Dhamdha Kila in Hindi : धमधा किला छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में स्थित है। धमधा किला गौड़ राजाओं का गढ़ हुआ करता था। छह कोरी छह आगर तरिया वाला गढ़ के नाम से धमधा का किला जाना जाता था।
छत्तीसगढ़ राज्य का अस्तित्व 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होने के पश्चात अस्तित्व में आया था। इस राज्य का प्राचीन नाम कौशल राज्य है। इस राज्य को भगवान श्री राम का ननिहाल कहा जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उनकी माता कौशल्या देवी इसी राज्य से थीं। कौशल राज्य से होने के कारण ही उन्हें कौशल्या कहा गया था।
छत्तीसगढ़ का वर्तमान नाम लगभग 300 साल पहले यहां पर रहने वाली एक जनजाति जिसे गौड़ जनजाति कहा जाता है, के शासनकाल के दौरान मिला था। छत्तीसगढ़ में गौड़ राजाओं के लगभग 36 किले हैं। इन किलों को गढ़ कहा जाता है जिसके कारण इस राज्य को छत्तीसगढ़ कहा गया।
गौड़ साम्राज्य | Gaud Kingdon – Dhamdha Kila in Hindi
लगभग 1100 साल पहले गौड़ राजाओं का साम्राज्य 9 वीं शताब्दी तक मध्य भारत के बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था जिसमें आज के मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और उड़ीसा के कुछ क्षेत्र भी सम्मिलित थे। इस सम्मिलित क्षेत्र को गोंडवाना कहा जाता था।
गौड़ राजाओं के बाद गोंडवाना का एक बहुत बड़ा हिस्सा मराठा राजा भोंसले और कुछ भाग हैदराबाद के निजाम के अधीन आ चुका था। ब्रिटिश शासन के दौरान यहाँ पर अंग्रेजों का कब्जा हो गया था। इसी क्षेत्र में छत्तीसगढ़ का धमधा किला आता है। यह ऐतिहासिक किला गौड़ राजाओं के द्वारा बनवाया गया था।
पंच भैया | Five Brothers
धमधा के गौड़ राजाओं को पंच भैया राजा कहा जाता था जो कि रतनपुर राज की एक जमीदारी थी। ऐसा कहा जाता है कि यह पांचों भाई युद्ध में एक विशेष तरीके से लड़ते थे और दुश्मन को पस्त कर दिया करते थे।
धमधा किला – इतिहास | History – Dhamdha Kila in Hindi
इतिहासकारों के अनुसार दक्षिण में विजयनगर के राजा ने गौड़ भाइयों की वीरता से प्रभावित हो कर सरदा परगना उन्हें उपहार स्वरुप दिए थे। गौड़ भाइयों ने एक पागल हाथी को अपने वश में कर के राजा को प्रभवित किया था। उस समय यह किला, भव्य मंदिर और प्रमुख सिंहद्वार बड़े ही जीर्ण शीर्ण अवस्था में थे। उस समय गौड़ भाइयों ने धंमधा किले को ही अपना निवास स्थान बना लिया था और यहां एक गांव बसाया। धीरे धीरे उन्होंने अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया और वहां पर राज करने लगे थे। उस समय रतनपुर राज्य में धमधा को एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान समझा जाने लगा था।
गौड़ राजाओं ने बाद में धमधा को अपनी राजधानी बना लिया था। सरदा परगना को काफी समय तक इतिहासकार अज्ञात गढ़ के नाम से जानते थे। यह सरदा गढ़ आज धमधा है जिसे गौड़ राजाओं ने अपनी राजधानी बनाकर करीब 700 सालों तक यहां पर राज किया था। आज भी वहां इसके प्रमाण और अवशेष देखे जा सकते हैं।
इस किले के लगभग दो मंजिलें आज भी जमीन के नीचे हैं। ऊपर की तरफ दो मंज़िल हमें दिखाई देती हैं जो कि आज खंडहर में तब्दील हो चुकी है।
