Chaiturgarh ka Kila in Hindi : चैतुरगढ़ का किला छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। छत्तीसगढ़ अर्थात 36 गढ़ों का समूह। यह किला भारत देश के सबसे अधिक मजबूत प्राकृतिक किलो में से एक माना जाता है। चैतुरगढ़ किला कोरबा जिले के मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है जो कि जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चैतुरगढ़ किला समुद्र तल से 3000 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। चैतुरगढ़ का किला मैकाल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटियों में है।
चैतुरगढ़ का किला – प्राकृतिक दीवार | Chaiturgarh ka Kila in Hindi
छत्तीसगढ़ के 36 किलो में प्रसिद्ध चैतुर गढ़ का किला एक अभेद्य चट्टानी प्राकृतिक दीवारों से निर्मित है। इस किले की कुछ ही दीवारों को मानव द्वारा बनवाया गया है।
चैतुरगढ़ – छत्तीसगढ़ का कश्मीर | Chaiturgarh – Kashmir of Chattisgarh
चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का कश्मीर भी कहा जाता है। इसको देखकर ही अंदाजा लगा सकते हैं कि यह कितना अधिक खूबसूरत स्थान रहा है। यहां पर झरनों की लयबद्ध सुर में आने वाली झर -झर की आवाज , पूर्ण रूप से हरियाली का श्रृंगार किए हुए प्राकृतिक सौंदर्य तथा मां महिषासुर मर्दिनी की कृपा से अभीसिंचित यह स्थान यहां आने वाले पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है।
मां महिषासुर मर्दिनी का ऐतिहासिक मंदिर ऊंचाई पर होने के कारण यहां का तापमान 30 डिग्री से कभी भी अधिक नहीं होता है।
चैतुरगढ़ का इतिहास | History – Chaiturgarh ka Kila in Hindi
यह ऐतिहासिक किला अपने प्राकृतिक वातावरण और वास्तुकला के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है। चैतुरगढ़ का किला एक ऐसा किला है जिसको 2 नामों से जाना जाता है। चैतुरगढ़ किला या लाफ़ागढ़ किला। लाफ़ागढ़ पाली नामक शहर से इसकी दूरी लगभग 19 किलोमीटर है। आज यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित एक स्मारक है।
इस मैकाल पर्वत श्रंखला में चामादहरा ,तिनधारी और श्रृंगी झरना स्थित है। इसी मैकाल पर्वत श्रंखला से जटाशंकरी नदी का उद्गम होता है। जटाशंकरी नदी को हसदेव की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है। नदी के आगे जाने पर तुम्माण खोल मिलता है जो कि कल्चुरी की आरंभिक राजधानी थी।
चैतुरगढ़ का किला – निर्माण | Chaiturgarh ka Kila in Hindi
चैतुरगढ़ किले का निर्माण पृथ्वी देव प्रथम ने कराया था । उस समय लाफ़ागढ़ का अपना राजनीतिक एवं सामरिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण कलचुरी संवत 821 यानि सन 1069 में हुआ था।
चैतुरगढ़ का किला – प्रवेश द्वार | Gates – Chaiturgarh ka Kila in Hindi
चैतुरगढ़ किले के मुख्य तीन प्रवेश द्वार हैं जो कि कलचुरी काल की सुंदर कारीगरी और नक्काशी को प्रस्तुत करते हैं। इन प्रवेश द्वारों के नाम इस प्रकार हैं पहला द्वार सिंहद्वार है, दूसरे द्वार का नाम मेनका द्वार है और तीसरा द्वार हुमकारा द्वार है।
चैतुरगढ़ का किला – पांच तालाब | Ponds – Chaiturgarh ka Kila in Hindi
चैतुरगढ़ किले के मुख्य आकर्षण में यहां के 5 तालाब भी प्रमुख है। इन पांचों तालाबों में से 3 तालाब ऐसे हैं जो कि हमेशा पानी से भरे रहते हैं। इन तीनों तालाबों के नाम इस प्रकार हैं पहले तालाब का नाम गर्गज तालाब, दूसरे को सूखी तालाब और तीसरे को केकड़ा तालाब के नाम से जाना जाता है। बाकी के दोनों तालाबों के नाम इस प्रकार हैं भूखी डबरी तालाब और सिंधी तालाब। इतनी ऊंची पहाड़ी मैकाल पर्वत श्रंखला पर होने के बावजूद भी यहां पर पाए जाने वाले तालाब अपने आप में एक चमत्कार ही है।
चैतुरगढ़ की पहाड़ी में छोटे-छोटे झरने तथा पहाड़ियां हैं जो कि इस किले की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं।
