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राजबुंगा किला चंपावत | Rajbunga Kila Champawat Hindi

Rajbunga Kila HIndi

Rajbunga Kila HIndi

Rajbunga Kila Champawat : राजबुंगा किला राजा की गढी किला उत्तराखंड के चंपावत शहर में स्थित है। चंपावत शहर उत्तराखंड के पूर्वी भाग में स्थित चंपावत जनपद का एक प्रमुख नगर है जोकि चंपावती नदी के तट पर बसा हुआ है, इसी कारण इस नगर का नाम चंपावत पड गया। चंपावत में कुमाऊं राजाओं ने अनेकों वर्षों तक राज किया तथा चंपावत को अपनी राजधानी बनाया। आज भी चंपावत नगर में चंद्र शासकों के बनाए हुए किलों के अवशेष देखने को मिलते हैं, जिनमें से राजबुंगा किला एक प्रसिद्ध किला है।

राजबुंगा किला – इतिहास | History Rajbunga Kila

राजबुंगा किला एक ऐतिहासिक महत्व का किला है। राजबुंगा किला राजा की गढ़ी और राज बुड्डा किला नाम से भी जाना जाता है। चंद वंश की पहचान राजबुंगा किला चंद वंश की शौर्य गाथा को प्रस्तुत करता है। इस किले का निर्माण चंद वंश की स्थापना के बाद राजा सोमचंद ने कराया था। राजबुंगा किले का निर्माण लगभग 1300 वर्षों पहले कराया गया था।

चंद्र वंश के राजाओं ने 1790 ईस्वी तक कुमाऊं में अपना शासन किया। सन 1790 में गोरखाओ ने चंद् राजाओं को हराकर कुमाऊं पर अपना अधिकार स्थापित किया। इसके बाद 1815 ईस्वी में ब्रिटिश सेना ने गोरखाओ को हराकर इसे अपने अधिकार में ले लिया और उन्होंने इस किले के अंदर तहसील स्थापित की। अभी भी यह किला चम्पावत की एक तहसील के रूप में ही इस्तेमाल में है।

राजबुंगा किला या जिन्न का किला | Jinn ka Kila Champawat

राजबुंगा किले का निर्माण 1300 वर्ष पहले कराया गया था। इस किले को जिन्न का किला भी कहते हैं। राजबुंगा किले से जुडी कहानियों के अनुसार इस किले की चारदीवारी का निर्माण एक जिन्न द्वारा एक ही रात में किया गया था और इसी कारन से इसे जिन्न का किला भी कह जाने लगा जाने लगा।

ऐसा भी माना जाता है कि उस समय काली कुमाऊं के सूर्यवंशी कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव इलाहाबाद से चंपावत आए औरचंद वंशी राजा सोमचंद्र से अत्यंत प्रभावित हुए। सोमचंद से मिलने के बाद राजा ब्रह्मदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोमचंद से कर दिया और साथ ही कुछ जमीन भी उनको दहेज के रूप मेंदे दी। इसी जमीन पर सोमचंद ने अपना किला बनवाया जिसका नाम राजबुंगा किला रखा।

राजबुंगा किला – आर्किटेक्चर | Architecture Rajbunga Kila

राजबुंगा किला एक अंडाकार शेप में है। यह किला एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है। किले की दीवारों के पत्थरों को लोहे की कीलों की सहायता से जोड़ा गया है। इस किले की दीवार लगभग 3 .50 मीटर मोटी है। किले का प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में है जबकि किले का निकास द्वार उत्तर दिशा में है।

राजबुंगा किले के दो प्रवेश द्वार तक सीढ़ीयों द्वारा पंहुचा जाता है। इस किले का मुख्य द्वार सुनहरी रंग का है। किले के मुख्य द्वार पर मूर्तियां दिखाई देती है जिनमें से एक मूर्ति हंसते हुए सिंह की है तथा दूसरी तरफ की मूर्ति रोते हुए सिंह की प्रतीत होती है। इसी कारण इसको सिंहद्वार भी कहा जाता है। 1300 वर्षों पहले द्वार के निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ियां आज भी काफी सही अवस्था में दिखाई पड़ती है। सिंह द्वार की लंबाई लगभग 2 मीटर,ऊंचाई लगभग 3 मीटर तथा चौड़ाई लगभग 4 . 8 मीटर है। किले के प्रवेश द्वार में दोनों तरफ दो कक्ष बने हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यह कक्ष उस समय द्वारपालों के लिए बनाए गए होंगे। प्रवेश द्वार में लगभग 3 इंच मोटाई के लकड़ी के दरवाजे हैं जिनका रंग सुनहरा है।

किले की दीवारों को देखकर इसकी उस समय की ऊंचाई का अनुमान लगा पाना मुश्किल है, क्योंकि आज यह राजबुंगा किला काफी खराब हालत में पहुंच चुका है। किले की रक्षा का काम करने वाले प्रहरी / सैनिकों के परिवार आज भी किले के आसपास ही रहते हैं । इन प्रहरी / सैनिकों के परिवारों की संख्या 40 से 50 के बीच है। यह प्रहरी शब्द आज भी इन परिवारों के साथ जुड़ा हुआ है। 

