Noorpur Kila in Hindi : नूरपुर का किला हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा जिले में स्थित नूरपुर नामक शहर में है। नूरपुर किले का निर्माण 16 वीं शताब्दी में पठानिया राजा वासुदेव ने कराया था। सन 1595 में पैठन यानी पठानिया राजा वासुदेव ने अपनी राजधानी पठानकोट से हटाकर धमड़ी बदल दी थी। उसके बाद पठानिया राजाओं ने धमड़ी में एक ऐतिहासिक किले का निर्माण कार्य कराया। इस किले को उन्होंने एक पहाड़ी पत्थर को तराश कर बनवाया था। यह पूरा किला एक पहाड़ी पत्थर पर बना हुआ है और यहां से बहुत दूर तक का दृश्य साफ-साफ देखा जा सकता है।
नूरपुर का किला – निर्माण | Noorpur Kila in Hindi
पैठन राजपूत राजा राजा वासुदेव के कार्यकाल में नूरपुर में सन 1580 से सन 1613 के बीच के समय में नूरपुर के इस किले का निर्माण कराया गया। नूरपुर किले के मुख्य द्वार पर भारतीय कला के बेजोड़ नमूने मौजूद है। यह किला मुगल और पहाड़ी कला का एक संगम है।
नूरपुर का किला – इतिहास | History – Noorpur Kila in Hindi
नूरपुर शहर को पहले धमड़ी नाम से जाना जाता था। धमड़ी को सबसे पहले 11 वें सदी में दिल्ली के तोमर राजाओं ने अपनी राजधानी बनाया था। ऐसा माना जाता है कि तोमर शासक महाभारत कालीन अर्जुन के वंशज हैं। धमड़ी को राजधानी बनाने वाले तोमर शासक राजा झेतपाल तोमर थे।
16 वें शताब्दी में सन 1580 से सन 1613 के बीच राजा बासुदेव ने धमड़ी में इस किले का निर्माण कराया था। बाद में 1618 में धमड़ी पर मुग़लों का अधिकार हो गया। उस समय यहाँ पर राजा बासुदेव के पुत्र राजा सूरजमल यहाँ शासन चला रहे थे। सन 1618 में मुग़लों से हरने के बाद राजा सूरजमल यहाँ से चले गए और कुछ समय बाद चम्बा में उनकी मृत्य हो गयी।
सन 1620 में मुग़ल शासक जहांगीर ने धमड़ी को राजा सूरजमल तोमर के भाई राजा जगतमल को दे दिया और उसके बाद से वह यहाँ मुग़लों के अधीन शासन करने लगे। उनके बाद राजा रूप सिंह, राजा मांंनघाता , राजा पृथ्वी सिंह, राजा वीर सिंह और राजा दयाघाता ने शासन किया था। सन 1859 में अंग्रेजों ने यहां पर अपना कब्जा कर लिया था।
धमड़ी का नाम नूरपुर कैसे पड़ा इसके पीछे भी एक रोचक कहानी बताई जाती है। यह कहानी आप इस आर्टिकल में आगे जान सकते हैं।
नूरपुर का किला – आर्किटेक्चर | Architecture – Noorpur Kila in Hindi
नूरपुर किले में पत्थरों पर करी गई चित्रकारी और कलाकृतियां इस बात का प्रमाण है कि सोलवीं सदी में हस्तकला का बहुतायत में उपयोग में लाया जाता था।
नूरपुर के किले की वास्तुकला और उसका समृद्ध इतिहास तथा उसके सौंदर्य को देखकर आज भी पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। नूरपुर के इस किले को भारत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक किलों में से एक माना जाता है। यह किला बीते हुए गौरवशाली युग का एहसास कराता है। नूरपुर का किला एक शानदार स्थापत्य, भव्यता वाला एक विशाल किला है।
यह किला एक समतल पठार में फैला हुआ है, जो रिज के पश्चिमी छोर का निर्माण करता है। किले के मुख्य आकर्षणों में यहां का प्रवेश द्वार, मुख्य किला, महल ,दरबार ए खास में बना हुआ मंदिर, रानी का महल, अनेकों तालाब व अनेकों कुएं है। कहा जाता है कि किले के अंदर 360 कुएं बनाए गए थे जिन्हें आज बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि आक्रमणों के समय राजा ने अपने खजानों को कुओं में फेंक दिया था जिन्हे आज तक कोई भी नहीं खोज पाया है।
बृजराज स्वामी मंदिर – नूरपुर का किला | Brijraj Swami Mandir – Noorpur Kila in Hindi
