Chittorgarh Fort Hindi : चित्तौड़गढ़ किला राजस्थान राज्य के चित्तौड़गढ़ शहर में स्थति ऐतिहासिक किला है। यह मेवाड़ राज्य का एक प्रमुख शहर है। यह गंभीरी और बिरच नदियों के किनारे पर बसा हुआ शहर है। चित्तौड़गढ़ में मुख्य आकर्षण चित्तौड़गढ़ किला है। भारत के सबसे बड़े किलों में से एक और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में चिन्हित यह किला समुद्र तल से लगभग 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर फैला है। चित्तौड़गढ़ किला 280 हेक्टेयर एरिया में फैला हुआ है। आज भी इस किले में पुराने समय से महल में काम करने वाले लोगों के परिवार रहते हैं।
चित्तौड़गढ़ इतिहास में रूचि रखने वालों और राजपूत संस्कृति और विरासत में रुचि रखने वालों के लिए एक प्रसिद्द आकर्षण है ।
Chittorgarh Fort Chittor | Chittorgarh Fort History
Importance of Chittorgarh | चित्तौड़गढ़ का महत्व
चित्तौड़गढ़ की अपनी रणनीतिक स्थिति और इस किले के अंदर हुई ऐतिहासिक घटनाओं के कारण यह किला भारतीय इतिहास का बहुत महत्वपूर्ण भाग है। चित्तौड़गढ़ किले ने कई भयंकर युद्ध और घेराबंदी देखी हैं और इसके राजपूत शासकों ने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए लड़ाइयाँ लड़ी हैं ।
चित्तौड़गढ़ किले पर तीन बार लम्बे समय के लिए घेराबंदी की गयी। सबसे पहले सन 1303 में अलाउद्दीन खिलजी, सन 1535 में बहादुर शाह और सन 1568 में अकबर ने इस किले पर आक्रमण किये। ये आक्रमण भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएं हैं।
History of Chittorgarh | चित्तौड़गढ़ का इतिहास
चित्तौड़गढ़ किले का एक समृद्ध इतिहास है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। इतिहासकारों का मानना है कि यह किले शायद ७वें शताब्दी में या फिर उस से भी पहले बना है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि इस किले का कुछ भाग महाभारत कालीन है। कहा जाता है कि इसका निर्माण भीम द्वारा किया गया था।
चित्तौड़गढ़ का ऐतिहासिक नाम चित्रकूट है और चितौड़ शब्द चित्रकूट शब्द का ही रूप है।चित्तौड़ लम्बे समय तक मेवाड़ राज्य की राजधानी रहा है । गुहिलों और बाद में शिशौदिया वंश के शासन के तहत चित्तौड़गढ़ मेदापाटा के राजपूत राज्य का एक प्रमुख गढ़ बन गया, जिसे मेवाड़ के नाम से भी जाना जाता है।
बप्पा रावल राजस्थान में मेवाड़ साम्राज्य के राजा और गुहिला राजपूत कबीले के सदस्य थे। उन्हें राजपूत इतिहास के बसबसे बड़े वीर और कुशल शासक के जाता है। उनकी वीरता के कारण ही उनके शासन काल में मेवाड़ ईरान तक फैला हुआ था। हालाँकि बप्पा रावल के समय के बारे में बहुत ज्यादा ऐतिहासिक जानकारी उनलब्ध नहीं है लेकिन मेवाड़ वंशावली और एकलिंग महात्म्य के अनुसार उनका शासन सन 728 से सन 753 तक रहा। शासन कार्य छोड़ने के बाद बप्पा रावल भगवान शिव की तपस्या करने के लिए जंगल में चले गए थे।
रावल रतन सिंह रावल वंश की अंतिम राजा थे। सन 1303 में चित्तौड़ और अलाउद्दीन खिलजी के युद्ध में रावल रतन सिंह के मृत्यु हो गयी। रावल रतन सिंह के बाद राणा वंश से राणा हमीर सिंह ने चित्तौड़गढ़ पर फिर से नियंत्रण किया और मेवाड़ के शासक के रूप में राणा शाखा के संस्थापक बने। उनके समय से महाराणा उदय सिंह तक चित्तोड़ मेवाड़ की राजधानी रहा पर मुग़लों के आक्रमणों के कारण बाद में यह राजधानी उदयपुर में स्थापित कर दी गयी।