राजबुंगा किला – मंदिर से जुडी कहानी | Stories related to Rajbunga Kila

राजबुंगा किले के मुख्य द्वार के पास ही एक मंदिर है जिसे चंद शासकों के इष्ट देवता नागनाथ बाबा का मंदिर कहा जाता है। इसके पीछे भी एक कहानी छुपी हुई है। ऐसा माना जाता है की किले के निर्माण के समय जो खम्भे तैयार किये जा रहे थे वह ठीक से रुक नहीं पा रहे थे। बार-बार बनाने के बाद भी खंभे गिर जाते थे। उस समय यह कहा गया कि यहां पर नागनाथ का निवास है। यह सुनने पर राजा सोमचन्द ने खुद नागनाथ की पूजा कराई। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद खम्भे बनाये गए और राजा ने किले के अंदर मंदिर का निर्माण कराया। राजा इस मंदिर में नागनाथ की पूजा के लिए जाते थे।

आज भी जन्माष्टमी के अवसर पर यहां पर एक उत्सव का आयोजन किया जाता है। किले के बीचो बीच एक दुर्गा देवी का मंदिर भी है।

जल का प्रबंध या नौला | Water Management in Rajbunga Kila

यहां से माना जाता है कि किले में लालु वापनी के जंगलों से मिट्टी के पाइपों के द्वारा पानी की आपूर्ति की जाती थी। यहां से एक गुप्त द्वार भी निकलता है जो कि किले के पिछले द्वार से जाकर एक रास्ते से मिल जाता है। किले के पीछे की तरफ एक बड़ा जल स्रोत का प्रबंध था। जिसे नौला कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि यह स्थान रानियां अपने नहाने के लिए इस्तेमाल करती थी लेकिन आज यह बहुत ही जीर्ण क्षीर्ण हालत में है। इस नौला को आज एक नाली में बदल दिया गया है।

किले के मुख्य द्वार से चंपावत शहर की खूबसूरती देखते ही बनती है जहां से हिमालय की वादियों को भी देखा जा सकता है। पंचाचूली पर्वत की नैसर्गिक सुंदरता को भी यहां से देखा जा सकता है।

राजबुंगा किला – रणनैतिक महत्व | Strategic Importnace of Rajbunga Kila

इस किले का रणनैतिक महत्व बहुत अधिक रहा है। जब भी कभी किसी युद्ध की संभावना होती तो सबसे पहले राजबुंगा किले से नगाड़ों की आवाज आती थी जिसे सुनकर चारों दिशाओ के प्रतिनिधि अपनी अपनी फौज लेकर राजबुंगा आ जाते थे।

राजबुंगा किला – वर्तमान हालात | Rajbunga Kila at present

वर्तमान समय में राजबुंगा किला देखरेख के अभाव को झेल रहा है जिससे यहां पर टूरिस्ट्स की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है।  हालाँकि यह किला एक तहसील के रूप में परिवर्तित कर  दिया गया है और यहीं से सरे प्रशासनिक काम होते हैं लेकिन फिर भी यह किला अभी जर्जर है।  

पर्यटन विभाग ने किले के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यहां पर लाइट और साउंड शो को कराने का प्रस्ताव भी रखा है। अगर ऐसा होता है तो राजबुंगा किले को फिर से  एक नई पहचान मिल सकेगी जिससे यहां पर आने वाले टूरिस्ट्स की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो सकेगी और तभी  हम अपनी इस धरोहर को बचा सकेंगे। 

राजबुंगा किला कैसे पहुंचे | How to reach Rajbunga Kila

चंपावत शहर उत्तराखंड के मुख्य  शहरों तथा कस्बों से जुड़ा हुआ है। यहां तक सड़क द्वारा ,हवाई मार्ग द्वारा या रेल मार्ग द्वारा  भी पहुंचा जा सकता है। हवाई  मार्ग  द्वारा पंतनगर हवाई अड्डा चंपावत का निकटतम हवाई अड्डा है जहां से उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है। इस हवाई अड्डे से चंपावत के लिए  टैक्सी भी उपलब्ध है।  रेल मार्ग द्वारा टनकपुर चंपावत का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन है। रेलवे स्टेशन से चंपावत के लिए बड़ी आसानी से सुविधाएं उपलब्ध है।  आगरा व  दिल्ली जैसे बड़े शहरों से भी टनकपुर के लिए सुविधाएं उपलब्ध है।  सड़क मार्ग द्वारा दिल्ली आईएसबीटी और आनंद विहार से टनकपुर के लिए स्टेट ट्रांसपोर्ट और प्राइवेट टूरिस्ट बस सेवा उपलब्ध है। 

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