Palamu Kila in Hindi : पलामू का किला भारत के झारखंड राज्य के लातेहार जिले में स्थित है। झारखंड राज्य के मुख्यालय मेदिनीनगर से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर घने जंगलों में कोयल नदी की सहायक नदी औरांग नदी के किनारे पर पलामू किला स्थित है। पलामू किला चेरो राजवंश से सम्बन्ध रखता है। राजा मेदनीराय चेरो वंश के सबसे प्रसिद्द राजा रहे हैं। पलामू किला राजा मेदनी राय द्वारा 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था ।
पलामू किला – चेरो राजवंश | Chero Dynasty – Palamu Kila in Hindi
चेरो राजवंश एक आदिवासी वंश था जिसने मध्यभारत में आधुनिक बिहार, झारखण्ड और उत्तरप्रदेश के कुछ भागों पर शासन किया था। चेरो की शुरुआत 12 वें शताब्दी में में मानी जाती है, हालाँकि आधुनिक इतिहास में उनका और मुग़लों का संघर्ष बहुत लम्बा चला है। चेरो राजवंश मेवाड़ के शिशोदिया राजवंश के प्रबल समर्थक रहे और मुग़लों के विरुद्ध वह मेवाड़ के साथ लड़े थे।
चेरो राजवंश की स्थापना से पहले पलामू में अंतिम रक्सौल राजा मानसिंह थे। जिन्हें भगवंत राय द्वारा हरा देने के पश्चात भगवंत राय ने यहां पर चेरो राजवंश की स्थापना की थी। राजा भगवंत राय के पश्चात अनंत राय ने पलामू की गद्दी को संभाला और अनंत राय के बाद पलामू के उत्तराधिकारी सहबल राय बने।
राजा मेदनीराय – पलामू किला | Raja Medni Rai – Palamu Kila in Hindi
चेरो वंश के सबसे प्रसिद्द राजा मेदनीराय हुए जिन्होंने सन 1658 से 1674 के बीच राजकाज संभाला था। राजा मेदनीराय एक शक्तिशाली और न्याय प्रिय राजा के रूप में जाने जाते थे। राजा मेदनी राय ने पलामू किले का निर्माण कार्य सुरक्षा की दृष्टि से कराया था। उस समय उनका साम्राज्य दक्षिण में गया , हजारीबाग और सुरगुजा तक था। राजा मेदनीराय के शासनकाल को चेरों का स्वर्णिम काल भी कहा जाता है।
पलामू किला – निर्माण | Palamu Kila in Hindi
पलामू किले के दो भाग हैं। इनमें से एक भाग मैदानी इलाके में हैं और दूसरा भाग एक पहाड़ी के ऊपर बना हुआ है। मैदानी इलाके में स्थित किले का निर्माण रक्सौल राजवंश के द्वारा कराया गया था लेकिन इसे सामरिक दृष्टि से सुरक्षित बनाए जाने का काम राजा मेदनी राय के समय में किया गया था।
राजा मेदनी राय की समय-समय पर अपने पड़ोसी राज्यों से लड़ाइयां होती रहती थी। इसी क्रम में उन्होंने नागवंशी राजा (दोयसा के राजा ) जिसे अब नवरतनगढ़ के नाम से जाना जाता है ,पर हमला किया था और उन्होंने छोटा नागपुर के नागवंशी राजा रघुनाथ शाह को हरा दिया था। इस लड़ाई में उन्होंने काफी अधिक खजाने को लूटा थाऔर उसी के कारण राजा ने पुराने किले के नजदीक ही एक किले का निर्माण भी कराया था जो कि उस समय के सबसे मशहूर किले के रूप में जाना जाता है।
पलामू और मुग़ल | Chero vs Mughal – Palamu Kila in Hindi
पलामू और मुग़ल शासकों के बीच संघर्ष चेरो राजा भगवंत सिंह से के समय से ले कर अंतिम राजा तक चला। मुग़ल सम्राट अकबर , जहांगीर , शाहजहां से ले कर औरंगजेब तक यह संघर्ष यूँ ही चलता रहा।
सन 1613 में जिस समय आगरा में जहांगीर का शासन था और पलामू में राजा भगवंत राय की मृत्यु के बाद राजा अनंत राय का शासन था जो कि काफी कम समय के लिए रहा था और उनके बाद राजा सहबल राय ने शासन किया था। राजा सहबल राय भी एक शक्तिशाली राजा थे जो कि मुगलों को लूटा करते थे और अपने राज्य के लिए कार्य किया करते थे। जहांगीर ने राजा सहबल को बंदी बना लिया और बाघ से लड़ने के लिए छोड़ दिया था। उस समय निहत्थे सहबल राय ने युद्ध किया लेकिन वह कब तक बाघ से युद्ध कर पाते। तभी उनकी मृत्यु हो गई थी।
उसके बाद शाहजहां के शासन के दौरान भी यह संघर्ष चलता रहा। औरंगजेब ने अपने शासन के दौरान बिहार के सूबेदार दाऊद खां को पलामू पर आक्रमण के लिए बुलाया था और वहां से कर / टैक्स वसूलने के लिए कहा । दाऊद खाने उस समय कोटि के किले और कुंडा के किले पर अपना अधिकार स्थापित कर चुका था।
जूना राय जो कि उस समय कुंडा के शासक थे उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था जिसके कारण राजा मेदनी राय ने जूना राय के भाई के द्वारा कुंडा शासक की हत्या करा दी थी। दाऊद खां ने मदनी राय को भी इस्लाम अपनाने के लिए कहा लेकिन मेदनी राय ने अंतिम समय तक युद्ध करने का निश्चय किया था। उन्होंने वहां से भागकर सुरगुजा में शरण ली थी और उस समय पलामू पर दाऊद खान का अधिकार हो गया था।