चित्तौड़गढ़ किले से रानी पद्मावती , रानी कर्मवती और मीराबाई का भी सम्बन्ध रहा है। रानी पद्मावती रावल रतन सिंह की पत्नी थीं। रानी कर्मवती का विवाह मेवाड़ के राणा सांगा से हुआ था और वह राणा उदय सिंह की माँ थीं। रानी कर्मवती ने गुजरात के बहादुर शाह से मेवाड़ की रक्षा करने के प्रयास में अंत में राजपूत वीरों की हर होने पर जौहर में अपने प्राण त्याग दिए थे। रानी कर्णावती को उनकी बहादुरी, साहस और अपने राज्य की रक्षा के लिए याद किया जाता है।
चित्तौड़गढ़ किला | Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किला भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे बड़े किलों में से एक और यूनेस्को हेरिटेज साइट है। चित्तौड़गढ़ किला राजपूत शासकों की वीरता का प्रतीक है। इस किले का इतिहास मेवाड़ से भी पुराना है। इतिहासकारों का मानना है कि चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण मौर्य काल में हुआ था। इसका निर्माण चित्रांगद मौर्य ने कराया था।
8 वें सदी में मेवाड़ की राज्य के रूप में स्थापना करने वाले बप्पा रावल ने इसी किले से मेवाड़ की स्थापना की थी। बप्पा रावल के बारे में इतिहास में बहुत ज्यादा जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन इस में कोई दो राय नहीं है कि उन्होंने मेवाड़ की सीमाएं वर्तमान अफगानिस्तान और ईरान तक फैला दी थीं। पाकिस्तान में स्थित रावलपिंडी शहर का नाम उन्ही बप्पा रावल के नाम पर आज तक जाना जाता है।
चित्तौड़गढ़ के किले में अनेकों जैन मंदिर , स्तम्भ, झीलें और तालाब होने के साथ साथ इतिहास के पन्नों से जुडी अनेकों कहानियां जुडी हुई हैं। मेवाड़ शासकों में बप्पा रावल , रावल रतन सिंह , हमीर सिंह , राणा कुम्भा , राणा संग्राम सिंह , महाराणा उदय सिंह और महाराणा प्रताप की खास प्रसिद्धि है। महाराणा उदय सिंह चित्तौड़गढ़ से शासन करने वाले अंतिम शासक थे। उन्होंने अपने शासन काल में मुग़लों के लगातार हो रहे आक्रमणों के कारण अपनी राजधानी उदयपुर स्थानांतरित कर दी थे और उन्ही के नाम पर उस शहर को उदयपुर कहा गया।
चित्तौड़गढ़ किला न केवल मेवाड़ के वीर शासकों बल्कि राजपूत रानियों की भी गाथा का साक्षी रहा है। इनमें रानी पद्मावती , रानी कर्णावती और मीराबाई मुख्य हैं।
चित्तौड़गढ़ किला आज चित्तोड़ और राजस्थान राज्य के मुख्य टूरिस्ट प्लेस में से एक है।
सात गेट – चित्तौड़गढ़ किला | Seven Gates – Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किले में कुल सात गेट हैं जिन्हें पोल कहा जाता है। इनके नाम हैं पदन पोल, भैरों पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोडला पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल रखा गया था। नुकीले मेहराब वाले इन पोलों या गेट को हाथियों और तोप की गोलियों से बचाने के लिए मजबूत किया जाता था। इसके लिए किले के मुख्य गेट पर लोहे के नुकीले कीले लगाए जाते थे जिससे कि हाथी आक्रमण कर गेट को न तोड़ सकें। पोल के ऊपर के और धनुष बाण और भालों से सुसज्जित सैनिकों के लिए जगह बनायीं जाती थी।
राणा कुंभा पैलेस चित्तौड़गढ़ किला | Rana Kumbha Palace Chittorgarh Fort Hindi
राणा कुंभा पैलेस चित्तौड़गढ़ किला परिसर के अंदर स्थित एक महल है। इस महल का निर्माण मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने सन 734 में करवाया था। 14 वें शताब्दी में इस महल का पुनर्निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा कराया गया था। महाराणा कुम्भा एक कुशल शासक के रूप में जाने जाते थे और उन्होंने कभी भी कोई युद्ध नहीं हरा था। वह मेवाड़ के 48वें राणा थे। महाराणा कुम्भा ने सुरक्षा की दृष्टि से मेवाड़ में अनेकों किलों का निर्माण करवाया था। कुम्भलगढ़ किला महाराणा कुम्भा के द्वारा ही बनवाया गया किला है जो आज एक प्रसिद्द टूरिस्ट अट्रैक्शन भी है।
