Banasur ka Kila Hindi : बाणासुर का किला जिसे कोटगढ़ किला भी कहा जाता है, उत्तराखंड के चंपावत जिले के लोहाघाट नगर में स्थित है। बाणासुर का किला लोहाघाट नगर से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर कर्णरायत गांव के पास स्थित है। इस किले की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 1859 मीटर है। इसे बाने कोट या बाड़ा कोट के नाम से भी जाना जाता है।
बाणासुर का किला – इतिहास | History Banasur ka Kila
बाणासुर का किला एक पौराणिक किला माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले का निर्माण बाणासुर नाम के दैत्य ने अपने लिए कराया था। ऐसा भी माना जाता है कि इसे चंद वंश के राजाओं ने जीर्णोद्धार कराया था और कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह किला चाँद वंश के राजाओं ने ही बनवाया था। बाणासुर का किला कुछ समय तक गोरखाओं के अधिकार में भी रहा। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर अंग्रेज़ों का अधिकार रहा। इस किले का इतिहास पूरी तरह से वर्णित नहीं है लेकिन इस जगह को पौराणिक काल से सम्बन्धित माना जाता है। इस किले के बारे में कुछ प्रसिद्द कहानियाँ बताई जाती हैं। कहा जाता है कि इस किले का सम्बन्ध भगवान कृष्ण और शिव से रहा है।
बाणासुर का किला – पौराणिक कहानी | Mythology – Banasur ka Kila
ऐसा कहा जाता है कि राजा बाली के सबसे बड़ा पुत्र का नाम बाणासुर था। बाणासुर एक अत्यंत शक्तिशाली राजा था और भगवान शिव का परम भक्त था। उसकी भक्ति और तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे हजार भुजाएं देने का वरदान दिया था। हजार भुजाएं पाने के बाद बाणासुर पहले से भी बहुत ज्यादा शक्तिशाली हो गया था। कहानी के अनुसार भगवान शिव ने उससे कहा कि आवश्यकता पड़ने पर वह स्वंय बाणासुर के लिए युद्ध करेंगे। इस सब से बाणासुर को अपने शक्तिशाली होने पर बहुत घमंड हो गया था। शक्ति के घमंड में चूर बाणासुर अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने लगा और इन शक्तियों की वजह से वह अपने आसपास, चारों तरफ तबाही मचाने लगा।
बाणासुर ने भगवान श्री कृष्ण के पौते प्रद्युमन का अपहरण कर लिया था। ऐसा कहा जाता है कि प्रद्युमन का सम्बंध बाणासुर की पुत्री से था जिसके कारण बाणासुर ने प्रद्युमन का अपहरण कर लिया। इससे भगवान कृष्ण बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने बाणासुर पर आक्रमण कर प्रद्युमन को छुड़ाना चाहा लेकिन बाणासुर की तरफ से भगवान शिव अपने दिए हुए वरदान के अनुसार उसकी मदद करने के लिए आये। बाणासुर के कारण भगवान शिव और भगवान कृष्ण के बीच युद्ध हुआ और बाद में भगवान शिव के बीच में से हटने के बाद भगवान कृष्ण ने बाणासुर का वध इसी किले के अंदर किया था । किले को ले कर यह कहानी काफी प्रचलित है और इसीलिए बाणासुर के नाम पर ही इस किले को बाणासुर का किला कहा जाता है। किले के पास ही एक नदी बहती है जिसका नाम है लोहावटी नदी है। ऐसा माना जाता है कि यह नदी बाणासुर के लहू से बनी जिसकी वजह से यहां की मिट्टी का रंग कुछ काला तथा कुछ लाल आज भी मिलता है।
बाणासुर का किला – भौगोलिक स्थिति |Banasur ka Kila – Geographical Importance
बाणासुर किले की भौगोलिक स्थिति के कारण ही यह किला इतिहास में इतना महत्वपूर्ण रहा है । ऊँचाई पर होने के कारण इस किले से 360 डिग्री तक चारों ओर बहुत दूर-दूर तक साफ देखा जा सकता है। यह किला अपनी नैसर्गिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि यह कस्बा भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। किले के आसपास का एरिया अपने शांत वातावरण, यहां की शुद्ध हवा और साफ पानी के लिए जाना जाता है। यहां किले से हिमालय का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है। बाणासुर किले से हिमालय की पंचाचूली चोटी के सूंदर नज़ारे देखे जा सकते हैं। पर्यटन विभाग ने यहां पर एक बड़ी शक्तिशाली दूरबीन की व्यवस्था की है । यह किला अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। कर्णरायत के आसपास की हरी वादियां इस किले से साफ दिखाई देती है। यहां पर और भी मंडलीय राजाओं द्वारा बनवाए गए छोटे छोटे किले जैसे सुई कोट , चुमल कोट, चंडी कोट, छत कोट और बौन कोट भी देखे जा सकते हैं , हालाँकि ये सभी किले आज खंडहर बन चुके हैं।
