Teliyagadhi Kila Hindi : भारत के इतिहास में झारखंड का अपना एक विशेष महत्व है। झारखंड में मौजूद प्रमुख किलों और महलों में तेलियागढ़ी किले का नाम आता है। तेलियागढ़ी किला साहिबगंज का एक समय पर खूबसूरत किला था। यह किला अपने अंदर बहुत अधिक विविधता लिए हुए है और कला का एक शानदार नमूना है।
तेलियागढ़ी का किला पटना हावड़ा लूप रेल लाइन पर मिर्जा चौकी रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है। यह स्थान बिहार झारखंड सीमा पर भागलपुर से 60 किलोमीटर पूर्व झारखंड के साहिबगंज से 15 किलोमीटर की दूरी पर राजमहल पर्वत श्रंखला के बीच स्थित है।
तेलियागढ़ी किला – गेटवे ऑफ़ बंगाल | Gateway of Bangal – Teliyagadhi Kila Hindi
तेलियागढ़ी किला किला झारखंड राज्य के साहिबगंज जिले में स्थित है। साहिबगंज संताल परगना का यह राज महल का इलाका है। यह किला अर्थात यह राज महल चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इतिहास में बंगाल का गेट नाम से तेलियागढ़ी किले को जाना जाता है। तेलियागढ़ी किला साहिबगंज मुख्यालय से 8-10 किलोमीटर की दूरी पर एक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है।
यह किला राजमहल पर्वतमाला की निचली ढलान और पठार नुमा ऊंची जमीन तथा गंगा के बीच स्थित है। तेलिया गढ़ी किले की ऊंची तथा मजबूत दीवारें बंगाल के लिए जाने के रास्ते में चट्टान की तरह खड़ी रहती थी। जिसे भी बंगाल जाना होता था उसे किले से होकर गुजरना पड़ता था जिसके कारण इतिहासकारों ने इसे बंगाल की चाबी या गेटवे ऑफ़ बंगाल कहकर सम्मानित किया ।
तेलियागढ़ी किले को सन 2006 में भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन किया गया और तभी इस किले को एक राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है।
तेलियागढ़ी किला – इतिहास | History – Teliyagadhi Kila Hindi
तेलियागढ़ी किला भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण भाग रहा है। गेटवे ऑफ़ बंगाल का नाम से जाना जाने वाला यह किला इतिहास में प्रसिद्द रहे यात्रियों के उल्लेखों का हिस्सा है। तेलियागढ़ी किले का उल्लेख राजा हर्षवर्धन के समय में आये चीनी यात्री ह्वेनसांग, इराक से आए यात्री अब्दुल लतीफ और फ्रांसीसी बुकानन की रचनाओं में भी मिलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य काल के दौरान ग्रीक इतिहासकार और यात्री मेगस्थनीज़ द्वारा भी तेलियागढ़ी किले का उल्लेख किया गया है। यह भी कहा जाता है कि इस किले में एक रात के लिए भगवान गौतम बुद्ध रुके थे।
तेलिया गढ़ी के किले की सामरिक स्थिति मजबूत होने के कारण ही 13 वें सदी में बंगाल की सेना ने दिल्ली सल्तनत के आक्रमण को यही पर रोक लिया था जिसके कारण गयासुद्दीन ने बंगाल में प्रवेश करने के लिए इस स्थान के बजाय दूसरा घुमावदार रास्ता ढूंढा था। बंगाल को हथियाने के लिए जब मुगल बादशाह हुमायूं और अफगान के शासक शेरशाह के बीच हुए मुठभेड़ हो तथा उनके बीच हुए युद्ध का यह किला मुख्य गवाह रहा है।
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इस स्थान पर कभी हुमायूं ,कभी शेर शाह सूरी, शाह शुजा का अधिकार रहा है। उनके हथियारों और उनके गोला बारूद से यह भरा रहता था । यह स्थान एक समय व्यापार का एक प्रमुख केंद्र रहा है। 16 वी शताब्दी में बंगाल के मुगल शासक जलाल ने साहू राजा को परास्त कर किले को अपने अधिकार में ले लिया था। मुगल काल में इसका महत्व सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।
तेलिया गढ़ी के इस किले की महत्ता के कारण ही आईने अकबरी , जहांगीरनामा, आलमगीर नामा, चैतन्य चरितामृत , रेनेल के मैप आदि में इसका जिक्र मिलता है।
तेलिया गढ़ी किला – निर्माण | Construction – Teliyagadhi Kila Hindi
तेलियागढ़ी किला कितना पुराना है यह तो ठीक से नहीं कहा जा सकता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल में आये मेगस्थनीज की किताब में भी इस किले का वर्णन काली चट्टानों से निर्मित बौद्ध विहार के रूप में मिलता है। तेलिया गढ़ी किले के बारे में कहा जाता है कि इसका पुनर्निर्माण सातवीं शताब्दी में कराया गया था। तेलिया गढ़ी के किले पर गुप्त काल से लेकर पाल वंश के शासकों का शासन काल रहा है।