कुम्भा महल चित्तौड़गढ़ किले का सबसे बड़ा स्मारक है और किले के प्रवेश द्वार के पास ही स्थित है। महल से कुछ कदम के दूरी पर विजय का प्रतीक विजय स्तंभ स्थित है। इसी महल में उदयपुर के संस्थापक और महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह का जन्म हुआ था। कुम्भा महल में हाथी और घोड़े के अस्तबल भी शामिल हैं। राणा कुंभा पैलेस अपने राजपूती आर्किटेक्चर के लिए भी प्रसिद्ध है। हालाँकि आज यह महल एक खंडहर जैसा ही बन चुका है लेकिन अभी भी इसके गौरवशाली इतिहास के अवशेष यहाँ देखे जा सकते हैं।
मेवाड़ के शासक सूर्य की उपासना करने के बाद ही अपने दिन की शुरुआत किया करते थे और इसीलिए जब कभी सूर्य बादलों में ढाका होता था तो उस दिन के लिए महल में ही सूर्य की एक विशाल सोने की आकृति लगायी गयी थी। यह सूर्य की आकृति अब उदयपुर सिटी पैलेस में सूर्य मंदिर में देख सकते हैं। जब महाराणा उदय सिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़ से उदयपुर की तब वह उस प्रतिमा को यहाँ से ले गए थे।
पद्मिनी महल चित्तौड़गढ़ किला | Padmini Palace Chittorgarh Fort Hindi
पद्मिनी महल चित्तौड़गढ़ किला परिसर में स्थित रानी पद्मिनी का महल है। इस महल में मेवाड़ राज्य के शासक रावल रतन सिंह की दूसरी पत्नी रानी पद्मिनी या पद्मावती रहती थी । मालिक मुजहम्माद जायसी की प्रसिद्द अवधि रचना “पद्मावत” में रानी पद्मिनी के बारे में लिखा गया है। पद्मावत के अनुसार रानी पद्मिनी सिंहली (श्री लंका ) के राजकुमारी थी जिसके बारे में हिरामन नाह के तोते ने रावल रतन सिंह को बताया था। पद्मावती की सुंदरता से प्रभावित हो कर रावल रतन सिंह से यह विवाह किया था। यह महल रानी पद्मिनी का निवास स्थान था।
पद्मिनी की एक झलक देखने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने कई महीने तक चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी की थी। माना जाता है कि बाद में रावल रतन सिंह अलाउद्दीन खिलजी को महल में लगे दर्पण के माध्यम से रानी पद्मिनी की झलक दिखने के लिए मान गए लेकिन इसके बाद भी अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में रावल रतन सिंह की मृत्यु हो गयी और सभी रानियों और अन्य महिलाओं ने जौहर कर लिया था। पद्मिनी पैलेस चित्तौड़गढ़ किला परिसर में दक्षिणी भाग में स्थित है।
कुछ इतिहासकार रानी पद्मावती को सिर्फ कल्पना भी मानते हैं।
मीरा मंदिर चित्तौड़गढ़ किला | Meera Mandir Chittorgarh Fort Hindi
प्रसिद्ध कवयित्री और भगवान कृष्ण की भक्त मीरा बाई को समर्पित यह मंदिर भक्तों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है।
मीरा मंदिर चित्तौड़गढ़ किला परिसर में स्थित एक मंदिर है जो भगवान कृष्ण और उनकी परम भक्त मीरा के भक्ति को समर्पित है। मीरा मंदिर किला परिसर में कुम्भस्वामिनी मंदिर के पास ही स्थित है। मीरा बाई का विवाह मेवाड़ राजवंश में राणा संग्राम सिंह के पुत्र भोजराज से हुआ था। मीरा भगवान कृष्ण की परम भक्त थीं और भगवान कृष्ण को समर्पित अनेकों भजन उन्होंने लिखे जो आगे चल कर बहुत प्रसिद्द भी हुए। मीरा बाई के पति भोजराज की बीमारी के चलते मृत्यु हो गयी थी और मेवाड़ राजवंश यही चाहता था कि मीरा अपने पति के साथ सती हो जाएं जैसा कि परंपरा चली आ रही थी।
