Haldighati Hindi : हल्दीघाटी का युद्ध राजपूती इतिहास और भारतीय इतिहास का एक निर्णायक युद्ध रहा है। आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का सही अर्थ समझाने वाला हल्दीघाटी युद्ध मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह और मुग़ल बादशाह अकबर की सेना के बीच लड़ा गया था। उदयपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित हल्दीघाटी का दर्रा इतिहास का गवाह है और आज एक बड़ा टूरिस्ट स्पॉट भी है।
हल्दीघाटी का इतिहास | History – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी का प्रसिद्द दर्रा अरावली की पहाड़ियों के बीच बसे खमनौर और बलीचा गांव के बीच है। हल्दीघाटी के पीली मिटटी देखने में एकदम हल्दी जैसे रंग की है और इसी वजह से इस घाटी को हल्दीघाटी कहा जाता है। हल्दीघाटी का प्रसिद्द युद्ध महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच लड़ा गय।
मेवाड़ पर कई असफल आक्रमण करने के बाद जून 18 , 1576 को अकबर ने जयपुर के राजा मान सिंह के नेतृत्व में अपने २०,००० सैनिकों की फ़ौज को महाराणा प्रताप का सामना करने के लिए भेजा। महाराणा प्रताप की सेना में राजपूत लड़ाकों के आलावा जंगल के भील आदिवासी और उनके मित्र राज्यों के प्रतिनिधि थे।
महाराणा की सेना अकबर की बड़ी फ़ौज से संख्या में बहुत ही कम थी। कहा जाता है कि राणा के सेना में केवल 3500 कुल संख्या थी। राणा के सेना ने मुग़लों को पीछे धकेल दिया और उन्हें रक्त तलाई तक ले आयी। रक्त तलाई में 6 घंटे का भयंकर युद्ध हुआ जो कि महाभारत जैसा ही था। 6 घंटे के युद्ध के बाद दोनों तरफ के बहुत से सैनिक मारे गए।
इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप जंगलों में रह कर छापामार प्रणाली से मुग़लों से युद्ध करते रहे। वो जंगलों में रहे और अपनी सेना को मजबूत करते रहे। महाराणा प्रताप के जीवन भरे युद्ध में उन्होंने अपना लगभग सारा राज्य वापिस जीत लिया था। 1597 में महाराणा प्रताप ने चावंड में अपनी अंतिम सांस ली।
हल्दीघाटी क्यों प्रसिद्द है | Why Haldighati is famous – Haldighati Hindi
इतिहास के पन्नों में हल्दीघाटी और महाराणा प्रताप का नाम हमेशा एक साथ ही लिया जाता है। हल्दीघाटी का ऐतिहासिक महत्त्व तो है ही , वर्तमान में हल्दीघाटी एक प्रसिद्ध टूरिस्ट प्लेस है। हल्दीघाटी गुलाब की खेती और उससे बनने वाले प्रोडक्ट्स के लिए भी बहुत प्रसिद्द है। यहाँ लघु उद्योग के रूप में आप को घरों में लोग गुलाब से बना गुलाब जल, गुलाब का शरबत,गुलकंद और भी बहुत से सामान बनाते दिखेंगे।
अगर आप टैक्सी से हल्दीघाटी आते है तो टैक्सी ड्राइवर भी आपको यहाँ के लोकल लोगों से मिलवा सकता है और आप इस बारे में और जानकारी भी ले सकते हैं। यहाँ आप गुलाब के प्रोडक्ट्स के अलावा पान का शरबत , जामुन का शरबत , मोगरा अतर , गुलाब अतर जैसे प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं।
हल्दीघाटी दर्रा | Pass – Haldighati Hindi
दो पहाड़ों के बीच की संकरी जगह को दर्रा कहा जाता है। हल्दीघाटी का दर्रा अरावली की पहाड़ियों के बीच में बना छोटा रास्ता है जिसकी मिटटी हल्दी जैसे पीली है। इसी दर्रे और इसके आस पास के जंगलों में रह कर मेवाड़ की सेना ने मुग़लों का कई बार सामना किया था।
महाराणा प्रताप गुफा | Maharana Pratap Cave – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी दर्रे से चेतक के समाधि के रास्ते में महाराणा प्रताप की गुफा है। युद्ध से पहले युद्ध की रणनीति तैयार करने और उसके बाद भी इस गुफा को हथियार सुरक्षति रखने के लिए इस्तेमाल किया गया था। ये गुफा बाहर से देखने पर एक छोटी सी गुफा लगती है लेकिन इसके अंदर जाने पर आप देख सकते हैं कि ये गुफा काफी बड़ी है। इसके अंदर एक रसोई घर, एक देवी मंदिर और घोड़ों को बांधने कि जगह भी है। गुफा के पीछे पानी कि एक धारा हमेशा बहती रहती है।