चैतुरगढ़ का किला – महिषासुर मर्दिनी मंदिर
छत्तीसगढ़ के चैतुरगढ़ स्थान पर 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित माता महिषासुर मर्दिनी का विशेष मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी शासकों ने कराया था। महिषासुर मर्दिनी देवी की इस मूर्ति में 12 हाथ है और महिषासुर मर्दिनी माता की यह मूर्ति गर्भ गृह में स्थापित है। कहा जाता है कि 17 वीं शताब्दी में बाण बंशी राजा मल्देव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
चैतुरगढ़ का विशेष महत्व आज भी यहां स्थित महिषासुर मर्दिनी मंदिर के कारण ही है जिसने आज भी इस चैतुरगढ़ किले को एक जीवंत किला बना रखा है। कहा जाता है कि एक बार यात्रा के समय जब राजा पृथ्वी देव प्रथम विश्राम कर रहे थे तभी स्वयं देवी ने उन्हें सपने में आकर यहां पर मंदिर बनवाने की इच्छा प्रकट की थी।
ऐसा भी कहते हैं कि मां दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के पश्चात यहां पर कुछ समय विश्राम किया था। कहा जाता है कि माता महिषासुरमर्दिनि अपने एक जीवंत स्वरूप में आज भी यहां पर विराजमान है। लोगों के अनुसार कहा जाता है कि अगर एक टक लगाकर माता की सुंदर प्रतिमा को निहारा जाता है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि देवी ने अपनी पलकें झपकाईं है।
नागर शैली मंदिर का निर्माण
महिषासुर मर्दिनी मंदिर को नागर शैली में बनाया गया है। इस मंदिर में नागर शैली के अनुसार जो मुख्य भूमि होती है उसे एक आयताकार रूप में रखा जाता है जिसके बीच में दोनों ओर क्रमिक विमान बने होते हैं। मंदिर के सबसे ऊपर एक शिखर होता है और इस शिखर को रेखा शिखर कहा जाता है।
मंदिर में एक सभा मंडल भी है जिसमें कि 16 स्तंभ हैं और इस सभा मंडल के साथ चार स्तंभ वाला एक प्रवेश द्वार भी है जहां से गर्भ ग्रह तक पहुंचा जा सकता है। महिषासुर मर्दिनी मंदिर में माता की 12 हाथों वाली मूर्ति स्थापित की गई है। तथा इसी मंदिर के आसपास भगवान काल भैरव का, भगवान शनिदेव का तथा भगवान हनुमान जी के साथ साथ अन्य देवताओं की मूर्तियां रखी गई है।
नवरात्रि के समय विशेष पूजा
नवरात्रि के समय यहां पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। विशेष पूजा में पहले राजा तथा बाद में जमीदारो को पूजा करने का प्रावधान रहा है। आज भी यहां स्थानीय लोगों के साथ-साथ अन्य प्रदेशों से आने वाले लोगों का भी जमावड़ा होता है।
चैतुरगढ़ का किला – शंकर खोल गुफा (भगवान शिव और भस्मासुर का युद्ध )
मंदिर के नजदीक ही लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर शंकर भगवान की गुफा भी स्थित है जिसके शंकर खोल गुफा कहा जाता है। जिस का प्रवेश द्वार इतना छोटा है कि उसमें से एक बार में केवल एक ही व्यक्ति अंदर भगवान शिव के दर्शन के लिए जा सकता है। भगवान शंकर गुफा एक सुरंग के समान दिखाई देती हैऔर यह गुफा लगभग 25 फीट लंबी है। गुफा अंदर से बेहद संकरी होने के कारण गुफा में से रेंग कर या घुटनों के बल बैठकर निकला जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब भगवान शिव और भस्मासुर की लड़ाई हुई थी तब उस समय यह दोनों यहां आए थे तभी से गुफा के भीतर शिवलिंग स्थापित है और यहां पर एक अखंड ज्योति रोजाना प्रज्वलित की जाती है। इसी गुफा के ऊपर पहाड़ी की ओर अगर चढ़ाई करते हैं तो वहां से मेनका मंदिर भी देखा जा सकता है।
चैतुरगढ़ किस प्रकार पहुंचा जाए?
चैतुरगढ़ पहुंचने के लिए स्वामी विवेकानंद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा रायपुर पहुंचकर यहां से कैब के द्वारा कोरबा तक जाया जा सकता है। यहां से कोरबा की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है।
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