नूरपुर किले के अंदर भगवान बृजराज स्वामी का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर के विषय में कहा जाता है कि उस समय नूरपुर पर राजा जगत सिंह जी का राज थाऔर जगत सिंह जी को एक बार चित्तौड़ के राजा ने अपने यहां पर आमंत्रित किया था। जब जगत सिंह जी चित्तौड़ के राजा के पास गए तब उस समय रात के समय जगत सिंह जी को कुछ आवाज सुनाई दी। जब वह उस आवाज के पीछे उस जगह तक पहुँचे तो देखा कि एक मंदिर के अंदर भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति थी और वहां पर एक महिला नृत्य कर रही थी। बाद में पुजारी से पूछने पर उन्हें पता चला कि वह स्वयं मीराबाई थी। तब उन्हें पुजारी ने कहा कि आप जाते समय राजा से वह मूर्ति भेंट के रूप में मांग लेना। सुबह राजा जगत सिंह ने चित्तौड़ के राजा से भेंट के रूप में मूर्ति मांगी और उसे ले जाकर नूरपुर के इस किले में स्थापित किया।
राजा जगत सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया उस मूर्ति को स्थापित किया था। उन्होंने भगवान कृष्ण के साथ ही मीरा जी की धातु की मूर्ति का निर्माण कराया। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां भवन कृष्ण के साथ मीरा जी की पूजा की जाती है। मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर एक मेले का आयोजन किया जाता है।
नूरपुर का किला | Noorpur Kila in Hindi
ऐसा कहा जाता है किले पर जब मुगलो का आक्रमण हुए तब राजा ने भगवान श्री कृष्ण जी की मूर्ति को वहां से उठाकर अपने पास सुरक्षित स्थान पर रख लिया था। कुछ समय पश्चात सब कुछ शांत होने के बाद स्वयं भगवान ने उन्हें सपने में आकर कहा कि मुझे यहां से हटाकर स्थान दीजिए । तब राजा ने जल्दबाजी में उन्हें अपने दरबार में स्थापित करा दिया था। इसलिए दरबार ए खास में यह मंदिर है।
इस मंदिर के आधार की दीवारों पर बनी हुई आकृतियां कृष्णलीला को प्रदर्शित करती है।
नूरपुर का किला – तालाब | Pond – Noorpur Kila in Hindi
नूरपुर किले के अंदर एक तालाब बना हुआ है। इस तालाब के बारे में कहा जाता है कि यह एक ऐसा तालाब है जिस पर जैसे जैसे दिन चढ़ता है और सूर्य की किरणें पड़ती हैं , सूर्य की लालिमा के साथ-साथ इसके पानी का रंग भी बदलता रहता था। लेकिन आज यह सब कुछ दिखाई नहीं देता है।
धमड़ी से नूरपुर | Change of Name – Noorpur Kila in Hindi
पहले नूरपुर का नाम धमड़ी था। इसके पीछे भी एक कहानी है। कहा जाता है कि नूरपुर में पैठण राजपूत राजघराने का राज था। तब उन्हें पठानिया राजपूत भी कहा जाता था। मुगल सम्राट जहांगीर ने भी यहां पर कुछ समय तक शासन किया था । जहांगीर के अधिकार में आने के बाद यहाँ के राजा मुग़लों के अधीन यहाँ का शासन देखने लगे थे। राजा जगत सिंह जो उस समय यहाँ के शासक थे , के समय का दौरान जहांगीर की पत्नी नूरजहां भी पहली बार यहां पर आई थी, तब वह इस स्थान और किले को देखकर बहुत अधिक मोहित हो गई थी। तब नूरजहाँ ने यहीं रहने का निर्णय किया। वह इस किले का और अधिक विस्तार कराना चाहती थी लेकिन धमड़ी के अधिकतर राजा और यहां के स्थानीय लोग ऐसा नहीं चाहते थे । वह जान रहे थे कि एक बार अगर नूरजहां यहाँ आ गयी तो फिर यह जगह पूरी तरह से उनके अधिकार से चली जाएगी। इसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई।
नूरजहां और नूरपुर | Noorjahan and Noorpur – Noorpur Kila in Hindi
इसी योजना के चलते उन्होंने बड़ी सूझ बूझ के साथ एक मनोवैज्ञानिक रणनीति तैयार की थी। वह चाहते थे कि मुगल नूरपुर से हमेशा के लिए चले जाएं और किले और नूरपुर को भी कोई नुकसान ना हो। नूरजहां की इच्छा के अनुसार यहाँ पर किले में निर्माण का काम शुरू करा दिया गया। अपनी योजना के अनुसार ही राजा ने अधिकतर ऐसे लोगों को काम करने के लिए इकट्ठा किया जिन्हें गले की एक बीमारी थी । जिसे गिल्ड़ल कहा जाता था। ऐसे लोगों को उन्होंने इकट्ठा किया और किले में उनको कार्य करने में लगा दिया। जब नूरजहां ने वहां आकर उस कार्य का निरीक्षण किया तब उन्होंने यह पाया कि काम करने वाले सभी लोगों के गले कुछ अलग हैं। इसी कारण उन्होंने वहां के राजाओं से पूछा । तब उन राजा ने उन्हें यह तर्क दिया कि इस क्षेत्र की आबोहवा और यहां का पानी कुछ इस प्रकार का है कि अधिक लंबे समय तक यहां पर रहने के बाद लोगों को यह बीमारी लग जाती है। यह सुन कर नूरजहाँ और जहाँगीर घबरा गए। उसी समय उन्होंने यह जगह छोड़ने का निश्चय कर लिया और यहां से जाने का जाने की पूरी तैयारी कर ली। तब स्थानीय राजाओं ने जहांगीर और नूरजहां को खुश करने के लिए अपने इस स्थान धमड़ी का नाम बदलकर नूरपुर रख दिया। नूरपुर के इस किले को इसका यह नाम सन 1620 में मिला जिससे कि जहांगीर भी खुश होकर बिना किसी खून खराबे और बिना किसी लड़ाई झगड़े के वहां से चला गया।