गुफा के अंदर से एक गुप्त सुरंग निकलती है जो एक तरफ चित्तौड़गढ़ और दूसरी तरफ एकलिंगजी के मंदिर तक जाती है। अभी ये सुरंग सुरक्षा कारणो से बंद है। इसे रण मुक्तेश्वर भी कहा जाता है।
बादशाही बाग | Badshahi Bag – Haldighati Hindi
बादशाही बाग दरअसल वो मैदान है जहाँ पर मुग़ल सेना आ कर डेरा डाला था। अभी यहाँ एक गार्डन बना दिया गया है।
हल्दीघाटी का नाला | Naala – Haldighati Hindi
“आगे नाला पड़ा अपार , चेतक कैसे जाये पार ,
राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार “
ये एक बड़ा नाला है जो हल्दीघाटी के दर्रे से दूसरी ओर ले जाता है। चेतक अपने ३ टांगों पर भागता हुआ बड़े नाले जो कि लगभग २२ फ़ीट चौड़ा था , उसे कूद कर दूसरी तरफ पहुंच कर गिर गया। उसके बाद चेतक कि उसी जगह पर मृत्यु हो गयी। अभी यहाँ एक बोर्ड लगा हुआ है जो बताता है कि ये एक ऐतिहासिक जगह है।
चेतक की समाधि | Chetak Samadhi – Haldighati Hindi
महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़े चेतक कि समाधि महाराण प्रताप कि गुफा से कुछ दूरी पर है। चेतक कि मृत्यु के बाद उसे इसी जगह पर लाया गया था। चेतक के समाधि पर एक छतरी बनी है और साथ में एक शिलालेख है।
चेतक के समाधि एक पुराने शिवमंदिर के साथ में बनी हुई है। ये मंदिर लगभग ८०० साल पुराना है। ये पुराना शिव मंदिर मुग़लों के आक्रमण का साक्षी रहा है। शिव मंदिर के बाहर बैठे नंदी कि खंडित मूर्ती भी इसी बात को दोहराती है।
हल्दीघाटी म्यूजियम | Haldighati Museum – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी म्यूजियम एक प्राइवेट म्यूजियम है जो इसके फाउंडर मोहन लाल श्रीमाली के पैशन का स्वरुप है। ये म्यूजियम महाराणा प्रताप के जीवन और हल्दीघाटी के युद्ध के बारे में पूरी जानकारी देता है। म्यूजियम में बने स्टेचू हल्दीघाटी के युद्ध की अलग अलग घटनाओं को दिखाते हैं।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा ने अपने घोड़े चेतक को हाथी का मास्क पहनाया था जिस से कि युद्ध में दुश्मन के हाथी उसे छोटा हाथी का बच्चा समझ उस पर हमला न करें। राजपूती सेनाओं में हाथी कम होते थे और अक्सर युद्ध में घोड़ों को इस तरह से युद्ध के लिए तैयार किया जाता था।
हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का घोडा चेतक , हाथी पर बैठे अकबर के सेनापति मान सिंह तक पहुंच गया और तब महाराणा ने उस पर वार किया। युद्ध के इस पल में हाथी के सूंड में बंधे तलवार से चेतक का पैर कट गया। इसके बाद महाराणा के एक सेनापति ने महाराणा को युद्ध से बाहर भेजा और खुद उनकी जगह ली।
महाराणा प्रताप के जीवन और युद्ध कि एक छोटी फिल्म यहाँ दिखाई जाती है। इस फिल्म को देखने के बाद टूरिस्ट एक लाइट एंड साउंड शो देखते हुए म्यूजियम के बाकी जगहों को देखते हैं। यहाँ महाराणा उदय सिंह और पन्ना धाय की कहानी , महाराणा प्रताप के हल्दीघाटी युद्ध के बाद के जीवन और उसकी घटनाएं लाइट एंड साउंड शो के करिये दिखाई जाती हैं।
इस म्यूजियम का टिकट 100 रुपये पर पर्सन है। 3 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों का टिकट 50 रुपये है।
रक्त तलाई | Rakt Talai – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी के युद्ध को खमनौर का युद्ध भी कहा जाता है। ये दर्रा खमनौर गांव से कागा हुआ ही है। मुग़लों के आक्रमण के समय महाराणा प्रताप कि सेना जंगलों में छिप कर उन्हें पीछे खदेड़ते हुए खमनौर तक ले आयी थी। यहाँ मुग़ल सेना और प्रताप कि सेना का आमना सामना हुआ था। कहा जाता है कि लगभग ६ घंटे तक ये भयानक युद्ध चला जिसमें दोनों और के बहुत से सैनिक मारे गए। इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि मुग़लों के सेना में भी बड़ी संख्या में राजपूत सैनिक थे। उन्हें अपनी ही सेना के सेनापतियों ने युद्ध के दौरान मार डाला था।
युद्ध के बाद आयी बारिश ने लड़ाकों के खून के साथ मिल कर लाल रंग के पानी का एक तालाब सा बना दिया। इसे ही रक्त तलाई कहा जाता है।
