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कांगड़ा किला, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश | Kangra Kila in Hindi

Kangra Fort Himachal Pradesh

Kangra Fort Himachal Pradesh

Kangra Kila in Hindi : कांगड़ा किला भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा नामक कस्बे के बाहरी सीमा में स्थित एक विशाल किला है। यह किला लगभग 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। कांगड़ा किले को भारत के सबसे प्राचीन किला होने का गौरव प्राप्त है। माना जाता है  कि यह  किला लगभग 3500  साल पुराना है।

प्राचीन समय में कांगड़ा किले को कांगड़ा नगरकोट या त्रिगर्त  नाम से भी जाना जाता था। यह किला कटोच राजवंश की राजगद्दी रहा है जो कि भारत के सबसे पुराने राजवंशों में से एक माना जाता है। त्रिगर्त साम्राज्य का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। यह किला पुराना कांगड़ा नामक स्थान पर बना हुआ है। कांगड़ा  किला माझी तथा बाण गंगा नदियों के बीच धौलाधार पर्वत श्रंखला की गोद में बसा हुआ है।

इस किले की सामरिक स्थिति, किले की वास्तुकला और किले का इतिहास भारत के वैभवशाली गौरव को प्रदर्शित करता है। कांगड़ा किला हिमाचल  प्रदेश के धर्मशाला शहर से केवल 20 किलोमीटर की दूरी पर है। 

Kangra Fort Himachal Pradesh

कांगड़ा किला – इतिहास | History – Kangra Kila in Hindi

Kangra Kila in Hindi
Kangra Kila Hindi

कांगड़ा किला कब बना , इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। ईसा पूर्व चौथी सदी में सिकन्दर के भारत आक्रमण के समय में इस किला का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि कांगड़ा किले का निर्माण सूशर्मा चंद कटोच ने कराया था जिन्होंने महाभारत काल में कौरवों के साथ मिलकर युद्ध में भाग लिया था। किले का इतिहास कटोच राजवंश के साथ जुड़ा हुआ है। कटोच राजवंश का संबंध राजा पोरस से भी है, यह वही पोरस है जिन्होंने  सिकंदर को भी युद्ध में हराया था। 

कांगड़ा किले का वैभव, ऐश्वर्य अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इसके वैभव को देखते हुए किले पर अनेकों बार आक्रमणकारियों ने आक्रमण किए हैं, जिनमें से यूनानी, कश्मीरी, गोरखा, मुगल , सिख और अंग्रेज शामिल थे।  आज यह किला एक खंडहर बन चुका है लेकिन उसको देखकर आज भी किले के गौरवशाली इतिहास का अहसास हो ही जाता है।  

ऐसा माना जाता है कि किले के आसपास के क्षेत्र में 21 कुँए थे  जिनमें गुप्त खजाने हुआ करते थे और प्रत्येक कुआं  4 मीटर गहरा और लगभग ढाई मीटर चौड़ा होता था। इस वैभव और धन धान्य से आकर्षित होकर किले पर अनेकों आक्रमण किए गए। 

इतिहासकारों के अनुसार कांगड़ा किले में अकल्पनीय खजाने थे, जिनके  कारण यह किला अन्य शासकोंऔर  विदेशी आक्रमणकारियों को लूट करने के लिए एक मुख्य स्थान  बन चुका था। कांगड़ा किले पर सबसे पहला हमला कश्मीर के राजा श्रेष्ठ सेन द्वारा कराया गया था। इस किले पर पहला विदेशी हमला गजनी के महमूद गजनवी ने किया था। कांगड़ा किले पर तुर्की सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने भी आक्रमण किया और उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी फिरोज शाह ने इस पर शासन किया था। 

इतिहासकारों का मानना है कि गजनी के महमूद ने अनेको बार कांगड़ा किले की घेराबंदी की और 21 कुओं में से 8 कुओं को उसने लूट लिया था। ऐसा कहा जाता है कि अकबर ने भी  52 बार  कांगड़ा किले की घेराबंदी की थीऔर उसे हर बार असफलता प्राप्त हुई। बाद में 14 महीने की घेराबंदी के बाद अकबर के बेटे जहांगीर ने इस किले को अपने कब्जे में ले लिया था । उसने उस समय के राजा हरि चंद कटोच और उनके अन्य सहयोगियों की भी हत्या कर दी थी।  लगभग डेढ़ सदी तक मुगल साम्राज्य ने यहां पर शासन किया। बाद में राजा संसार चंद कटोच, जो कि उस समय  नाबालिग  थे, ने सन 1775  में कांगड़ा की गद्दी संभाली और उन्होंने कांगड़ा राजवंश के एक स्वर्णिम युग का आरंभ किया था।

