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रतनपुर का किला , बिलासपुर | Ratanpur Kila in Hindi, Bilaspur

Ratanpur Kila

Ratanpur Kila in Hindi : रतनपुर का किला छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले में स्थित है। रतनपुर के किले को गज किला और हाथी किला के नाम से भी जाना जाता है। रतनपुर शहर धार्मिक दर्शनीय स्थांनों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। रतनपुर शहर में मंदिरों की संख्या इतनी है कि एक दिन में इन ससभी मंदिरों के दर्शन कर पाना असंभव  होता है। 

रतनपुर की बिलासपुर से दूरी लगभग 25 किलोमीटर की है। बिलासपुर आने वाले सभी पर्यटक रतनपुर को देखने की इच्छा मन में हमेशा रखते हैं। रतनपुर का किला एक ऐतिहासिक किला है ।

Ratanpur Fort, Bilaspur

रतनपुर का किला – रतनपुर का इतिहास | History – Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर – चतुर्युगी  पुरी  (चारो युगो में वर्णन) | Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर एक ऐसा स्थान है जो कि चतुर्युगी पुरी के नाम से जाना जाता है। चतुर्युगी पुरी का अर्थ है ऐसा नगर जिसका जिक्र चारों युगों में हुआ है। रतनपुर को एक ऐसा शहर माना जाता है जो आदि काल से है। इस स्थान का वर्णन चारों युगों में प्राप्त होता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित चार युग सतयुग , त्रेता , द्वापर और कलयुग। माना जाता है कि सतयुग में इसका नाम मणिपुर कहलाता था, त्रेता युग में रतनपुर को माणिकपुर नाम से जाना जाता था, द्वापर युग में रतनपुर का नाम  हीरापुर था और कलयुग यानी वर्तमान में इसे रतनपुर शहर के नाम से जाना जाता है। इस शहर का वर्णन चारों युगों में अलग- अलग नामों से मिलता है। 

महाभारत काल से सम्बन्ध | Ancient City Ratanpur

रतनपुर  का संबंध महाभारत काल के समय से भी जुड़ा हुआ है। रतनपुर में एक विशाल तालाब है जिसका नाम कृष्णार्जुनी तालाब है,  जिसका नाम भगवान कृष्ण और अर्जुन के नाम पर रखा गया है। 

रतनपुर – पौराणिक कहानी | Mythology – Ratanpur

यहाँ प्रचलित पौराणिक कहानी के अनुसार महाराजा युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। अश्वमेघ यज्ञ करने वाला राजा अपने राज्य के प्रतीक के रूप में एक घोडा स्वतंत्र छोड़ दिया करता था और यह घोडा लग अलग राज्यों के सीमाओं में घूमता था। अगर कोई उस घोड़े को अपने राज्य में घुसने देता तो इसका अर्थ होता था कि उस राज्य ने अश्वमेघ यज्ञ करने वाले राजा की अधीनता स्वाकार कर ली है। अगर कोई उस घोड़े को पानी सीमा में रोक लेता या पकड़ने का प्रयास करता तो घोड़े के पीछे आ रहो सेना से उसे युद्ध करना होता था। 

राजा बनने के बाद जब युधिष्ठिर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया तो इसी तरह से एक घोडा अपने राज्य के प्रतीक चिन्ह के रूप में छोड़ दिया। उनका घोडा यहाँ स्थित एक तालाब के किनारे पानी पीने के लिए रुका । उस समय यहाँ राजा मोरध्वज का शासन था। राजा मोरध्वज के बेटे ताम्रध्वज ने अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को पकड़ लिया।  घोड़े के पीछे पीछे चल रहे अर्जुन और उनकी सेना से उसका युद्ध भी हुआ। जब अर्जुन ने भगवान कृष्ण से  ताम्रध्वज के बारे में पूछा तब उन्होंने अर्जुन को राजा मोरध्वज की दानवीरता और उनकी भक्ति के बारे में बताया। 

अर्जुन को विश्वास ही नहीं हुआ और भगवान कृष्णा से इसका प्रमाण देने के लिए कहा । भगवान कृष्ण अर्जुन को एक साधु के वेश में और यमराज को शेर के वेश में बनाकर राजा मोरध्वज के पास लेकर गए और उन्होंने राजा से शेर की भूखे होने की बात कही और भोजन के रूप में उन्होंने राजा के पुत्र ताम्रध्वज को मांगा। राजा ने अपने बेटे ताम्रध्वज के शरीर को काटकर शेर के सामने रख दिया था और इसे कटा देखकर अर्जुन बेहोश हो गए थे। तब श्री कृष्ण अपने असली रूप में आ गए और उन्होंने राजा को आशीर्वाद दिया और ताम्रध्वज को भी पुनः जीवित कर दिया था। 