12 वीं शताब्दी के मध्य तक आते-आते इसके किले का उपयोग सैनिक छावनी के रूप में किया जाने लगा था। उसके पश्चात से किले का इस्तेमाल सुरक्षा की दृष्टि से सैनिकों को रहने और बंगाल की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो चुका था ।
किले की वर्तमान संरचना के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण १५वें सदी में दरू साहू नाम के राजा द्वारा करवाया गया था। यह किला कभी आर्थिक व् सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। उस समय यह किला हिंदुस्तान के बेशुमार किलो में शामिल था। जो कि ना सिर्फ अपनी खूबसूरती की वजह से बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखता था। इस किले को उस समय के बेहतरीन कलाकृतियों में जाना जाता था। तेलिया गढ़ी के किले के किनारे से गंगा नदी भी बहती थी।
तेलियागढ़ी किला – नाम | Name – Teliyagadhi Kila Hindi
तेलियागढ़ी किले को कभी बौद्ध विहार तो कभी राजमहल और कभी काली चट्टानों से बने महल के नाम से सम्बोधित किया जाता रहा है। इस किले का नाम तेलियागढ़ी कब हुआ इसके बारे में दो मत हैं। ऐसा माना जाता है क्योंकि यह किला राजमहल पहाड़ियों के तली में स्थित है , तली में स्थित होने के कारण इसे तलियागढ़ी कहा जाने लगा जो धीरे धीरे समय के साथ तेलियागढ़ी कहा जाने लगा।
इतिहासकारों के अनुसार 16 वी शताब्दी के अंत में अकबर के सेनापति मानसिंह ने इस किले सहित इस क्षेत्र को पहाड़िया प्रधान से छीन लिया था। इस किले पर कब्जा करने के बाद में मानसिंह ने इसे वहां के जमीदारों को दे दिया जो तेल का क्यापार भी करते थे । तभी से इस किले को तेलियागढ़ी कहा जाने लगा। यह स्थान उस समय युद्ध का मुख्य स्थान हुआ करता था जो कि आक्रमणकारियों को बंगाल में प्रवेश करने से रोकता था।
तेलियागढ़ी किला – आर्किटेक्चर | Architecture – Teliyagarhi Kila Hindi
अभी हालाँकि तेलियागढ़ी किले का कुछ भाग ही जमीन के ऊपर दिखाई देता है और यह अनुमान लगाया जाता है कि आस पास के पहाड़ियों के खुदाई करने पर किले के बाकि अवशेष यहाँ मिलेंगे। मुख्य अवशेष से लगभग ५०० मीटर के दूरी तक किले के कुछ अन्य अवशेष देखे जा सकते हैं। इन्ही से यह अनुमान लगाया जाता है कि शायद यह किला एक वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ रहा होगा।
किले के अवशेषों से ही यह माना जाता है कि इस किले में सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध रही होंगी हैं। यहाँ पानी की व्यवस्था भी रही होगी और किले का निर्माण इस तरह से किया गया होगा कि किले के अंदर प्रयाप्त मात्रा में सूरज की रौशनी पहुंच सके।इस किले को बनाने में उस समय सुर्खी मिट्टी, ईंटों और चूने का उपयोग किया गया है। बड़े-बड़े आयताकार पत्थरों के टुकड़ों को क्रम में मजबूती के साथ जोड़कर बनाया गया है । कहा जाता है कि उत्तर पश्चिम भाग में एक मस्जिद भी थी जिसके की अवशेष बाकी रह गए हैं। जहांगीरनामा के अनुसार इस किले को कब्रगाह के रूप में किया गया था।
किले में अलग अलग समय पर किले के शासकों की रूचि के अनुसार निर्माण कार्य होता रहा है। तेलियागढ़ी किले के अंदर मेहराब भी बने हुए हैं जो इस पर मुग़लकालीन वास्तुकला के प्रभाव को स्पष्ट करते हैं।
रक्षास्थान मंदिर | Rakshasthan Mandir – Teliyagadhi Kila Hindi
किले के पास ही एक सुंदर रक्षास्थान मंदिर भी बनाया गया है।
तेलियागढ़ी किला – वर्तमान | Present – Teliyagadhi Kila Hindi
आज यह किला मात्र एक अवशेष के रूप में है। तेलियागढ़ी के किले का अधिकांश भाग टूट कर मिट्टी में मिल गया है। किले के पूर्वी और पश्चिमी भागों में ढाई सौ फुट लंबी दीवार थी जो कि आज पूरी तरह से खंडित हो चुकी है।
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