 उस समय उन्होंने जयसिंह कन्हैया की सिख सेना की मदद से कांगड़ा को पुनः प्राप्त किया थाऔर इसके बदले में उन्होंने जयसिंह कन्हैया को कुछ क्षेत्र भी प्रदान किए थे। इस समय को  कांगड़ा के कटोच राजवंश का स्वर्ण युग कहा जाता है। अपने शासन के दौरान उन्होंने यहाँ अनेकों मंदिरों, किलो, महलों, उद्यानोंऔर अनेकों गांव का निर्माण कराया था।  उन्होंने उस समय वहां की स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को एक नया जीवन प्रदान किया। इस दौरान  देश के कोने कोने से अनेकों कारीगरों, संगीतकारों, शिल्पकार, नर्तकों , तोप निर्माताओं को भी काम  करने के लिए कांगड़ा लेकर आएऔर उस समय कांगड़ा लघु चित्र शैली को भी  स्थापित की थी। 

राजा संसार चंद ने धीरे-धीरे अपने आसपास के सभी क्षेत्रों को अपने राज्य में मिला लिया था जिनमें से मंडी, सिरमौर, चंबा, शामिल थे और किले की सुरक्षा के लिए एक बड़ी सेना तैयार कराई थी लेकिन संसार चंद के अत्यंत महत्वाकांक्षी होने के कारण धीरे-धीरे कांगड़ा में कटोच राजवंश का पतन प्रारंभ हो गया था। कांगड़ा के किले पर गोरखाओं  का शासन स्थापित हो गया ,तब संसार चंद ने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह से सहायता मांगी थी  जिसके फलस्वरूप गोरखाओं  को वहां से भागना पड़ा और एक संधि के कारण कांगड़ा के किले पर सिखों का अधिकार स्थापित हो  गया था। 

सन 1846 में इस किले पर अंग्रेजों ने अपना कब्जा कर लिया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने किले में मौजूद  खजानों वाले 5  कुओं को लूट लिया था लेकिन सन 1905 में आए भयंकर भूकंप के कारण जब किले को अत्यधिक क्षति हुई उसके बाद अंग्रेजों ने किले को छोड़ दिया और उन्हें कटोच राजाओं को  वापस सौंप दिया था।  

कांगड़ा किला – आर्किटेक्चर | Architecture – Kangra Kila in Hindi

Kangra Fort Himachal Pradesh
Kangra Fort Himachal Pradesh

कांगड़ा किला एक समय में अपने वैभव और अभेद्य होने के लिए जाना जाता था। यह किला 2 नदियां मांझी और बाणगंगा के संगम पर एक पहाड़ी पर एक चट्टान पर स्थित था जहां से संपूर्ण कांगड़ा घाटी पर नजर रखी जाती थी।  यह किला 4 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।  इस किले की दीवार की  ऊंचाई नदी की सतह से लगभग 300 फुट है। इस किले को विशाल दीवारो द्वारा संरक्षित किया गया है।  किले की  मुंडेर को पहाड़ी की ढलान पर इस प्रकार बनाया गया है कि रक्षा की दृष्टि से कई परतें प्रदान की जा सके। इस किले के अंदर 23 बुर्ज और 7 द्वार बने हुए हैं । किले के भीतर दो बड़े-बड़े हौज़ बनाए गए थे। 

कांगड़ा किला मध्ययुगीन तथा प्राचीन कालीन किलों की वास्तुकला को प्रदर्शित करता है। कांगड़ा किले  की सुंदरता में किले में बनाए गए मेहराब, इसमें कलाकृतियां, नक्काशी और गुंबद आदि इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।  यह किला उस समय के अपने गौरवशाली अतीत को आज भी प्रस्तुत करता है लेकिन आज यह देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील हो चुका है।

कांगड़ा किले पर समय-समय पर अनेकों राजाओं का शासन काल रहा है। किले को जीतने वाले विजेता शासकों ने अपने अपने जश्न को अपने अपने तरीके से मनाने के लिए अनेकों द्वार बनवाए थे।  जिनमें से कुछ द्वार प्रमुख हैं जैसे जहांगीर दरवाजा, अहानी और अमीरी दरवाजा (जोकि मुगल राज्यपाल नवाब सैफ अली खान को समर्पित रहा है), इसके अलावा रंजीत सिंह दरवाजा (जोकि महाराजा रणजीत सिंह जी को समर्पित है) बनवाए गए थे।  कांगड़ा किले के ऊपर वाले द्वार को अंधेरी दरवाजे के नाम से जाना जाता है।  