मीरा जीवित रहकर भगवान कृष्ण की भक्ति करना चाहती थीं और यह बात उनके पति के भाई को बिलकुल नागवार गुजरी। वह उन्हें मरने के प्रयत्न करने लगा लेकिन मीरा को मरने के उसके सभी प्रयास विफल रहे। मीरा बाई उस समय भगवान कृष्ण के इस मंदिर में ही अपना समय बिताया करती थीं। उनकी भक्ति से प्रभावित हो कर इस मंदिर का निर्माण राणा संग्राम सिंह ने करवाया था जो भोजराज के पिता थे। दूसरों द्वारा किये जाने वाले अपनी मृत्यु के प्रयासों से परेशान हो कर मीरा चित्तौड़गढ़ छोड़ कर चली गयीं। माना जाता है कि मीरा ने अपना अंतिम समय द्वारिकापुरी में बिताया और वह भगवन कृष्ण की ही मूर्ती में समाहित हो गयी थीं।
यह मंदिर आज भी मीरा की श्री कृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम का प्रतीक है।
काली माता मंदिर चित्तौड़गढ़ किला | Kali Mata Mandir Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ परिसर में स्थित काली माता मंदिर देवी काली को समर्पित एक प्रतिष्ठित मंदिर है। काली माता मंदिर या कालिका माता मंदिर का निर्माण ८वें शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर शक्ति की प्रतीक देवी भद्रकाली को समर्पित है । देवी काली को चित्तौड़गढ़ की कुलदेवी के रूप में माना जाता है। यह मंदिर दरअसल ८वें शताब्दी में बना एक सूर्य मंदिर था जो चित्तौड़ पर अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के दौरान इसका कुछ भाग नष्ट हो गया था। 15वीं सदी में मेवाड़ के शासक रहे राणा कुंभा के समय में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था।
यह मंदिर आकर्षक डिजाइन, दीवारों पर की गयी नक्काशी और अपने स्तंभों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्द है। काली माता मंदिर चित्तौड़गढ़ में भक्तों और टूरिस्ट्स के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।
गौमुख कुंड चित्तौड़गढ़ किला | Gaumukh Kund Chittorgarh Fort Hindi
गौमुख कुंड चित्तौड़गढ़ किला परिसर में स्थित है। यह एक पवित्र स्थान है और माना जाता है कि इस कुंड का पानी कभी भी नहीं सूखा है। गोमुख कुंड का सम्बन्ध ऋषि मार्कण्डेय से माना जाता है। इससे जुडी पौराणिक कहानी के अनुसार ऋषि मार्कण्डेय ने भारत के पवित्र धार्मिक स्थानों की यात्रा करने के बाद यहाँ पर अपनी तपस्या करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने भगवान शिव से इस स्थान को पानी देने की प्रार्थना की थी।
बाद में यह स्थान किले के अंदर ले लिया गया। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड के जल का स्रोत गाय के आकार की चट्टान के मुख से है, इसीलिए इसे गौमुख कहा जाता है। इस स्रोत से पानी एक तालाब में बहता है। यह तालाब युद्ध के दौरान किले के लिए पानी का मुख्य स्रोत रहा है। यहां पूरे वर्ष टूरिस्ट्स और श्रद्धालु आते रहते हैं।
विजय स्तंभ चित्तौड़गढ़ किला | Vijay Stambh Chittorgarh Fort Hindi
विजय स्तंभ को विजय के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। विजय स्तंभ एक 9 मंजिल ऊंचा टॉवर है। विजय स्तम्भ का निर्माण राणा कुम्भा के समय में उनकी मालवा और गुजरात की संयुक्त सेना पर जीत का प्रतीक है। विजय स्तम्भ का निर्माण सन 1442 और 1449 के बीच कराया गया था। विजय स्तंभ की ऊंचाई 37.19 मीटर (122 फीट) है। यह टावर लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से बना हुआ है। इस टावर का आर्किटेक्चर राजपूत और इस्लामी शैली का मिला जुला रूप है। विजय स्तम्भ की सबसे ऊपरी मंजिल पर चित्तौड़ के शासकों की वंशावली के शिलालेख हैं।
विजय स्तंभ चित्तौड़ के शासकों के अन्य धर्मों के प्रति सम्मान के भावना का प्रतीक है। यह स्तम्भ समृद्ध इतिहास, संस्कृति और विरासत का उदाहरण है। कुछ वर्ष पहले तक टूरिस्ट्स को विजय स्तम्भ में अंदर जाने और ऊपर के मंजिलों पर जाने की भी परमिशन थी लेकिन अभी इसे बंद कर दिया गया है।