हल्दीघाटी कैसे जाएँ | How to reach – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी तक जाने के लिए आप उदयपुर से बस , टैक्सी या फिर अपनी कार से भी जा सकते हैं।
हल्दीघाटी युद्ध | War of Haldighati – Haldighati Hindi
हल्दीघाटी युद्ध के बारे में कहा जाता है कि यह कोई हिन्दू मुस्लिम का सांप्रदायिक युद्ध नहीं था बल्कि यह एक आत्मसम्मान का युद्ध था। हल्दीघाटी युद्ध ही आगे चलकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बना था। 18 जून 1576 को लड़ा गया हल्दीघाटी युद्ध सांप्रदायिक युद्ध इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि मुग़ल सेना का नेतृत्व एक हिन्दू राजा मान सिंह ने किया था और महराणा प्रताप के सेना का सेनापति हकीम खान एक मुस्लिम था।
इस युद्ध में दोनों ओर के सेनाओं में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही संप्रदाय के सैनिक थे जो अपने अपने राजाओं के लिए दूसरी सेना के अपने संप्रदाय के सैनिकों से लड़े थे।
हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध इसलिए भी एक प्रेरणात्मक युद्ध के रूप में जाना जाता है क्योंकि अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए महराणा के छोटी सी सेना मुग़ल सम्राट अकबर के विशाल सेना से जा टकराई। युद्ध का निर्णय क्या रहा इस बारे में इतिहासकारों में अलग अलग मत हैं। कुछ के अनुसार इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना विजयी रही और कुछ के अनुसार इसमें मुग़ल सेना विजयी रही।
इतिहास में लिखा है कि अकबर अपने जीवन में महाराणा प्रताप से कभी आमने सामने नहीं मिला। उसके अलग अलग सेनापति महाराणा पर आक्रमण करने के लिए आते रहे लेकिन उन्हें पकड़ने में कभी भी सफल नहीं हो पाए। हल्दीघाटी के युद्ध के बाद से आजीवन महाराणा प्रताप आजीवन छोटे बड़े युद्द लड़ते रहे लेकिन कभी भी मुग़ल दासता स्वीकार नहीं की थी।
हल्दीघाटी युद्ध क्यों हुआ ? Why Haldighati War – Haldighati Hindi
राणा उदय सिंह के मृत्यु के बाद मेवाड़ की गद्दी पर महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। उन दिनों अकबर राजपूत राज्यों पर अपना अधिपत्य स्थापित करने में लगा हुआ था। आमेर के साथ अकबर मित्रता कर चुका था और मेवाड़ को वह अपनी जागीर बनाना चाहता था।
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक के बाद अकबर ने मेवाड़ को अपना यह सन्देश भेजा जिसे महाराणा ने अस्वीकार कर दिया। अकबर मेवाड़ से होकर गुजरात जाने के लिए एक रास्ता चाहता था और इसीलिए वह मेवाड़ पर अपना अधिकार करना चाहता था। महाराणा द्वारा अकबर के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के बाद से ही अकबर ने मेवाड़ को अपने अधिकार में लेने के लिए आक्रमण करने शुरू कर दिए।
हल्दीघाटी युद्ध किसने जीता ?Victory – Haldighati Hindi
अधिकांश इतिहासकारों ने कुछ समय पहले तक यही माना था कि युद्ध में अकबर की सेना जीती लेकिन यह प्रमाणित नहीं है। हाल की रिसर्च की अनुसार , महाराणा प्रताप ने युद्ध के बाद आस पास की जमीनें गांव वालों में बाँट दी थी। इसका प्रमाण वह ताम्रपत्र हैं जिन पर एकलिंग जी की मोहर है। इसीलिए यह प्रमाणित है कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप और उनकी छोटी सी सेना ने अकबर के विशाल सेना पर विजय पायी थी।
F.A.Q.
हल्दीघाटी कहाँ पर स्थित है ?
उदयपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर स्थित है।
हल्दीघाटी का युद्ध किस के बीच लड़ा गया ?
मुग़ल अकबर और मेवाड़ के राजा महराणा प्रताप के बीच लड़ा गया था।
हल्दीघाटी का युद्ध कब हुआ था ?
18 जून 1576
खमनौर का युद्ध कौन सा है ?
हल्दीघाटी युद्ध को ही खमनौर का युद्ध कहा जाता है।
हल्दीघाटी का युद्ध किसने जीता ?
महाराणा प्रताप ने।
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