चेरों को जंगल की तरफ भागना पड़ा था। दाऊद खान खुद पलामू के किले में रहने लगा और वहां बसे लोगों पर जुल्म ढाता रहा। सन 1662 में पुराने किले के अंदर एक दाऊद खान ने एक मस्जिद का निर्माण कराया था।
दाऊद खां के फौजदार मनकली खान यहां पर देखभाल का कार्य किया था और दाऊद खान वापस पटना को लौट गया था। दाऊद के वहां से हटते ही मेदनी राय जो कि सुरगुजा चले गए थे वापस आए और उन्होंने पलामू पर पुनः अपना अधिकार स्थापित किया।
राजा मेदनी राय की मृत्यु के साथ ही चेरों वंश का पतन शुरू हो गया और इस पर ब्रिटिश अधिकार हो गया। 1772 में अंग्रेजों ने इस किले को अपने कब्जे में ले लिया था। उसके बाद कुछ समय बीतने के बाद चेरो तथा खरवार वंश आपस में एक साथ मिल गए और 1882 में उन्होंने आपस में मिलकर अंग्रेजों का सामना किया लेकिन दुर्भाग्यवश उन्हें फिर से हार का सामना करना पड़ा था। बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पलामू के इस किले का इस्तेमाल 1857 की क्रांतिकारियों तिरोहा के नारायण पेशवा और राजा राधा कृष्ण को जेल में डालने के लिए किया था।
पलामू किला – आर्किटेक्टर | Architecture – Palamu Kila in Hindi
पलामू किला एक वर्गाकार है। इस किले की दीवार बहुत मोटी और मजबूत हुआ करती थी जिससे कि उन दीवारों पर घोड़े भी दौड़ा करते थे। पलामू का यह किला करीब 5 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। पुराने किले में दो मंजिल है और 3 फाटक बने हुए हैं। यहां का मुख्य द्वार बहुत ही मजबूत व सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया गया है।
इसमें अंदर प्रवेश करने के लिए बड़े-बड़े दरवाजों को पार कर जाना पड़ता था जिनके अवशेष कहीं-कहीं पर आज भी दिखाई देते हैं। किले के अंदर दरबारियों के लिए मंत्रालय बने हुए थे और राजमहल तक पानी की व्यवस्था भी उत्तम तरीके से की गई थी । उसके लिए वहां पर बड़ी-बड़ी बावड़ी का और नालियों का प्रयोग किया गया था। सिंह द्वार के अंदर के आंगन में तीन गुंबद देखे जाते हैं जो कि मस्जिद के प्रतीत होते हैं।
नया किला जो कि राजा मेदनी राय द्वारा बनवाया गया था , यह किला पुराने किले से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर एक ऊंचे पहाड़ पर बनाया गया है। इसका निर्माण 2 मील के घेरे में किया गया है। इस किले में सैनिकों के रहने के लिए कमरों का निर्माण कराया गया था। किले के दो मुख्य फाटक हैं जो कि बड़े और कलात्मक तरीके से बनाए गए थे।
किले के निर्माण में पत्थरों और ईटों का इस्तेमाल किया गया था । इन को आपस में जोड़ने के लिए चुना, सुर्खी मिट्टी का इस्तेमाल किया गया था। इस हिसाब से किला बहुत ही मजबूत तैयार किया गया था । इसके किले का मुख्य आकर्षण इसका दरवाजा है जिसको नागपुरी दरवाजा के नाम से जाना जाता है। इस दरवाजे की ऊंचाई 40 फुट है और दरवाजे की चौड़ाई 15 फुट है । पलामू के इस किले से एक सुरंग भी जाती है जो कहा जाता है कि दूसरे किले तक जाती है।
पलामू किला – वर्तमान
कभी चेरो राजवंश का अभिमान रहा पलामू किला आज एक खंडहर में बदल चुका है। अक्सर पलामू किला देखने के लिए लोकल टूरिस्ट आते रहते हैं लेकिन यह किला बिलकुल दयनीय स्थिति में है।
पलामू किला कैसे पहुंचे? How to reach Palamu Kila
पलामू किला देखने जाने के लिए झारखंड की राजधानी रांची और हजारीबाग से बस द्वारा यहां तक पहुंचा जा सकता है। अगर आप ट्रेन से ट्रेवल कर रहे हैं तो झारखण्ड के डालटनगंज तक ट्रेन से पहुंच सकते हैं। इससे आगे पलामू के लिए ऑटो , टैक्सी या लोकल ट्रांसपोर्ट से पहुंच सकते हैं।
यहां का निकटतम एयरपोर्ट राँची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट है । एयरपोर्ट से आगे का सफर रोड से तय किया जा सकता है।
पलामू किला जाने का सबसे अच्छा मौसम | Best Time to Visit
पलामू किला देखने के लिए सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम को 5:00 बजे तक का समय ही होता है। यहाँ आने के लिए अक्टूबर से मार्च तक का मौसम सबसे अच्छा है।
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