रंजीत सिंह दरवाजा – कांगड़ा किला | Ranjeet Singh Darwaja – Kangra Kila in Hindi

कांगड़ा किले का मुख्य प्रवेश द्वार रंजीत सिंह दरवाजा है जिसका विशाल गेट हैऔर दरवाजा काफी छोटा है। एक छोटे से गलियारे से होकर गुजरता है इस गलियारे में दो गेट लगे हुए हैं इन गेट पर  मौजूद शिलालेखों को देखकर पता चलता है कि यह उस समय सिख काल के बाद  बनाए गए थे।

अहानी और अमीरी दरवाजे – कांगड़ा किला | Ahani Amiri Darwaja – Kangra Kila in Hindi

रणजीत सिंह द्वार के बाद अहानी और अमीरी दरवाजे से होकर किले के शीर्ष तक पहुंचा जाता है जहां पर गणेश जी ,हनुमान जी और अम्बा देवी की कलाकृति  बनी हुई हैं ।

जहांगीर दरवाजा, अंधेरी द्वार – Jahangir Darwajai Andheri Dwar – Kangra Kila in Hindi

इसके बाद आता है जहांगीर  दरवाजा जो कि सन 1620 में बनवाया गया था। आगे आता है अंधेरी द्वार जहा से  दुश्मनो पर नजर राखी जा सकती थी और आक्रमण किया जा सकता था। इसके बाद है दर्शनी द्वार और आगे बड़ा आँगन है जहा पर प्राचीन इमारते बनी हुई थी। आँगन में अम्बिका मंदिर और आदिनाथ जैन मंदिर एक साथ बने है।  

ब्रजेश्वरी देवी मंदिर – कांगड़ा किला | Brijeshwari Devi Mandir – Kangra Kila in Hindi

कांगड़ा किले के अंदर माता ब्रजेश्वरी देवी का मंदिर भी है।  ऐसा कहा जाता है कि उस समय कटोच राजवंश के समय माता ब्रजेश्वरी की मूर्ति को सारा धन समर्पित किया जाता था जिसके कारण वहां पर अपार धन सम्पति  होने के कारण आक्रमणकारियों के हमले हुआ करते थे। यह मंदिर आज भी वहां के स्थानीय लोगों के लिए पूजनीय है। 

अन्य आकर्षण – कांगड़ा | Other Attractions – Kangra

कांगड़ा के आसपास घूमने के लिए अन्य आकर्षण स्थान भी है जैसे यहां का ज्वालादेवी  मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर और आदिनाथ का मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा महाराजा संसार चंद कटोच संग्रहालय कांगड़ा का मुख्य आकर्षण है। 

कांगड़ा जाने के लिए सबसे अच्छा समय | Best Time to visit Kangra

यहां सितंबर से लेकर जून का समय सबसे अच्छा माना जाता है। किला खुलने का समय सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक निर्धारित किया गया है। किले में प्रवेश पाने के लिए यहां पर 150 रुपए प्रति व्यक्ति टिकट की व्यवस्था की गई है जो कि गाइड के साथ है और विदेशी सैलानियों के लिए यह मूल्य 300  रुपए  है। 

कांगड़ा किले तक किस प्रकार पहुंचा जाए? How to reach Kangra Kila

कांगड़ा किले का निकटतम हवाई अड्डा गग्गल हवाई अड्डा है  जिसकी कांगड़ा शहर से दूरी लगभग 11 किलोमीटर है । हवाई अड्डे से किले तक जाने के लिए बस, टैक्सी और ऑटो रिक्शा ले सकते हैं। 

कांगड़ा का अपना एक रेलवे स्टेशन है जो कि कांगड़ा घाटी के अंदर ही स्थित है  लेकिन यह एक टॉय ट्रेन स्टेशन है

जिससे कि इसका देश के अन्य शहरों के साथ कोई कनेक्शन नहीं है। कांगड़ा का निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट रेलवे स्टेशन है जिसकी कांगड़ा से दूरी लगभग 87 किलोमीटर है।

देश की राजधानी दिल्ली से कांगड़ा की दूरी लगभग 450 किलोमीटर है। दिल्ली से बस यात्रा द्वारा आसानी से कांगड़ा पहुंचा जा सकता है। देश के प्रमुख शहर चंडीगढ़ से भी कांगड़ा काफी नजदीक है, यहां से इसकी दूरी केवल 5 से 7 घंटे के भीतर तय की जा सकती है। 

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