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स्ट्रे डॉग्स – साथी या समस्या

स्ट्रे डॉग्स
स्ट्रे डॉग्स – साथी या समस्या

एक कहानी पालतू कुत्ते की

क्लास ६ में इंग्लिश में एक कहानी है “How the Dog found himself a New Master” । इस कहानी में बताया गया है कि कैसे कुत्ता पहले एक जंगली जानवर था और उसे एक मालिक की तलाश थी जो की सबसे ज्यादा ताकतवर हो।

इस कहानी में पहले उसे एक भेड़िया मिला जो अपने से बड़े भालू से डर गया , तो कुत्ते ने भेड़िये को छोड़ कर भालू के साथ रहना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद उसने देखा कि भालू शेर से डरता है तो वो शेर के साथ रहने लगा। बाद में उसने देखा कि शेर को इंसान से डर लगता है तो वो उसे छोड़ कर इंसान के साथ रहने लगा और उसके बाद फिर कुत्ते ने किसी और मालिक की तलाश कभी नहीं की।

कहानी पढ़ने में बहुत ही अच्छी है और बच्चों को समझने के लिए बहुत सही भी है। इस कहानी का जिक्र यहाँ इसलिए किया है जिस से , कुत्तों ने इंसान को अपना मालिक क्यों चुना ये समझना आसान हो जाये। समय के साथ कुत्ते वफादार जानवर हो गए और हम इंसानों पर बहुत ज्यादा निर्भर भी हो गए।

इस से कुछ अलग कहानी एक इंग्लिश फिल्म “अल्फा ” में दिखाई गयी। एक लड़के ने एक भेड़िये कि मदद कि और वो भेड़िया उसके साथ ही हो गया और फिर उसी के साथ इंसानी बस्ती में रहने लगा और फिर वही से डॉग डोमेस्टिकेशन यानि कुत्ते के पालतू बनाने की शुरुआत हुई। अब शुरुआत चाहे जो भी हो , चाहे कुत्ते ने इंसान को अपना मालिक बनाया हो या फिर इंसान ने कुत्ते को पालतू बनाया हो , आज हम ये तो आसानी से देख सकते हैं की कुत्तों की निर्भरता इंसानों पर ज्यादा है न कि इंसानों कि कुत्तों पर।

जानवर पालतू कब बने

लगभग 10000 साल पहले पहली बार कुत्ते को पालतू बनाया था , जो की शायद कोई भेड़िया ही रहा होगा। जब इंसानों ने खेती कर एक जगह साथ में एक गांव कि तरह रहना शुरू किया तभी से पौधों और जानवरों को पालतू बनाने का सिलसिला चल निकला। कुत्ता और बकरी सबसे पहले पालतू बनाये गए जानवरों में हैं। कुत्तों को शिकार के लिए साथ में रखा जाता था और इस तरह से उन्हें इंसानी बस्ती में साथ में ही रखा जाता था।

कहाँ से आये स्ट्रे डॉग्स

जैसे जैसे रहने के तरीके बदले, नयी जीवन शैली आयी कुत्तों का इस्तेमाल इंसान के लिए काम हो गया लेकिन फिर भी कुत्ते इंसानी बस्ती में ही रहे। इसी नयी जीवन शैली ने जिसमे कुत्तों कि कोई जरूरत ही नहीं रही , एक नयी समस्या को जन्म दिया “स्ट्रे डॉग्स ” या ” आवारा कुत्ते “।

भारत में स्ट्रे डॉग्स की समस्या

भारत में लगभग 3.50 करोड़ से ज्यादा स्ट्रे डॉग्स हैं। ये संख्या एक बहुत बड़ी संख्या है भारत जैसे देश के लिए। इन से संबंधित कोई भी घटना तभी सुर्खियों में आती है जब कहीं कुत्ते ने किसी इंसान को काटा हो या कुत्तों के हमले में कोई मौत हुई हो। इसके उलट, जब कोई इंसान कुत्ते को मारता है या उसको कुचल कर निकल जाता है तो कभी कोई खबर नहीं बनती है। आज के समय में इंसान और इन “स्ट्रे डॉग्स ” या ” आवारा कुत्ते ” के बीच टकराव बढ़ा है ।

स्ट्रे डॉग्स और रेबीज

दुनिया में रेबीज जैसी बीमारी से सबसे ज्यादा मौतें होने वाले देशों में पहला स्थान भारत का है। हर साल लगभग 20,000 लोग रेबीज का शिकार बनते हैं और अपनी जान गवां देते हैं। रेबीज एक ऐसी बीमारी है, जिसका मोर्टेलिटी रेट (मृत्यु दर ) 100 % होता है । ऐसे बहुत कमलोग हैं जो रेबीज से खुद को ठीक होते देख सके हैं।

