbhalgarh Light and Sound Show
कुम्भलगढ़ किले में रोज शाम को साढ़े छ बजे एक लाइट और साउंड शो होता है।
कुम्भलगढ़ किला – अंदर बसे गांव | Villages – Kumbhalgarh Fort Hindi
किले में रहने वाले ये लोग जंगल से जड़ी बूटियां इकठ्ठा करते हैं और राजस्थान के पारम्परिक और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का काम भी करते हैं। इनमे बहुत से लोग कस्टर्ड एप्पल / शरीफा , केले , तुलसी आदि के रेशों से अलग अलग तरह की साड़ियों को बनाने का काम करते हैं। किले के अंदर ही एक म्यूजियम शॉप हैं जहाँ टूरिस्ट इस कला और धरोहर को देख सकते हैं और ये ख़ास साड़ियां खरीद भी सकते हैं।
कुम्भलगढ़ किले के पास ही रुकने के लिए बहुत से होटल हैं। टूरिस्ट यहाँ आ कर यहाँ के लोकल खाने का मजा भी ले सकते हैं। यहाँ के रेस्टॉरेंट्स राजस्थान की प्रसिद्द दाल बाटी और चूरमा के लिए जाने जाते हैं।
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