कीर्ति स्तंभ चित्तौड़गढ़ किला | Kirti Stambh Chittorgarh Fort Hindi
कीर्ति स्तंभ का निर्माण चित्तौड़गढ़ किला परिसर में 12वीं शताब्दी में रावल कुमार सिंह के शासनकाल के दौरान एक जैन व्यापारी द्वारा कराया गया था। यह जैन तीर्थंकर ऋषभनाथ को समर्पित है। कीर्ति स्तम्भ एक सात मंजिला टावर है जिसकी ऊंचाई 22 मीटर (72 फीट) है। यह टावर सोलंकी (गुजराती ) शैली में बनाया गया है। यह टावर अपनी विशिष्ट नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
कीर्ति टावर को नीचे से ऊपर की चोटी तक मूर्तियों से सुसज्जित किया गया है। कीर्ति स्तंभ मेवाड़ राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक है।
श्यामा मंदिर चित्तौड़गढ़ किला | Shyama Mandir Chittorgarh Fort Hindi
श्यामा मंदिर: चित्तौड़गढ़ किले में स्थित, श्यामा मंदिर जिसे कुंभा या कुंभस्वामिनी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, का निर्माण ८ वीं शताब्दी में हुआ था। अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण में इस मंदिर और मंदिर में स्थित मूर्तियों को तोड़ दिया गया था। 15 वें शताब्दी में राणा कुम्भा ने इस मंदिर का जीर्णोंद्धार कराया और मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ती स्थापित कराई। यह मंदिर जिस शैली में बना हुआ है इसे इंडो आर्यन आर्किटेक्चर कहा जाता है। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है।
पन्ना महल चित्तौड़गढ़ किला | Panna Mahal Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किला परिसर में स्थित महल का एक भाग पन्ना महल के नाम से भी जाना जाता है। कुम्भा महल के साथ ही इस महल का निर्माण राणा कुम्भा द्वारा कराया गया था। ऐसा माना जाता है कि महल के इस भाग में ही उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह का जन्म हुआ था । यह महल किले के प्रवेश द्वार और विजय स्तंभ के पास ही स्थित है।
पन्ना धाय राणा सांगा की चौथी संतान उदय सिंह की देखभाल किया करती थीं। १६वें शताब्दी में मेवाड़ में हुई कुछ ऐतिहासिक घटनाओं के कारण बनवीर ( उदय सिंह का चाचा ) उदय सिंह को मारकर खुद राजा बन जाना चाहता था। उस समय उदय सिंह के उम्र बहुत ही काम थी , वह एक बच्चे ही थे। उदय सिंह की जान बचाने के लिए पन्ना धाय ने अपने पुत्र की जान दे दी। पन्ना धाय को अपने इसी बलिदान के कारण भारतीय इतिहास में त्याग की मूर्ती के रूप में जाना जाता है। उनके सम्मान में राजस्थान में कई पुरस्कार और सम्मान भी दिए जाते हैं।
जौहर कुंड चित्तौड़गढ़ किला | Johar Kund Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किला परिसर में एक छोटा सा गार्डन बनाया गया है जो कि उसी स्थान पर बनाया गया है जहाँ पर रानियों का जौहर कुंड हुआ करता था। जब कभी युद्ध के दौरान या युद्ध के समाप्त होने पर हर होने के खबर महल पहुँचती थी तब सभी रानियों समेत महल में उपस्थित सभी स्त्रियां जलती अग्नि में कूद कर सामूहिक रूप से आत्मदाह कर लिया करती थीं। ऐसा इसलिए किया जाता था जिससे कि इससे पहले कि दुश्मन महल तक पहुंच कर उन्हें नुकसान पंहुचा सके उससे पहले ही वे अपना जीवन समाप्त कर लिया करती थीं।
चित्तौड़गढ़ किले में स्थित जौहर कुंड इतिहास में हुए तीन बड़े सामूहिक जौहरों का साक्षी रहा है। यह जौहर कुंड एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल है जो राजपूत महिलाओं की वीरता और बलिदान का प्रतिनिधि है। उन वीर और साहसी महिलों ने दुश्मन के हाथों अपमानित होने के बजाय अपने लिए मृत्यु का रास्ता चुना। यह स्थान एक रोमांचक अनुभव करा देता है। ऐसा कोई भी व्यक्ति जो राजपूताना इतिहास से परिचित है यहाँ आ कर प्रभावित हुए बिना नहीं रह पता। चित्तौड़गढ़ आने वाले टूरिस्ट्स के लिए यह एक अनोखा अनुभव है।