नर्तकी नूरी की कहानी | Noori – Noorpur Kila in Hindi
नूरजहां को अपने रूप का अत्यधिक अभिमान था। एक और कहानी के अनुसार कहा जाता है कि जिस समय नूरजहां यहां आई थी उस समय नूरपुर में एक नर्तकी थी नूरी, जो कि बहुत ही मीठा गाती थीऔर बहुत ही अच्छा नृत्य भी किया करती थी। उसको सुनने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। साथ ही साथ नूरी बेहद रूपवती भी थी। नूरजहां सोचने लगी थी कि कहीं ऐसा ना हो कि जहांगीर उस पर मोहित हो जाए और उसे ही रानी बना दे। इसीलिए नूरजहां ने उस नर्तकी नूरी की जबान ही कटवा दी थी । जिसके बाद महल में गाना बजाना सभी शांत हो गया था। कहते है इसके बाद यहां हमेशा वहां पर खामोशी छा गई थी।
विनाशकारी भूकंप | After Earthquake – Noorpur Kila in Hindi
अंग्रेजों के शासन काल के समय , 1905 में आए भयंकर भूकंप के समय में किले का अधिकांश भाग ध्वस्त हो गया। आज किले के महल के नाम पर कुछ टूटी फूटी दीवारें और बिना छत के कुछ कमरे ही दिखाई देते हैं। किले की दीवारों पर बनाई गई आकृतियों में पशु पक्षियों के चित्र, मानव आकृतियां, राजा रानी के चित्र आदि को बड़ी कारीगरी के साथ दर्शाया गया है।
नूरपुर किला – वर्तमान | At Present – Noorpur Kila in Hindi
नूरपुर का किला आज भी उसके गौरवशाली इतिहास और वैभवमयी अतीत की याद दिलाता है। वर्तमान समय में यह किला खंडहर में बदल चुका है। वर्तमान समय में किले का रखरखाव केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा किया जा रहा है क्योंकि आज किला केवल अवशेष के रूप में ही उपस्थित है। किले के साथ ही रावी नदी भी बहती है।
सन 1947 से पहले यह क्षेत्र एक रियासत मानी जाती थी जो कि राजपूतों के पठानिया राजवंश के अंतर्गत आती थी। ऐसा कहा जाता है कि पठानिया राजवंश का 8 शताब्दियों से भी अधिक समय तक यहां पर शासनकाल रहा है।
नूरपुर को घूमने के लिए सबसे अच्छा समय | Best time to visit Noorpur Kila
वैसे तो वर्ष में कभी भी हिमाचल जाया जा सकता है लेकिन नूरपुर को घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर और नवंबर के महीने है । उस समय हिमाचल प्रदेश की खूबसूरती का आनंद उठाया जा सकता है। इसके अलावा गर्मी के मौसम में भी यहां पर आकर हिमाचल प्रदेश के अन्य आकर्षणों के साथ-साथ नूरपुर के किले का भी आनंद लिया जा सकता है ।
नूरपुर के किले तक इस प्रकार पहुंचा जाए | How to reach Noorpur
नूरपुर के किले तक पहुंचने के लिए नजदीक का एयरपोर्ट पठानकोट एयरपोर्ट है, जहां से नूरपुर के किले तक पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट रेलवे स्टेशन है। पठानकोट से गाड़ी या कैब द्वारा नूरपुर के किले तक पहुंचा जा सकता है ।
अगर सड़क मार्ग की बात करी जाए तो चंडीगढ़ से इसकी दूरी 44 किलोमीटर है। धर्मशाला और मकडोलगंज से समान दूरी पर स्थित नूरपुर तक की दूरी लगभग 154 किलोमीटर है।
नागनी माता का मंदिर | Nagni Mata Mandir
किले के आकर्षणों के साथ यहां का बृजराज स्वामी मंदिर प्रमुख है तथा साथ ही साथ यहां पर नागनी माता का मंदिर भी प्रसिद्ध है कहा जाता है कि जिस स्थान पर नागनी माता की मूर्ति रखी हुई है वहां रहस्यमय तरीके से जमीन के नीचे से पानी इकट्ठा होता है और लोगों का ऐसा मानना है कि अगर कोई उस पानी को पीता है तो सांप के काटने से वह ठीक हो जाता है।
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