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देवलगढ़ किला एवं मंदिर | Devalgarh Kila Hindi | Devalgarh Mandir Hindi 

Devalgarh Kila HIndi

Devalgarh Kila HIndi

Devalgarh Kila Hindi | Devalgarh Mandir Hindi : देवलगढ़ शहर एक पहाड़ी शहर है ,जो कि उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित है। देवलगढ़ एक आध्यात्मिक शहर है। उत्तराखंड अपनी संस्कृति सभ्यता और ऐतिहासिक इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। आज देवलगढ़ शहर प्राचीन वास्तुकला से निर्मित मंदिरो के लिए जाना जाता है। 

देवलगढ़ का नाम | Devalgarh Kila Hindi

Devalgarh Kila Hindi
Devalgarh Kila Hindi

देवगढ़ का नाम राजा देवल के नाम से लिया गया है ऐसा कहा जाता है कि 14 वी शताब्दी में देवलगढ़ की स्थापना  कांगड़ा के राजा देवल द्वारा की गई थी । राजा देवल के नाम पर इसका नाम देवलगढ़ पड़ गया। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार यहां पर देवल नाम के ऋषि का आश्रम था तथा बाद में गुरु गोरखनाथ के शिष्यों ने यहां पर सत्य नाथ की स्थापना की थी।   

देवलगढ़ का इतिहास | History – Devalgarh Kila Hindi

Devalgarh Kila Hindi

Devalgarh Kila Hindi : देवलगढ़ का इतिहास पंवार राजाओं से जुड़ा हुआ है। 16  वी शताब्दी में गढ़वाल में पंवार वंश का साम्राज्य था। पंवार वंश के राजा राजा अजय पाल ने उस समय कुमॉऊ राजाओ के आक्रमण के कारण अपनी राजधानी चांदपुर से स्थानांतरित कर देवलगढ़ में बनाई थी।  

ऐसा कहा जाता है कि शाही परिवार अपनी गर्मियां  देवलगढ़ में तथा सर्दियां  श्रीनगर में व्यतीत करता था।  ऐसा कहा जाता है कि उस समय राजा अजय पाल ने पूरे  छोटे छोटे 52 गढ़ों को एकत्रित कर गढ़वाल राज्य स्थापित  किया और यहां से उन्होंने पूरे गढ़वाल पर एकछत्र राज किया। 

देवलगढ़ एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जिससे कि राजा अजय पाल वहां से सभी 52 गढ़ों पर नियंत्रण कर सकते थे और आसानी से शत्रुओं पर निगरानी रखी जा सकती थी। अजय पाल ने केवल 5 वर्ष तक ही देवलगढ़ को अपनी राजधानी बना कर रखा बाद में कुछ समस्याएं आने के बाद उन्होंने अपनी राजधानी देवलगढ़ से श्रीनगर को स्थानांतरित कर दी थी। देवगढ़ में पानी की एक विकट समस्या  थी। वहां पर पानी आसानी से उपलब्ध नहीं हो पा रहा था जिसकी वजह से   राजा अजय पाल को अपनी राजधानी श्रीनगर में स्थानांतरित करना पड़ा।  

देवलगढ़ मंदिर | Devalgarh Mandir – Devalgarh Kila Hindi

Devalgarh Kila Hindi

देवलगढ़ में आज किले  के अवशेष तो उपस्थित नहीं हैं लेकिन वहां पर मंदिरों के अनेकों समूह बने हुए हैं। इन मंदिरो में प्रमुख मंदिर राज राजेश्वरी देवी मंदिर ,गौरा देवी मंदिर और लक्ष्मीनारायण मंदिर हैं। ये सभी मंदिर पत्थरों से बने हैं तथा इन पर पुरातत्व शिलालेख भी उपस्थित हैं। राज राजेश्वरी मंदिर समुद्र तल से 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर देवी राजेश्वरी को समर्पित है जोकि गढ़वाल राजाओं की स्थानीय देवी है।

मंदिरों में वास्तुकला  की बात करें तो इनमें गढ़वाली वास्तुकला के स्पष्ट प्रमाण देखे जाते है। राज राजेश्वरी मंदिर एक अति सुंदर प्राचीन वास्तुकला के दर्शन कराता है और इस शहर को भी सुशोभित करता है। देवलगढ़ प्राचीन मंदिरों के समूह के लिए प्रसिद्ध है। मध्ययुगीन काल में बनाये गये राज  राजेश्वरी मंदिर का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ पुरातत्व  दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज राजेश्वरी मंदिर जो कि एक तीर्थ स्थल है, इस के साथ साथ यहां पर गौरा देवी मंदिर भी प्रसिद्ध है, जो कि माता पार्वती को समर्पित है। गौरा देवी मंदिर को जागृत शक्तिपीठ कहा जाता है और इसका विशेष धार्मिक महत्त्व है। पौराणिक कहानियों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वयं देव कुबेर ने कराया था।