बाणासुर का किला – संरचना | Banasur ka Kila Architecture
ऐसा माना जाता है कि बाणासुर का किला तीन अलग-अलग काल में बनाया गया होगा । बाणासुर किले का निर्माण पहाड़ी शैली के अंतर्गत किया गया है। किले के निर्माण में पत्थरों का उपयोग किया गया है। किले के चारों कोनों पर बुर्ज बने बने हुए हैं। ये बुर्ज सुरक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं। किले से बाहर देखने के लिए 85 रोशनदान हैं जिनकी निचली सतह ढ़ालदार बनाई गई है जिससे कि इनसे बारिश का पानी न घुस सके।
बाणासुर के किले से नीचे लगभग 100 मीटर दूर एक मंदिर भी स्थित है जो देवी को समर्पित है।
बाणासुर का किला – जल प्रबंधन | Banasur ka Kila – Water Management
बाणासुर के किले के अंदर पानी इकठ्ठा करने के लिए विशेष इंतजाम किये गए थे। बाणासुर किले में एक कुआं बना हुआ है जो कि मुख्य भवन के बीचों बीच स्थित है । इस कुँए के चारों तरफ एक लोहे की जाली (ग्रिल ) बनी हुई है । यह कुऑ लगभग 8 मीटर गहरा, 13 मीटर लंबा और 5 मीटर चौड़ा है, इसमें नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां भी दिखाई देती है, ऐसा माना जाता है कि यह सीढ़ियां नीचे जाकर आगे नदी से जुड़ जाती हैं। युद्ध के समय यह कुऑ पानी का एक प्रमुख स्रोत रहा होगा। कहानियों में ऐसा माना जाता है कि यह कुआँ ही स्वर्ग का द्वार है।
किले की वर्तमान अवस्था | Banasur ka Kila – Condition at present
बाणासुर का किला उत्तराखंड के इतिहास में एक खास स्थान रखता है। यह किला इतिहास की एक विशेष धरोहर है। अभी यह किला एक खंडहर है और बहुत जीर्ण शीर्ण स्थिति में है। इसकी सुरक्षा और इसकी मरम्मत की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज संरक्षण के अभाव में यह किला अपना अस्तित्व खो रहा है। यहॉ मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है जिसके कारण यह किला टूरिस्ट प्लेस के रूप में अभी ज्यादा प्रसिद्द नहीं है।
बाणासुर का किला आने के लिए फरवरी से लेकर जून तक का समय सबसे अच्छा है। इसके बाद सितम्बर से नवंबर तक का समय यहाँ आने के लिए सही है।
बाणासुर का किला – कैसे पहुंचा जाए? | How to reach Banasur ka Kila
बाणासुर किला चंपावत जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर है। लोहाघाट नगर से बाणासुर का किला लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर है। यह किला कर्णरायत गांव से 2 किलोमीटर सीढ़ियों से सीधी चढ़ाई चढ़ने पर पहुंच सकते हैं। किले के अंदर जाने के लिए किसी प्रकार का कोई टिकट नहीं है।
देश की राजधानी दिल्ली से लगभग 420 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह किला एक ऐतिहासिक धरोहर है। अगर आप अपनी उत्तराखंड के यात्रा के दौरान यहाँ आना चाहते हैं तो आसानी से पहुंच सकते हैं। किले तक पहुंचने के लिए सड़क के रास्ते अच्छे हैं। लोहाघाट से स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस द्वारा यहाँ पहुंच सकते हैं। लोहाघाट से यहाँ के लिए टैक्सी से भी आ सकते हैं।
उत्तराखंड का पंत नगर एयरपोर्ट यहाँ सबसे नजदीक का एयरपोर्ट हैं। अगर आप रेल यात्रा पर हैं तो टनकपुर रेलवे स्टेशन सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन है। बाणासुर का किला आते समय अपने साथ पानी और स्नैक्स रख लेना अच्छा है। जिंदगी की भागमभाग से समय निकालकर हमें इतिहास की इन धारोहरों को अवश्य देखना चाहिए।
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