Pashmina in Hindi : पश्मीना एक विशेष प्रकार का बना हुआ ऊनी कपड़ होता है। पश्मीना ऊन के बने स्वेटर , कार्डिगन, शॉल , टोपियां पूरे विश्व में प्रसिद्द हैं। पश्मीना भारत के लद्दाख राज्य में हाथ से बनाया जाता है। यह पश्मीना काफी मंहगा और सबसे अच्छी क़्वालिटी का होता है।
पश्मीना को भारत के बाहर ज्यादातर कश्मीरी शाल के रूप में जाना जाता है। दरअसल पश्मीना लद्दाख राज्य से आता है जहाँ इसे एक विशेष तरीके से हाथ के बुनाई से तैयार किया जाता है।
पश्मीना इतना खास क्यों है और इतना मंहगा क्यों होता है ! इस आर्टिकल में पश्मीना से जुडी ये सभी बातें जान सकते हैं।
History of Pashmina in Hindi| पश्मीना का इतिहास
पश्मीना का बहुत पुराना इतिहास है। सर्द इलाकों में पश्मीना हमेशा से इस्तेमाल में लाया जाता रहा है। लद्दाख और पश्मीना का जुड़ाव बहुत पुराना है। लद्दाख का एरिया मंगोलिया, चीन और तिब्बत से इंटरनेशनल व्यापार का एक महत्वपूर्ण स्थान था।
पश्मीना नाम फ़ारसी भाषा से आया है जिसका अर्थ होता है “ऊन से बना हुआ” । फ़ारसी भाषा में पश्म शब्द का अर्थ ऊन होता है। इसका एक और अर्थ होता है नीचे। लद्दाख में पाई जाने वाली एक विशेष बकरी से यह ऊन आती है। अक्सर ऊन भेड़ों से प्राप्त की जाती है लेकिन पश्मीना ऊन इस बकरी से आती है।
भारत में सबसे पहले पश्मीना मुग़ल काल के दौरान प्रसिद्द हुआ था। मुग़ल शासक अक्सर पश्मीना शाल और पश्मीना के बने हुए अन्य कुछ कपडे अपने मेहमानों को गिफ्ट के रूप में दिया करते थे। खास कर अकबर के कश्मीर पर अधिकार करने के बाद से पश्मीना काफी लोकप्रिय हुआ।
जब पहली बार यूरोपीय लोगों को पश्मीना के बारे में जानकारी हुई तो उन्होंने कश्मीर से आने के कारण इसे कश्मीरी कहना शुरू कर दिया। इसीलिए विश्व भर में और खास कर यूरोप और अमेरिका में पश्मीना को कश्मीरी कहा जाता है।
GI Tag Pashmina in Hindi | पश्मीना लद्दाख की पहचान
आज के समय में पश्मीना लद्दाख के विशेष पहचान है और इसे G I ( Geographical Indication ) टैग भी मिला है। G I टैग केवल उन्हीं विशेष वस्तुओं को दिया जाता है जो किसी स्थान विशेष से आती हैं और उसके आलावा कहीं और नहीं बनायी जाती हैं। क्योंकि यह पश्मीना केवल लद्दाख में ही तैयार किया जा सकता है इसीलिए इसे G I टैग मिला है।
Process – Pashmina in Hindi | पश्मीना कैसे बनता है
लद्दाखी रीजन में पश्मीना बकरी को मांस और पश्मीना ऊन के लिए पाला जाता है। इस बकरी को चांगरा बकरी कहते हैं। क्योकिं यह बकरी केवल चांगथांग में ही पायी जाती है इसीलिए इसे चांगथांगी या चगरी बकरी कहा जाता है।
इस बकरी से पश्मीना बनाने के लिए साल में एक बार बकरी से ऊन निकली जाती है। इस ऊन को प्राप्त करने का भी एक विशेष तरीका है। सबसे पहले बकरी के बालों को अच्छी तरह से कंघी किया जाता है जिससे कि उसके शरीर पर से इस ऊन की निचली परतों को भी निकला जा सके। एक बकरी से लगभग 80 से 160 ग्राम तक ऊन मिल जाती है।
बकरी सेऊन निकालने के बाद इसे साफ किया जाता है ताकि इसमें किसी भी तरह के अशुद्धता या गंदगी न रहे। साथ ही ऊन के मोटे रेशों को बारीक रेशों से अलग किया जाता है।
छंटे हुए रेशों को ट्रेडिशनल तरीके से धागे में काता जाता है।
इन कते धागों से हैंडलूम से पश्मीना शाल बनाया जाता है।
शाल बन जाने के बाद इसे धोया जाता है और इस पर डिज़ाइन के लिए कढ़ाई की जाती है।
इस तरह से पश्मीना बकरी की ऊन से पश्मीना शाल तैयार होता है।
Quality – Pashmina in Hindi | पश्मीना की विशेषता
लद्दाख का पश्मीना अपनी बेहतरीन क्वालिटी के लिए जाना जाता है। यह दुनिया का सबसे हल्का और सबसे गर्म ऊन का बना कपडा होता है।
पश्मीना की क्वालिटी माइक्रोन में तय की जाती है। एक बाल लगभग 70 माइक्रोन व्यास का होता है जबकि पश्मीना लगभग 12 से 21 माइक्रोन व्यास तक का होता है और इसीलिए यह इतना हल्का होता है।
लद्दाख पश्मीना शाल का असल रंग आइवरी ( हाथी दांत का रंग ) होता है। इसे सिल्क के धागों के साथ मिला कर शाल आदि बनाया जाता है।
लद्दाख पश्मीना दुनिया में सबसे महंगा होता है। इसके एक शाल की कीमत कुछ हज़ार रुपयों से ले कर कुछ लाख तक हो सकती है।
पश्मीना की कीमत 16000 रुपये प्रति किलो से भी ज्यादा हो सकती है जो इसकी क़्वालिटी पर निर्भर करता है।
एक पश्मीना शाल में लगभग 275 से 300 ग्राम तक धागा लगता है।
Pashmina in Hindi – Pashmina Export | पश्मीना निर्यात
लद्दाख का पश्मीना अपनी बेहतरीन क्वालिटी के कारण पूरी दुनिया में भेजा जाता है।
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