कलचुरी राज वंश | Kalchuri Dynasty – Ratanpur Kila in Hindi

Ratanpur Fort Chattisgarh
Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर में एक समय कलचुरी राज वंश राज करता था जो कि सबसे अधिक समय तक रहा , 10 वीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के बीच में रतनपुर के किले का  निर्माण कार्य कराया गया था। ऐसा माना जाता है कि 11वीं शताब्दी में अर्थात 1050 ईसवी में कलचुरी राजवंश का शासन काल था और उस समय उनकी राजधानी तुम्माण थी । 

इतिहासकारों के अनुसार 10 वीं शताब्दी में यहाँ प्रतापी राजा कमलराज शासन करते थे। उन्होंने पूर्वी कौशल के राजा महासेन  गुप्त को युद्ध में पराजित कर दिया था। उनके पश्चात गद्दी पर रतनराज बैठे थे जो कि राजा कमलराज के पुत्र थे और राजा कलिंग राज के पौत्र थे । राजा रतनराज एक बहुत ही कला प्रिय राजा थे। 

राजा रतनराज जिन्होंने छत्तीसगढ़ पर विजय प्राप्त की थीऔर इसी कारण उन्हें कलचुरी वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। पहले कलचुरी राजवंश की राजधानी तुम्माण  थी। 

मराठा शासन – रतनपुर | Maratha Rule – Ratanpur Kila in Hindi

17 वीं शताब्दी के बाद यहां मराठा राजवंश का राज्य स्थापित हो गया था जिनके पहले राजा राजा बिम्बा जी  भोंसले थे। उन्होंने एक न्यायालय का निर्माण कार्य कराया। राजा बिम्बा जी भोंसले के द्वारा ही 18 वीं शताब्दी में रामटेरी मंदिर और संगमेश्वर मंदिर का निर्माण कराया गया। 

राजा बिम्बा जी भोसले की तीन रानियां थी। राजा बिम्बा जी भोसले की मृत्यु के बाद उनकी एक रानी उनके साथ सती हो गई थी और दूसरी रानी अधिक दुख में आने के कारण वन में चली गई थी। उनकी तीसरी रानी जिनका नाम आनंदीबाई था उन्होंने शासन को अपने हाथ में लिया। उन्होंने लक्ष्मी नारायण मंदिर तथा खंडोबा मंदिर का निर्माण कार्य कराया। 

18 वीं शताब्दी के बाद यहां पर अंग्रेजों का शासन स्थापित हो गया और उन्होंने अपनी राजधानी रतनपुर से हटाकर न्यू रायपुर बनाई थी।

रतनपुर का किला (गज किला ) – निर्माण | Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर किला (गज किले ) का निर्माण कार्य 10 वीं से 12 वीं शताब्दी के बीच में कराया गया था। किले में अनेकों प्राचीन मूर्तियां भी उपस्थित हैं और अनेकों मंदिर भी इसकी सीमा के अंदर है। राजा रतन देव एक बहुत ही कला प्रिय राजा थे और किले के मुख्य द्वार पर की गई नक्काशी इस बात का प्रमाण देती है। 

रतनपुर का किला – प्रमुख द्वार | Gates – Ratanpur Kila in Hindi

Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर का किला हाथी किले के नाम से भी जाना जाता है यह किला चारों ओर से खाइयों  से घिरा हुआ है। इस किले में चार द्वार है जिनमें सिंह द्वार, गणेश द्वार, भैरव द्वारा और सेमद्वार बने हुए हैं। सिंह द्वार के बायीं ओर गंधर्व,  किन्नर, अप्सराएं और देवी-देवताओं के साथ-साथ दशानन रावण का अपने आप शीश काटकर भगवान को समर्पित करती मूर्तियां बनी हुई है।

टंकियों – तालाबों का शहर कुबेरपुर | Kuberpur as Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर को कुबेरपुर भी कहा जाता था । राजा रतनराज ने यहाँ अनेको तालाबों का निर्माण कराया था । इसी वजह से रतनपुर में कभी भी पानी की कमी नहीं हो हुई थी । रतनपुर को एक समय में टंकियों का शहर भी कहा जाता था। 

 ऐसा कहा जाता है कि राजा रत्नदेव प्रथम ने उस समय 1200 तालाबों का निर्माण कराया था जिसके कारण वहां पर पानी की कमी ना होने के कारण उस समय बहुत ही अच्छी फसल पैदा की जाती थी।  जिस वजह से रतनपुर को एक समृद्ध शाली क्षेत्र माना जाता था।  इसीलिए  इस शहर को  कुबेरपुर के नाम से भी जाना जाता था। 

रतनपुर को मंदिरों का एक समूह भी कहा जाता है जिसके अंदर बहुत सारी संख्या में मंदिर प्रसिद्ध है जिनमें से  महामाया मंदिर, बाबा भैरव नाथ मंदिर ,भूतेश्वर भगवान शिव का मंदिर, एकवीरा मंदिर, आदि  प्रमुख है।