देवलगढ़ नागपंथी तथा सत्यनाथ समाधी | Devalgarh Nagpanthi & Satynath Samadhi

ऐसा माना जाता है कि राज राजेश्वरी मंदिर का निर्माण स्वयं राजा अजय पाल ने ही कराया था। अजय पाल के द्वारा ही यहां पर श्री सत्यनाथ भैरव और राज राजेश्वरी यंत्र की भी स्थापना की गई थी। यहाँ पर नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध सत्य नाथ जी की गद्दी भी है । ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में यह स्थान नाथपंथी योगियों का प्रमुख तीर्थ स्थल था तथा यहां पर नाग पंथी महंतों की समाधिया भी उपस्थित हैं जिनमें से सत्यनाथ समाधि प्रसिद्ध है। 

ऐसा माना जाता है कि जब राजा अजय पाल ने अपनी राजधानी देवलगढ़ में बनाई तब उस समय वहां के क्षतिग्रस्त मंदिरों के पत्थरों से ही एक मंदिरनुमा भवन  की स्थापना की और मंदिर के अंदर समस्त देवी देवताओं को स्थान दिया परंतु जब उन्होंने अपनी राजधानी देवलगढ़ से श्रीनगर स्थानांतरित की तब उस समय पूरा भवन ही मंदिर के लिए दे दिया था। श्रीनगर उस समय सामरिक व व्यापारिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होने के कारण अजय पाल ने उसे अपनी राजधानी बनाया था।  यहां के प्राकृतिक दृश्य अत्यंत मनोहारी हैं यहां पर अनेकों चबूतरे बने हुए हैं तथा उन पर कक्ष भी दिखाई देते हैं ऐसा कहा जाता है कि यह उस समय सैनिकों के लिए बनाए गए थे ताकि वे चारों तरफ से महल की सुरक्षा कर सकें। 

श्री यन्त्र उपस्थिति एवं जागृत शक्तिपीठ | Devalgarh Mandir Hindi

यहां राजेश्वरी मंदिर में श्री यंत्र की विधिवत पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि उत्तराखंड में उन्नत श्रीयंत्र केवल यहीं पर हैं।  मुख्य राज राजेश्वरी मंदिर समूह से कुछ ऊंचाई पर स्थित है और इस राज राजेश्वरी मंदिर में अखंड ज्योति की भी परंपरा है। मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है इसीलिए इसे जागृत शक्तिपीठ भी कहा जाता है। राज राजेश्वरी देवी को गढ़वाल राजाओं की स्थानीय देवी माना जाता है। 

देवलगढ़ में राज राजेश्वरी मंदिर में यहां पर अप्रैल महीने में मेला लगता है जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए दूर दूर से आते हैं।   

देवलगढ़ घूमने का उचित समय | Best time to visit Devalgarh Kila, Mandir

सर्दियों में अक्टूबर से दिसंबर के बीच का समय तथा गर्मियों में मार्च से अप्रैल का समय देवलगढ़ जाने के लिए सबसे अच्छा है। 

देवलगढ़ कैसे पहुंचे | How to reach Devalgarh Kila 

देवलगढ़ के निकट ही एक और पर्यटक स्थल  खिरसू है और  खिरसू से देवलगढ़ लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बद्रीनाथ नेशनल हाईवे 58 से खिरसू  जाते समय देवलगढ़ के लिए रास्ता मुड़ जाता है।  

हवाई मार्ग से देवलगढ़ पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट है जहां से देवलगढ़ की दूरी  140 किलोमीटर है। यहाँ से टैक्सी या बस द्वारा देवलगढ़ पंहुचा जा सकता है।   

रेल मार्ग द्वारा निकटतम रेलवे स्टेशन कोटद्वार और ऋषिकेश है  जहां से देवगढ़ की दूरी 100  किलोमीटर है । स्टेशन से टैक्सी द्वारा देवलगढ़  पहुंच सकते हैं। 

सड़क द्वारा देवलगढ़ देहरादून ,दिल्ली ,अल्मोड़ा ,नैनीताल  आदि से सड़क द्वारा आसानी से पंहुचा जा सकता है।

Beatific Uttarakhand !

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