धमधा किला – आर्किटेक्चर | Architecture – Dhamdha Kila in Hindi
धमधा किले का निर्माण पत्थरों द्वारा किया गया था। प्राचीन किले और महल मिट्टी और चूने का उपयोग कर के पत्थरों को जोड़ जोड़ कर बनाये जाते थे। धमधा किले का निर्माण भी कुछ इसी तरह से किया गया है। इस किले के अवशेष देखने पर आज भी ये पत्थर मजबूती के साथ जुड़े हुए दिखाई देते हैं।
धमधा किले की विशेषता – 126 तालाब | 126 Ponds – Dhamdha Kila in Hindi
धमधा किला एक विशेष किला है। यह किला एक अभेद्य किला माना जाता था। ऐसा इसलिए था क्योंकि यह किला चरों तरफ बड़े बड़े तालाबों से घिरा हुआ था और बिना नाव के किले तक पहुंचना आसान नहीं था। धमधा किला 126 तालाबों से घिरा हुआ था, हालाँकि आज इनमें से केवल कुछ ही तालाब बचे हुए हैं और अधिकांश तालाब अतिक्रमण से ख़त्म हो चुके हैं।
धमधा किले चारों तरफ इन तालाबों को बनवाया गया था और इन तालाबों को हर समय पानी से लबालब भरा रखा जाता था। इन तालाबों को पार कर के महल तक जाना और आक्रमण करना बहुत ही दुष्कर कार्य था। इन 126 तालाबों से घिरे होने के कारण धमधा को 6 कोरी 6 आगर तरैया यानी कि 126 तालाबों वाला गांव कहा जाता था।
धमधा किले को सुरक्षित रखने के लिए इन तालाबों में खतरनाक मगरमच्छों को रखा जाता था जिससे की कोई भी दुश्मन अगर इधर आता तो इन मगरमच्छों का शिकार बन जाता था। गोंड राजाओं द्वारा निर्मित तालाब लगभग 500 एकड़ एरिया में फैले हुए थे।
इन तालाबों को पानी से भरने के लिए विशेष व्यवस्था की जाती थी जो कि आज भी सबको हैरान कर देती है। आज के समय में इनमें से केवल 25 तालाब ही बचे हुए हैं। तालाबों में पानी भरने के लिए बूढ़ा नरवा यानी कि बूढ़ा नाला के पानी का इस्तेमाल किया जाता था।
बूढा नरवा | Boodha Narva – Dhamdha Kila in Hindi
इस बूढ़ा नरवा में पानी की सप्लाई 5 किलोमीटर दूर के खेतों से होती थी, जो कि आज भी होती है। यहां पर बारिश का और खेतों का अतिरिक्त पानी एक लंबी नहर से होकर एक तालाब में पहुंचता था जो कि दूसरे , तीसरे और इसी प्रकार से आगे के अन्य तालाबों में पहुँचता था। गौड़ राजाओं ने जो व्यवस्था की थी वह एक वैज्ञानिक आधार पर थी।
इस व्यवस्था के अनुसार एक लंबी नहर बनाई जिसमें बहुत सारे पेड़ लगाए गए थे। पेड़ों की जड़ों में जो तत्व मौजूद थे तथा जो सूक्ष्मजीव पाए जाते थे , उस वजह से पानी शुद्ध हो जाता था और वही पानी खाना बनाने, पीने तथा अन्य कार्यों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता था। इस प्रकार से इन तालाबों का जल स्तर भी बहुत अधिक बढ़ जाता था। जिसके कारण दोनों तरीके से कार्य होता था। किले को सुरक्षित भी रखा जाता था और पानी की आपूर्ति भी अच्छी प्रकार से की जाती थी।
धमधा किला – बूढ़ा देव | Boodha Dev – Dhamdha Kila in Hindi
यहाँ के लोग भगवान शिव को अपना आराध्य मानते थे और वह अपनी भाषा में इन्हें बूढ़ादेव कहते थे। इन्हीं के नाम पर नालों को पानी से भरने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बड़े नाले को बूढ़ा नरवा कहा जाता था।
धमधा किला – सिंह द्वार | Sinh Dwar – Dhamdha Kila in Hindi