नीदरलैंड : स्ट्रे डॉग्स की समस्या

अभी तक तो बात हुई समस्या की लेकिन क्या इस समस्या का कोई समाधान भी है ? यहाँ बात करेंगे नीदरलैंड की। नीदरलैंड अकेला ऐसा देश है जिसने अपने यहाँ से स्ट्रे डॉग्स की समस्या को पूरी तरह से खतम किया है, मतलब वहाँ एक भी कुत्ता आपको गलियों में भटकता नही मिलेगा। वजह है उसके पीछे की गयी प्लानिंग। कुछ दशकों पहले पालतू कुत्तों को सड़क पर छोड़ देना वहां लीगल था और इसलिए वहां की गलियां इस तरह से छोड़े गए कुत्तों से भर गयी। नेदरलैण्ड सरकार ने एक फार्मूला अपनाया जो की CNVR (Collect, Neuter, Vaccinate, and Return) Program के नाम से जाना गया।

Dog lover’s और स्ट्रे डॉग्स

इसी तरह के एक प्रोग्राम के जरिये हमारे देश में भी स्ट्रे डॉग्स की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है । Dog lover’s की भी एक नई पीढी तैयार हुई जो सड़क पर रहने वाले कुत्तों को खाना और कभी बारिश और धूप, सर्दी से बचने के लिए shelter भी देते हैं। व्यक्तिगत तौर पर ये एक बहुत ही अच्छा काम है लेकिन इससे स्ट्रे डॉग्स की समस्या पर काबू पाना असंभव है। इसके लिए सरकारों और प्रशासन को सख्त रूप से कदम उठाने की जरूरत है।

कुछ जरूरी कदम

बाहरी Dog Breeds को अपने यहाँ बैन कर के काफी हद तक इस स्थिति को बदला जा सकता है। वैसे भी यहाँ के गर्म सर्द मौसम के हिसाब से उनका एडजस्ट होना भी काफी पीढा भरा होता है, जबकी भारतीय डॉग breeds बहुत आसानी से उसमे एडजस्ट हो जाती है ।

बाहरी डॉग breeds ना होने से लोग भारतीय डॉग breeds को अडॉप्ट करेंगे जो की बाहरी डॉग breeds के मुकाबले ज्यादा समझदार होती है और उसे बहुत ज्यादा देखभाल की भी ज़रूरत नहीं होती, क्योंकि वो इसी मौसम में पैदा हुए हैं तो उन्हें यहाँ के हिसाब से एडजस्ट करना भी अपने आप से ही आ जाता है और उन्हें जल्दी train भी किया जा सकता है।

इनका sterilization भी बहुत आवश्यक है । , क्योंकि इनका प्रेग्नेंसी पीरियड सिर्फ 3 महीने का ही होता है  , ये एक साल में 3 बार भी जन्म दे सकते हैं, जिससे इनकी आबादी बहुत तेजी से बढती है और ये कभी आपस में लड़ कर, भूख से, या रोड accidents में घायल हो कर या कुचल कर मारे जाते हैं, जो की मानवीय दृष्टी से भी सही नहीं है।

डॉग owners की भी मॉनिटरिंग जरूरी है, जिससे की कोई भी अपने डॉग को बाहर कहीं ना छोड़े, जैसा की कुछ लोग डॉग से मन भर जाने , बूढ़ा हो जाने या उसके बच्चे हो जाने पर उनके साथ करते हैं। साथ ही डॉग पालने वाले के पास उसके sterilization, vaccination के documents भी होने चाहिए।

स्ट्रे डॉग्स की संख्या कंट्रोल होने पर इनके साथ होने वाली क्रूरता पर भी लगाम लगेगी और इनको भी एक अच्छा जीवन मिलेगा।

भारतीय नसल के डॉग breeds –

  • Indian Pariah dog
  • Kombai dog
  • Rampur Hound Dog
  • Chippiparai dog
  • Rajapalyam dog
  • Pandikona Dog
  • Gaddi dog
  • Bakharwal dog
  • Indo Tibetan Mastiff dog
  • Kumao Mastiff dog
  • Indian Spitz dog
  • Indian Bully dog
  • Gul Dong dog
  • Gul Terriar dog
  • Kanni dog
  • Mudhol Hound dog
  • Jonangi dog
  • Vikhan Sheep dog
  • Kaikadi Terrier dog

स्वदेशी डॉग ब्रीड | Indian Dog Breeds – Hindi

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