वार्षिक उत्सव: चित्तौड़गढ़ में जौहर मेला नामक एक उत्सव हर साल होता है जहाँ पूर्वजों को याद किया जाता है । इस उत्सव का आयोजन जौहर में बलिदान करने वाली उन सभी महिलाओं के लिए एक श्रद्धांजलि होती है।
समाधिश्वर मंदिर चित्तौड़गढ़ किला | Samadhishwar Mandir Chittorgarh Fort Hindi
समाधिश्वर मंदिर चित्तौड़गढ़ किला परिसर में भगवन शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर चित्तौड़गढ़ के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। यह मंदिर विशाल और विशेष शिवलिंग के लिए प्रसिद्द है। मंदिर में भगवन शिव के साथ भगवन विष्णु और ब्रह्मा की भी मूर्ती है जो एक साथ त्रिमुख रूप में है। समधिश्वर मंदिर में हर वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है।
लाइट एंड साउंड शो – चित्तौड़गढ़ किला | Light and Sound Show – Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किले में शाम के समय मंत्रमुग्ध कर देने वाला लाइट एंड सॉउन्ड शो का आयोजन किया जाता है। चित्तौड़गढ़ के इतिहास और संस्कृति को प्रदर्शित करने वाला यह शो किला परिसर में ही कुम्भा पैलेस में आयोजित होता है।
यह लाइट एंड साउंड शो आमतौर पर शाम 7:00 बजे शुरू होता है और लगभग एक घंटे तक चलता है। लाइट एंड साउंड शो कभी कभी मौसम के आधार पर कैंसिल भी कर दिया जाता है इसीलिए टूरिस्ट्स को पहले ही चेक कर लेना चाहिए।
इस लाइट एंड साउंड शो में चित्तौड़गढ़ के समृद्ध इतिहास और यहाँ घाटी मुख्य घटनाओं को जीवंत रूप में दिखाया और वर्णन किया जाता है। भारतीय इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए यह शो काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।
यह शो देखने के लिए 50 रुपये का टिकट लेकर परिसर हैं और शो का आनंद ले सकते हैं।
कैसे पहुँचें – चित्तौड़गढ़ किला | How to reach – Chittorgarh Fort Hindi
चित्तौड़गढ़ किला देखने जाने के लिए किसी भी माध्यम से यहाँ पहुँच सकते हैं। चित्तौड़ शहर रेल और सड़क मार्ग से भारत के अन्य शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चित्तोड़ शहर में कोई एयरपोर्ट नहीं है लेकिन नजदीक ही उदयपुर शहर में फ्लाइट से पहुंच सकते हैं।
हवाई मार्ग द्वारा चित्तौड़गढ़ किला
अगर आप फ्लाइट ट्रेवल कर रहे हैं तो चित्तौड़गढ़ का सबसे नजदीक का एयरपोर्ट उदयपुर स्थित महाराणा प्रताप एयरपोर्ट है। यहाँ से चित्तौड़गढ़ की दूरी लगभग 70 किलोमीटर है जो टैक्सी या स्टेट ट्रांसपोर्ट बस से तय की जा सकती है। उदयपुर के लिए दिल्ली , मुंबई आदि शहरों से रोज फ्लाइट उपलब्ध हैं।
ट्रेन द्वारा
चित्तौड़गढ़ एक रेलवे स्टेशन है जो भारत के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, जयपुर और उदयपुर से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन से चित्तौड़गढ़ किले तक पहुँचने के लिए टैक्सी ले सकते हैं या फिर लोकल बस से भी पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग द्वारा
चित्तौड़गढ़ राजस्थान के प्रमुख शहरों और भारत के अन्य हिस्सों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। चित्तौड़गढ़ किले तक पहुँचने के लिए आप बस ले सकते हैं या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं। अगर आप खुद ड्राइव कर के यहाँ आना चाहते हैं तो आसानी से पहुंच सकते हैं।
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