Chandpur Garhi Kila Hindi : चांदपुर गढ़ी किला उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। चांदपुर गढ़ी किला कर्णप्रयाग और गैरसैण के बीच में स्थित है। अटागाढ़ नदी के किनारे एक टीले पर स्थित चांदपुर गढ़ी किला पंवार शासकों और गढ़वाल की कहानी कहता है। चमोली के सुन्दर पहाड़ियों के बीच स्थित यह चांदपुर गढ़ी किला एक ऐतिहासिक टूरिस्ट आकर्षण है।
Chandpur Garhi Kila Hindi – Gadhwal History | चांदपुर गढ़ी किला – गढ़वाल का इतिहास
गढ़वाल के इतिहास का आरंभ कत्यूरी राजाओं से माना जाता है। कत्यूरी राजाओं ने 10 वीं शताब्दी तक जोशीमठ में शासन किया और उसके बाद लगभग 11 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाया। कत्यूरी राजाओं ने जब गढ़वाल छोड़ कर अल्मोड़ा को अपनी राजधानी बनाया तो यहाँ पर अनेकों छोटे-छोटे गढ़ का उदय हुआ जिनमें से चांदपुर गढ एक प्रमुख था ।
चांदपुर गढ़ी को एक अत्यंत शक्तिशाली गढ़ माना जाता रहा है। यहां पर मिलने वाले प्राचीन अभिलेखों और पुरातत्व विभाग के साक्ष्यों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह कहा जाता है कि राजा कनक पाल, जो कि गढ़वाल के एक शक्तिशाली राजा थे, वह मालवा ( जो आधुनिक मध्य प्रदेश में है ) से संवत 755 को गढ़वाल आए और उन्होंने खुद को राजा सोनपाल का उत्तराधिकारी घोषित किया था। राजा कनकपाल ने चांदपुर गढ़ी को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था।
चांदपुर गढ़ी के इतिहास को लेकर इतिहासकारों के कोई एक राय नहीं है। इतिहासकार अभी साफ साफ नहीं कह पाए हैं कि दरअसल कब चांदपुर गढ़ी एक राजधानी बना था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कनक पाल 699 में मालवा के धारा नगरी से यहां आए थे और कुछ का मानना है कि वह गुज्जर देश (आधुनिक गुजरात ) से आए थे।
Chandpur Garhi Kila Hindi – History | चांदपुर गढ़ी का इतिहास
चांदपुर गढ़ी का इतिहास लगभग 1300 साल पुराना है। ऐसा माना जाता है कि कि आठवीं- नौवीं शताब्दी में गढ़वाल क्षेत्र अनेकों छोटे-छोटे राज्यों में बँट चुका था। इसी समय चांदपुर गढ़ी में भानु प्रताप नाम के शासक राज्य करते थे। उन्होंने गुजरात के धारानगर से आए कनक पाल नाम के एक राजकुमार से अपनी बेटी की शादी कर दी और उसके बाद उन्होंने कनक पाल को चांदपुर का राज्य दे दिया। इन्हीं कनक पाल ने गढ़वाल में पंवार वंश की स्थापना की थी। गढ़वाल का अर्थ है होता है 52 गढ़ों का समूह । उत्तराखंड में बावन गढ़ हैं। उन्हीं गढ़ में से एक है चांदपुर गढ़।
पंवार वंश के अंतिम राजा अजय पाल थे। 37 वें राजा अजय पाल ने यहां के 52 गढ़ों को एकत्रित किया तथा बाद में इस क्षेत्र को गढ़वाल नाम दिया। यहीं से राजा अजय पाल ने गढ़वाल पर अपना शासन कार्य किया। राजा अजय पाल ने बाद में चांदपुर गढ़ी से अपनी राजधानी बदलकर देवलगढ़ में स्थापित की तथा उसके बाद राजधानी देवलगढ़ से बदलकर श्रीनगर में स्थापित की गई, क्योंकि उस समय वहां पर बाहरी आक्रमण लगातार होते रहते थे, जिससे अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए राजा अजय पाल ने इस प्रकार का निर्णय लिया। देवलगढ़ वर्तमान समय में पौड़ी जनपद में स्थित है।
Chandpur Garhi Kila Hindi – Architecture | चांदपुर गढ़ी किला – आर्किटेक्चर
Archeological Findings | पुरातत्व खोज
चांदपुर गढ़ी किला गढ़वाल के इतिहास में खास तौर पर महत्वपूर्ण है। राजा कनकपाल ने आदि बद्री के निकट चांदपुर मे अपने पवार वंश की स्थापना की और आगे चलकर यह चांदपुर गढ़ या चांदपुर गढ़ी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह किला लगभग 1.5 एकर क्षेत्र में फैला हुआ है।
सन 2003 -2004 में यहां पर पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई कराये जाने पर पंवार वंश और चांदपुर गढ़ी किले के बारे में और जानकारियां मिलीं । चांदपुर गढ़ी किले के अंदर अनेकों प्राचीन कलाकृतियो के अवशेष और हस्त कारीगरी ( हाथ से बनी ) के प्रमाण मिलते हैं। इस किले में भगवान विष्णु का मंदिर स्थापित है।
