Tungnath Mandir Hindi : तुंगनाथ मंदिर पहाड़ों की चोटी के बीच रूद्रप्रयाग जिले में चोपता में स्थित प्रसिद्ध मंदिर है। तुंगनाथ मंदिर लगभग 1000 साल से भी ज्यादा पुराना निर्मित है। यह मंदिर भगवन शिव को समर्पित है। इस मंदिर से जुडी अनेकों कहानियां हिन्दू पुराणों में बताई गयी हैं।
समुद्र तल से लगभग 3680 मीटर की उंचाई पर स्थित तुंगनाथ मंदिर सबसे ज्यादा ऊँचाई पर बने हुए शिव मंदिर के रूप में भी प्रसिद्द है। यह मंदिर पांच केदार में से भी एक है। पंच केदार का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है और हर साल हजारों के संख्या में श्रद्धालु पंच केदार यात्रा के लिए आते हैं।
Significance – Tungnath Mandir Hindi | तुंगनाथ मंदिर – महत्त्व
तुंगनाथ मंदिर पंच केदार मंदिरों में से एक है। पंच केदार पांच मंदिरों का एक समूह है जो भगवन शिव को समर्पित हैं। पंच केदार में यह पहला मंदिर है। इसके अलावा चार अन्य मंदिर रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर, कल्पेश्वर और केदारनाथ हैं। इन सभी मंदिरों का हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व है।
भगवान शिव हिन्दू धर्म में आदि देव , देवाधिदेव , महादेव और भी अनेकों नाम से जाने जाते हैं। उन्हीं को सर्मपित यह मंदिर शिव भक्तो के लिए विशेष है। हर साल पंच केदार यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु सबसे पहले तुंगनाथ मंदिर में ही दर्शन करते हैं।
History – Tungnath Mandir Hindi | इतिहास – तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ मंदिर कब बनाया गया इस बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर की नींव अर्जुन ( पांडवों में से एक ) द्वारा राखी गयी थी। जब आदि गुरु शंकराचार्य हिन्दू धर्म जाग्रति के लिए पूरे भारत में भ्रमण कर रहे थे तब उस समय 8 वें शताब्दी में उन्होंने इस स्थान को तुंगनाथ मंदिर के रूप में चिन्हित किया था। इस मंदिर का निर्माण उसी दौरान किया गया था। लगभग 1000 साल से भी पुराना तुंगनाथ मंदिर शिव भक्तों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और पूरे साल यहाँ दुनिया भर से लोग दर्शन के लिए आते रहते हैं।
Mythology – Tungnath Mandir Hindi | पौराणिक कहानी – तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह स्थान रामायण काल से भी जुड़ा है। लोगों का ऐसा मानना है कि लंका युद्ध के बाद भगवान राम ने युद्ध के पाप से प्रायश्चित करने के लिए यहाँ पर तपस्या की थी।
महाभारत के समय से जुडी एक पौराणिक कहानी भी बताई जाती है। महाभारत के युद्ध के बाद भगवान शिव पांडवों से काफी नाराज़ थे और उनसे मिलना नहीं चाहते थे। पांडव युद्ध के पाप से मुक्त होना चाहते थे और भगवान शिव के तपस्या करना चाहते थे और उनसे मिलना चाहते थे लेकिन जहाँ भी पांडव भगवन शिव को ढूंढते पहुँचते, भगवान शिव वहां से चले जाते। इसी तरह से भगवान शिव को ढूँढ़ते हुए पांडव गुप्तकाशी पहुंचे जहाँ भगवान शिव एक बैल के रूप में छुपे हुए थे। पांडवो ने उन्हें पहचान लिया पर भगवान शिव वहां से जैसे ही भागने लगे तो भीम ने उन्हें पकड़ लिया। तब उस बैल रूप का शरीर ५ टुकड़ों में बाँट गया और वे टुकड़े अलग अलग जगहों पर गिर। जहाँ जहाँ वे टुकड़े गिरे वहां वहां भगवन शिव को समर्पित मंदिरों के स्थापना हुई और यह मंदिर समूह पांच केदार कहलाया।
केदारनाथ में बैल का खुम्भ ( कूबड़ ) , मध्यमहेश्वर में शरीर का मध्य भाग यानि पेट , कल्पेश्वर में जटाएं , रुद्रनाथ में सर और तुंगनाथ में भुजाएं गिरीं थी। इन सभी स्थानों पर पांडवों ने मंदिर बनाये थे।
Meaning of word – Tungnath | तुंगनाथ अर्थ
तुंग शब्द का अर्थ होता है सबसे ऊंचा और नाथ का अर्थ होता है ईश्वर ! तुंगनाथ मंदिर भगवन शिव को समर्पित सभी मंदिरों में से सबसे ज्यादा ऊँचाई पर स्थित मंदिर है।
Tungnath Mandir Hindi – Temple Info | मंदिर के बारे में जानकारी