रतनपुर का किला – किला परिसर | Ratanpur Kila in Hindi

Ratanpur Kila in Hindi
Ratanpur Kila in Hindi

रतनपुर किला परिसर में मुख्य रूप से दो मंदिर स्थापित हैं। इनमें से एक है जगन्नाथ मंदिर और दूसरा है लक्ष्मी नारायण मंदिर।  

अभी रतनपुर का किला भारतीय पुरातत्व विभाग के देखरेख में है और इसे एक सुन्दर पार्क / उद्यान की तरह मेन्टेन किया जा रहा है। अब यहाँ ऐतिहासिक किले के कुछ ही हिस्से देखे जा सकते हैं और अधिकांश किला पुराने वैभव का एक अवशेष मात्र रह गया है। 

रतनपुर के अन्य आकर्षण | Ratanpur Tourist Attractions

रतनपुर एक प्रसिद्द टूरिस्ट सिटी है। यहाँ स्थित ऐतिहासिक इमारतों के आलावा यह शहर अपने प्राचीन और विशिष्ट मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। यहाँ के अन्य प्रसिद्द टूरिस्ट प्लेस में बदल महल , रमतेरी मंदिर , हनुमान मंदिर, तुलजा मंदिर , खंडूजा मंदिर और प्रसिद्द दरगाह हैं। 

रतनपुर स्थित महामाया मंदिर एक प्रसिद्द सिद्धपीठ है। 

महामाया देवी का  मंदिर | Ratanpur – Mahamaya Devi Mandir – Ratanpur Kila in Hindi

महामाया देवी का मंदिर रतनपुर के पहचान बन चुका है।  यह मंदिर एक शक्तिपीठ के रूप में मान्य है। महामाया मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान शिव की मूर्ति विराजमान है। 

 पौराणकि कहानी के अनुसार माता सती की मृत्यु के पश्चात जब भगवान शंकर व्यथित हो गए तब माता के मृत  शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड में तांडव करने लगे थे। उस समय भगवान शिव को इस व्यथा से मुक्त करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उस मृत शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए और वे अंग जहां भी गिरे थे वही  स्थानों पर शक्तिपीठ बन गए हैं। माना जाता है कि महामाया मंदिर में माता सती का दाहिना स्कंध गिरा था जिसके कारण इसे  कोमारी शक्तिपीठ का नाम दिया गया। 

लगभग 1050 ईस्वी में राजा रतन देव प्रथम मणिपुर गांव में शिकार के लिए आए हुए थे जहां पर बहुत थकान होने पर उन्होंने रात्रि में विश्राम एक वटवृक्ष के नीचे किया। तब अर्धरात्रि के समय राजा कि जब आंखें खुली तब उन्हे वट वृक्ष के नीचे एक आलौकिक  प्रकाश दिखाई दिया और देवी के दर्शन प्राप्त हुए , जिसके कारण अपनी सुध- बुध खो बैठे थे । अगले सुबह राजा रतन देव प्रथम राजधानी चले गए । माना जाता है कि उन्होंने श्री महामाया देवी के मंदिर का निर्माण कार्य कराया।  

यहां पर पूरे साल भर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। विशेष रूप से नवरात्रि के दिनों में यहां की भीड़ देखने  लायक होती है । यहां पर हजारों लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा नवरात्रों में रहता है।

रतनपुर जाने का समय | Best time to Visit Ratanpur Kila

रतनपुर जाने का सबसे अच्छा समय फरवरी अक्टूबर से अप्रैल तक का है। मई से ले कर सितम्बर के महीने तक यहाँ मौसम काफी गर्म रहता है। रतनपुर में माघ पूर्णिमा  पर एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है। यह मेला फरवरी के महीने में साल में एक बार लगाया जाता है जो कि छत्तीसगढ़ के प्रमुख मेले में से एक है। यहां मेले में काफी दूर-दूर से लोग घूमने के लिए आते हैं। मेले में अनेकों झूले तथा प्रदर्शनी या लगाई जाती है। 

रतनपुर कैसे पहुचें | How to reach Ratanpur 

रतनपुर  नजदीक का एअरपोर्ट छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर स्थित एयरपोर्ट है। रायपुर से रतनपुर के दूरी लगभग140 किलोमीटर है जो स्टेट ट्रांसपोर्ट बस , टैक्सी या रेंट व्हीकल से तय की जा सकती है।     

अगर आप ट्रेन से ट्रेवल कर रहे हैं तो रतनपुर का सबसे नजदीक का स्टेशन बिलासपुर है जो यहाँ से लगभग 25 किलोमीटर के दूरी पर स्थित है। 

अगर आप रोड ट्रेवल कर रहे हैं तो रतनपुर पहुंचने के लिए स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस से पहुंच सकते हैं। 

Haridwar Tourist Places, Beatific Uttarakhand !

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