महामाया मंदिर के ठीक सामने की तरफ सिंहद्वार है जो कि गोंड राजाओं के धमधा के प्राचीन और वैभवशाली इतिहास को प्रस्तुत करता है। इसका निर्माण कार्य बलुआ पत्थर द्वारा कराया गया है और प्रवेश द्वार में भगवान विष्णु की प्रतिमाएं अंकित की गई है। प्रवेश द्वार में भगवान विष्णु के 10 अवतारों के भी प्रतीक दिखाई देते हैं।
धमधा किला – बूढ़ा देव मंदिर | Boodha Dev Mandir – Dhamdha Kila in Hindi
महामाया मंदिर के ठीक पीछे एक मंदिर स्थित है जिसे बूढ़ादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में पत्थरों से बने हुए 12 स्तंभों का एक मंडप भी बनवाया गया था।
धमधा किला – सुरक्षा | Dhamdha Kila in Hindi
धमधा किले में दीवारों में छेद बनाए गए थे जो कि बाहर से देखने पर दिखाई ही नहीं देते थे और अंदर से बाहर का नजारा साफ-साफ दिखा सकते थे। यह छेद उस समय सुरक्षा की दृष्टि से सैनिकों द्वारा किले की सुरक्षा करने के लिए बनाए गए थे जिससे कि वह वहां से हथियार रख कर बाहर की तरफ दृष्टि बनाए रख सकते थे और बाहर से आने वाला कोई भी दुश्मन उन सैनिकों को और अंदर की तरफ नहीं देख सकता था।
धमधा का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर | Dhamdha – Mahamaya Mandir
धमधा का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर बहुत प्रसिद्द है। ऐसा कहा जाता है कि गौड़ वंश के दसवें राजा दसवन्त सिंह जो कि बहुत ही अल्पायु में राजगद्दी पर बैठे थे, तब उनकी माँ राजपाट में उनका सहयोग करा करती थी। यहाँ प्रचलित किंवदंती के अनुसार महारानी को एक रात सपना आया था और उन्होंने सपने में महाकाली देवी के दर्शन किये और उनके कहने के अनुसार किले के सिंहद्वार के पास खुदाई करा कर एक विशेष प्रतिमा प्राप्त की थे।
यह मूर्ती मुख से लेकर नाभी तक की थी। इस तरह महारानी को दो और सपने आये और उन्होंने सपने में मिले निर्देश के अनुसार अलग अलग जगह पर खुदाई करा कर दो अलग अलग मूर्तियां प्राप्त की थीं। इस प्रकार से मंदिर में तीनों देवियों की मूर्तियों की स्थापना कराई गई थी जिसे की धमधा का प्रसिद्ध त्रिमूर्ति महामाया मंदिर कहा जाता है। तभी से यह महामाया मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्त्व रखता है।
तीनों देवियां महाकाली, महालक्ष्मी, तथा मां सरस्वती जी का एक साथ एक ही गर्भ ग्रह में मिलना अपने आप में एक अनोखी बात है जो कि दूसरी जगह कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। यह सब मूर्तियां केवल वैष्णो देवी मंदिर में ही पिंड के रूप में एक साथ विद्यमान है। जबकि यहां पर यह साकार रूप में देखी जाती हैं इनकी स्थापना गौड़ राजा द्वारा 425 साल पहले कराई गई थी।
धमधा कैसे पहुँचे | How to reach Dhamdha
धमधा का किला देखने जाने के लिए छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी सड़क के रास्ते से तय कर के जाया जा सकता है। यहाँ का सबसे नजदीक का एयरपोर्ट छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट है। रायपुर से धमधा की दूरी लगभग 65 किलोमीटर है।
धंधा पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन दुर्ग ही है।
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