तुंगनाथ मंदिर के सामने पहाडों पर सदा बर्फ जमी रहती है। यह मंदिर सर्दियों में अत्यधिक बर्फ और ठण्ड होने के कारण बंद रहता है और इतने समय के लिए भगवन शिव की मूर्ती को मक्कूमठ में स्थानांतरित कर दिया जाता है। सर्दियों के 6 महीने के लिए यह मंदिर बंद रहता है। तुंगनाथ मंदिर से ऊपर के ओर जाने वाला रास्ता चंद्रशिला पीक और चंद्रशिला मंदिर तक जाता है जो कि चोपता का एक अन्य प्रसिद्द आकर्षण है।
Tungnath Mandir Hindi – Architecture | मंदिर संरचना
तुंगनाथ मंदिर उत्तर भारतीय शैली जिसे नागर शैली या केदार शैली भी कहते हैं , के अनुसार बना हुआ है। बड़े पत्थरों से बनी मंदिर की संरचना बहुत सुन्दर और अद्भुत लगती है। मंदिर में प्रवेश करते ही नंदी की पत्थर की मूर्ति है जो कि महादेव की तरफ मुख किये हुए है। ऐसा लगभग सभी शिव मंदिरों में देखा जाता है। जहाँ भी भगवान शिव की मूर्ती स्थापित है उसके ठीक सामने मूर्ती की और मुख किया नंदी की मूर्ति भी स्थापित होती है। बड़े पत्थरों से बने मंदिर की छत पर लकड़ी का गुम्बद बना हुआ है। मंदिर के अंदर पांडवों के चित्र भी हैं । मंदिर के प्रवेश द्वार के दाईं ओर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित है।
Prayer Timings | प्रार्थना समय
यह मंदिर सुबह 6 बजे से शाम के 7 बजे तक श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खुला होता है। शाम के समय लगभग 6. 30 बजे मंदिर में आरती का समय होता है।
इस मंदिर में विशेष रूप से मैथानी ब्राह्मण पुजारी के तौर पर रहते हैं।
Best time to visit – Tungnath Mandir Hindi | कब जाए – तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ मंदिर केदारनाथ और बद्रीनाथ मन्दिर के लगभग बीच में स्थित है। यह क्षेत्र गढ़वाल हिमालय के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है। जहाँ एक ओर सर्दियों में यहाँ सफ़ेद बर्फ के चादर से बिछी दिखाई देती है वहीँ गर्मियों में यहाँ हरी घास का सुन्दर नजारा दूर दूर तक फैला दिखाई देता है।
अगर आप विशेष रूप से तुंगनाथ मंदिर में दर्शन के लिए ही यहाँ आना चाहते हैं तो मंदिर के कैलेंडर के अनुसार ही अपना ट्रेवल प्लान करें। सर्दियों में बंद रहने के बाद मंदिर अक्सर अप्रैल के अंत में दर्शनों के लिए खोला जाता है।
How to reach – Tungnath Mandir Hindi | कैसे पहुंचे – तुंगनाथ मंदिर
अगर आपने तुंगनाथ मंदिर के लिए प्लान कर रहे हैं तो यहाँ पहुंचने के लिए सबसे नजदीक का एयरपोर्ट जॉली ग्रांट हवाई अड्डा देहरादून हैं। यहाँ से चोपता के लिए टैक्सी से पहुंच सकते हैं। देहरादून एयरपोर्ट से चोपता तक की दूरी 227 किलोमीटर है।
अगर आप ट्रेन से ट्रेवल कर रहे हैं तो यहाँ का सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जोकि लगभग 209 किलोमीटर की दूरी पर है। ऋषिकेश से आगे चोपता तक का सफर बस या टैक्सी से तय किया जा सकता है।
अगर आपने सड़क से ट्रेवल करने का प्लान बने है तो चोपता तक का सफर स्टेट ट्रांसपोर्ट बस से या फिर अपने कार या बाइक से आसानी से तय किया जा सकता है।
Way to – Tungnath Mandir | मंदिर का मार्ग – तुंगनाथ
चोपता से तुंगनाथ मन्दिर की दूरी केवल तीन किलोमीटर ही रह जाती है। चोपता से तुंगनाथ तक यात्रियों को पैदल ही जाना होता है । इस पैदल रास्ते में घास दूर तक बिछी दिखाई देती है। इस दौरान भगवान शिव के कई प्राचीन मन्दिर भी रास्ते में आते हैं।
बहुत से यात्री मंदिर से आगे चंद्रशिला ट्रेक पर निकल जाते हैं। यह ट्रेक तुंगनाथ ट्रेक से थोड़ा मुश्किल है। सर्दियों में यह ट्रेक भी बंद कर दिया जाता है। इस ट्रेक से ऊपर जाने पर चंद्रशिला के दर्शन होते हैं। चंद्रशिला छोटी से हिमालय का पैनोरमिक व्यू देखने को मिलता है।
तुंगनाथ मंदिर के लिए ट्रेक शुरू करने से पहले कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहियें। यह ट्रेक ज्यादा चौड़ा नहीं है और इसीलिए इस चढ़ाई के रस्ते पर घोड़े आदि के ज्यादा ऑप्शन नहीं मिलते हैं। जहाँ से ट्रेक शुरू होता है वही पर कुछ दुकानें हैं जहाँ से रेनकोट , बूट ( बर्फ के सीजन में ) और ट्रेक के लिए छड़ी किराये पर ले सकते हैं। मंदिर के रास्ते में कुछ छोटी छोटी दुकानें हैं जहाँ से आप कुछ थोड़ा स्नैक आदि खरीद सकते हैं।
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