Architecture | किले की संरचना
किले की संरचना के अवशेषों से अनुमान लगाया जाता है कि यहां पर स्नानघर, पूजा घर ,सैनिकों के कक्ष, रसोईघर आदि भी रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि महल के नीचे एक सुरंग भी है जो कि लगभग 500 फीट नीचे है और किले के पास होकर बहती नदी में जाकर मिल जाती है।
किले की दीवार की बाहर की मोटाई लगभग 30 इंच रही होगी और इसके कक्षों के बीच की मोटाई लगभग 22 इंच रही होगी जो कि उस समय वहां के सैनिकों के लिए बनाए गए थे। चांदपुर गढ़ी पहाड़ी से घिरी हुई है और इसी वजह से वहां पर पानी की समस्या रहती होगी। किले में पानी की आपूर्ति करने के लिए की कुओं की व्यवस्था भी की गई थी। चांदपुर गढ़ी किले के दरवाजों की चौखट को भी पत्थर से बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि यह किला शायद दो मंजिल (डबल स्टोरी) या तीन मंजिल (ट्रिपल स्टोरी) रहा होगा। यहाँ मिलने वाले अवशेषों में सीढ़ीयों के आकार के पत्थर मिले हैं जिससे यही अनुमान लगाया जाता है कि उस समय किला दो मंजिला या तिमंजिल रहा होगा।
Sora & Bhora | सोरा और भोरा
स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित है कि गांव के रहने वाले दो वीर सोरा और भोरा ने अकेले ही इन पत्थरों को उठा उठा कर खुद ही ऊपर पहाड़ी पर पहुंचाया था।
Special Interlocking System | पत्थरों में इंटरलॉकिंग
चांदपुर गाढ़ी किले में सुरक्षित कलाकृति देखने लायक हैं। उस समय यहां की कला और संस्कृति चरम पर रही होगी। किले के निर्माण में लगे पत्थरों पर नक्काशी का काम बड़ी ही कुशलता और सुंदरता के साथ किया गया है। पत्थरों को आपस में जोड़ने का काम कीलों द्वारा किया गया था। पत्थर उसी प्रकार बनाए गए थे जिससे कि पत्थर आपस में फंस ( इंटरलॉक) हो कर खड़े रह सकें और एक दीवार का रूप ले सकें। पत्थरों में इंटरलॉकिंग की व्यवस्था होने की वजह से दुश्मन उस दीवार को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा सकते होंगे। किले की खिड़कियां अंदर की तरफ चौड़ी तथा बाहर की तरफ संकरी है जिससे कि अंदर से बाहर का आसानी से देखा जा सके और बाहर से अंदर की तरफ दिखाई ना दे सके जो कि सुरक्षा की दृष्टि से इस प्रकार बनाई गई होंगी।
Chandpur Garhi Mandir | कुलदेवी का मंदिर
किले के मुख्य भाग में पंवार वंश की कुलदेवी दक्षिण काली माता का मंदिर है। यहां मंदिर के द्वार पर भगवान गणेश की भी एक मूर्ति स्थापित है। दक्षिण काली मंदिर में पूजा गढ़ के नरेश द्वारा की जाती थी। श्री नंदा देवी राजजात के दौरान भी यहां पर दक्षिण काली की पूजा की जाती है।
How to reach Chandpur Garhi Kila | चांदपुर गढ़ी किला कैसे पहुंचे
चांदपुर गढ़ी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। यह स्थान करणप्रयाग व गैरसैण के बीच में स्थित है। इसकी दूरी आदिबद्री से करीब ढाई किलो मीटर की है और 15 मिनट के एक आसान रास्ते द्वारा तथा 500 मीटर की चढ़ाई चढ़ते हुए पैदल यहां पर पहुंचा जा सकता है। अटागाढ़ नदी के किनारे इक टीले पर चांदपुर गढ़ी का किला है। चमोली स्थित कर्णप्रयाग एक प्रसिद्द टूरिस्ट प्लेस है और वहां से चांदपुर गढ़ी केवल 12 किलोमीटर के दूरी पर है।
अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं तो चांदपुर गढ़ी पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के दूरी लगभग 172 किलोमीटर है और वह से चांदपुर गढ़ी 12 किलोमीटर है। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग के लिए स्टेट ट्रांसपोर्ट के बस द्वारा या फिर टैक्सी से जा सकते हैं।
अगर आप फ्लाइट से ट्रेवल कर रहे हैं तो देहरादून का जॉलीग्रांट एयरपोर्ट कर्णप्रयाग के सबसे नजदीक , लगभग 185 किलोमीटर है। यह यात्रा बस या टैक्सी से कर सकते हैं।
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